शिमला: ब्रिटिश हुकूमत के बाद अब हिमाचल में रेल नेटवर्क को लेकर हलचल मची है. दरअसल गुरुवार 13 अक्टूबर को पीएम मोदी हिमाचल दौरे पर आ रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार (PM Modi Visit Una) को वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाएंगे. ऊना से वाया चंडीगढ़ और अंबाला होकर ये ट्रेन दिल्ली तक जाएगी. इसके अलावा पीएम नरेंद्र मोदी ऊना-हमीरपुर रेलवे ट्रैक परियोजना (Vande Barat Express Train in Himachal) का भी शिलान्यास करेंगे.
नए युग की शुरुआत- आजादी के 75 साल बाद रेलवे को लेकर हिमाचल में अब तेजी से घटनाक्रम बदल रहा है. सामरिक महत्व की भानुपल्ली-बिलासपुर-मनाली-लेह मार्ग का काम तो चल ही रहा है, लेकिन वंदे भारत ट्रेन से हिमाचल में रेल के नए युग की शुरूआत कही जा सकती है. आजादी से पहले शिमला देश की समर कैपिटल थी. पहाड़ी इलाका होने के कारण अंग्रेज हुक्मरान इसे पसंद करते थे. यही कारण है कि शिमला तक रेल मार्ग का विकास अंग्रेजों की प्राथमिकता रहा. कालका-शिमला रेल मार्ग बेशक एक हिंदु फक्कड़ साधु बाबा भलखू के कारण आकार ले पाया, लेकिन उसके पीछे सोच अंग्रेज हुकूमत की ही थी.
75 साल में चंद कदम चली रेल- अंग्रेजों (Vande Bharat Train una to new delhi) के राज के समय हिमाचल में जो रेलवे का नेटवर्क था, 75 साल में उससे आगे महज चंद ही कदम बढ़ पाया है. रेलवे विस्तार के मामले में केंद्र सरकारों की ओर से हिमाचल के हाथ हमेशा मायूसी ही लगी. आजादी के 7 दशक बाद भी न तो कालका-शिमला रेल मार्ग आगे बढ़ा, न ही नैरो गेज की स्थितियों में खास परिवर्तन आया और न ही कोई नया रेल मार्ग बनकर तैयार हुआ. अंग्रेजों के जमाने के रेल मार्ग भी रखरखाव के लिए तरसते रहे.
रेलवे के नाम पर ढाक के तीन पात- हिमाचल में (Train new delhi to una) कालका-शिमला रेलमार्ग, पठानकोट-जोगेंद्रनगर रेल मार्ग सहित कांगड़ा जिला में कुछ रेल ट्रैक हैं. लेकिन सेब उत्पादक और खासकर पर्यटन राज्य होने के नाते हिमाचल की जरूरतें रेलवे के मामले में कहीं अधिक है. हिमाचल की सबसे बड़ी जरूरत प्रदेश के सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र बीबीएन यानी बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ को चंडीगढ़ से जोडऩे की है. हिमाचल से चंडीगढ़ व दिल्ली तक नई संभावनाएं तलाश करने की है. सामरिक रूप से महत्वपूर्ण भानुपल्ली-बिलासपुर-मनाली-लेह मार्ग को गति प्रदान करना, ऊना-हमीरपुर रेलमार्ग को अस्तित्व में लाना सबसे बड़ी मांग है. ये तो वो मांगे हैं जिनकी गूंज सालों से सुनाई दे रही है, वक्त के साथ-साथ आबादी, व्यापार, पर्यटन सबकुछ बढ़ा है तो रेलवे को लेकर हिमाचल की डिमांड भी बढ़ी है लेकिन धरातल पर फिलहाल सिर्फ ढाक के तीन पात ही नजर आते हैं.
सरकारों ने क्या किया- रेलवे के क्षेत्र में हिमाचल की अनदेखी ही होती रही है. यहां अंग्रेजों के जमाने की रेल लाइनों का विस्तार न के बराबर हुआ है. कालका-शिमला रेल मार्ग केवल शिमला तक ही सीमित है. इसे रोहड़ू तक ले जाने की बात कई बार हुई है लेकिन इसके लिए सर्वे तक नहीं कराया गया है. बीते कुछ सालों में हिमाचल में रेलवे को लेकर घोषणाएं तो हुई हैं लेकिन वो ऊंट के मुंह में जीरे के समान है. साल 2018-19 में हिमाचल की रेल परियोजनाओं के लिहाज से कोई बड़ी घोषणा नहीं हुई थी. अलबत्ता नेरो गेज को ब्रॉड गेज में बदलने के लिए देश भर की परियोजनाओं के साथ ही हिमाचल की जोगेंद्रनगर-कांगड़ा रेल लाइन भी शामिल हुई थी.
रेल विस्तार की कछुआ चाल- 2016-17 के रेल बजट में तीन रेल परियोजनाओं के लिए उस समय जरूर 370 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था. पहले से चल रही तीन परियोजनाओं में नंगल-तलवाड़ा के लिए सौ करोड़ रुपए, चंडीगढ़-बद्दी रेल लाइन के लिए 80 करोड़ रुपए व भानुपल्ली-बिलासपुर रेल लाइन के लिए 190 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था. इसके अलावा उक्त बजट में पठानकोट-जोगेंद्रनगर को ब्रॉडगेज करने के साथ ही जोगेंद्रनगर से मंडी के लिए रेल लाइन की परियोजना को लेकर सर्वे राशि तय की गई थी. उस दौरान हिमाचल से संबंध रखने वाले केंद्रीय कैबिनेट में मंत्री जेपी नड्डा ने बयान दिया था कि यूपीए सरकार ने 2009 से 2014 तक हिमाचल को कुल 108 करोड़ रुपए दिए। वहीं, एनडीए सरकार वर्ष 2015-16 के बजट में हिमाचल के रेल प्रोजेक्ट्स को 350 करोड़ रुपए व वर्ष 2016-17 में 370 करोड़ रुपए दिए.
हिमाचल को मिलता रहा सर्वे का झुनझुना- ज्यादातर रेल बजट में तो हिमाचल का नाम तक नहीं आया. हां कुछ बजट भाषणों में हिमाचल को रेल विस्तार के लिहाज से सर्वे का झुनझुना जरूर मिलता रहा है. वर्ष 2016-17 के रेल बजट में परवाणु से दाड़लाघाट रेल लाइन के सर्वे के लिए 2.33 लाख रुपए के बजट का प्रावधान किया गया था. इसके अलावा बद्दी से बिलासपुर की 50 किलोमीटर की प्रस्तावित लाइन के सर्वे के लिए 3.40 लाख, बिलासपुर से रामपुर 7.12 लाख, अंब से कांगड़ा की 75 किलोमीटर की दूरी के लिए 5.25 लाख रुपए की राशि सर्वे के लिए तय की गई थी. धर्मशाला से पालमपुर 40 किलोमीटर के लिए 2.99 लाख, ऊना से हमीरपुर की 90 किलोमीटर की लाइन के लिए 11.10 लाख, जोगेंद्रनगर से मंडी के लिए 4 लाख व पठानकोट से जोगेंद्रनगर के 181 किलोमीटर रेल लाइन के सर्वे को 26 लाख रुपए की राशि मिली थी.
2019 में हुई थी ये हलचल- वर्ष 2019 में अंतरिम बजट के हिस्से के तौर पर रेल बजट की पुस्तकों के मुताबिक हिमाचल में कुल 83.74 किलोमीटर लंबी नंगल-तलवाड़ा ब्रॉडगेज रेल लाइन के लिए अंतरिम बजट में 30 करोड़ रुपए का प्रावधान किया था. इसी तरह 33.23 किलोमीटर लंबी चंडीगढ़-बद्दी प्रस्तावित रेल लाइन के लिए 24 करोड़ रुपए का आबंटन किया गया था. इस रेल प्रोजेक्ट का काम भू अधिग्रहण में हो रही देरी की वजह से अटका हुआ है. भानुपल्ली-बिलासपुर रेल मार्ग के लिए 2019 में बजट में 100 करोड़ यानी एक अरब रुपए का प्रावधान था. इस रेल लाइन की लंबाई 63.1 किमी है। बाद में इसे मनाली व लेह तक किया गया है. अब स्थिति ये है कि सामरिक महत्व के इस ट्रैक पर केंद्र की भी नजर है. इसके अलावा कुल 50 किमी लंबी ऊना-हमीरपुर रेल लाइन के लिए महज दस लाख रुपए का बजट 2019 में जारी हुआ था. हिमाचल में कुल चार रेल प्रोजेक्ट्स में तीन प्रोजेक्ट हमीरपुर के सांसद अनुराग ठाकुर के क्षेत्र से संबंधित हैं और एक प्रोजेक्ट शिमला के सांसद सुरेश कश्यप के चुनाव क्षेत्र में आता है.
हिमाचल के लिए रेल जरूरी क्यों है- हिमाचल की आर्थिकी मुख्य रूप से पर्यटन और सेब कारोबार पर टिकी हुई है. इसके अलावा औद्योगिक विकास के लिए भी परिवहन साधन के रूप में रेलवे का विस्तार जरूरी है. औद्योगिक विकास के लिए खासकर चंडीगढ़-बद्दी रेल मार्ग का जल्द निर्माण होना जरूरी है. ऐसा इसलिए कि हिमाचल का बड़ा औद्योगिक क्षेत्र इसी रेल मार्ग से कवर होगा. हिमाचल में सोलन जिला में बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ यानी बीबीएन सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है. इसे एशिया का फार्मा हब भी कहा जाता है. विश्व की सभी बड़ी दवा कंपनियां यहां यूनिट्स लगा कर काम कर रही हैं. बीबीएन में सालाना 40 हजार करोड़ रुपए का दवा उत्पादन का आंकड़ा है.
अब बल्क ड्रग पार्क ऊना में तैयार होना है. इससे भारत दुनिया का फार्मा सिरमौर बन जाएगा. ऐसे में न केवल बीबीएन से बल्कि ऊना से भी रेलवे नेटवर्क की जरूरत है. वंदे भारत के बाद ऊना से और भी रेल सुविधाएं जुटाने की जरूरत है. इसके अलावा अगर चंडीगढ़-बद्दी रेल मार्ग तैयार हो जाए तो फार्मा सेक्टर सहित अन्य उद्योगों को बड़ा लाभ होगा. इसके अलावा यहां कलपुर्जों के निर्माण की भी यूनिट्स हैं. यहां उद्योग की जरूरतों के लिए सौ करोड़ से अधिक की लागत वाला टैक्नीकल सेंटर भी खुला है, लेकिन रेल नेटवर्क न होने से सारी ढुलाई सड़क मार्ग से ही होती है. जिसमें वक्त, खर्च और रिस्क भी बढ़ जाता है. बहुत खर्चीला भी है और हिमाचल लंबे अरसे से चंडीगढ़-बद्दी रेल लाइन का मामला उठा रहा है. पहले चरण में इसके लिए 95 करोड़ रुपए मंजूर हुए और 2019 में 100 करोड़ रुपए मिले थे. अब पीएम नरेंद्र मोदी वंदे भारत रेल को ऊना से हरी झंडी दिखाने आ रहे हैं. इसके अलावा एक दशक से भी अधिक समय से लटके हुए ऊना-हमीरपुर रेल मार्ग परियोजना का भी शिलान्यास होना है. देखना है कि आजादी के 75 साल बाद पूर्व के मुकाबले पहाड़ पर रेल कितना आगे बढ़ पाती है.
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