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'अटल बिहारी वाजपेयी के कहने पर सुषमा स्वराज बनीं थी दिल्ली की सीएम' - कार्यकर्ता

पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के देहांत को भाजपा के वरिष्ठ नेता सुधांशु मित्तल ने केवल बीजेपी की नहीं बल्कि देश की बड़ी क्षति बताया है.

सुषमा स्वराज
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Published : Aug 7, 2019, 1:47 PM IST

शिमला/नई दिल्ली: पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के देहांत को भाजपा के वरिष्ठ नेता सुधांशु मित्तल ने केवल बीजेपी की नहीं बल्कि देश की बड़ी क्षति बताया है. उन्होंने कहा कि सुषमा स्वराज एक आदर्श व्यक्तित्व थीं. वह एक आदर्श नेता, कार्यकर्ता, महिला, दांपत्य जीवन की संगिनी एवं आदर्श भारतीय नारी का प्रतिबिंब थी. उन्होंने कहा कि ऐसे लोग भगवान अब बनाता ही नहीं है.

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'उन्हें केवल देश की चिंता थी'
भाजपा के वरिष्ठ नेता सुधांशु मित्तल ने बताया कि सुषमा स्वराज को किसी पद की चिंता नहीं थी. उन्हें अपने लिए कोई ख्याति नहीं चाहिए थी. उन्हें धन की अभिलाषा नहीं थी. उन्हें केवल देश की चिंता थी जिसने उन्हें बड़ा व्यक्तित्व बनाया.

विदेश मंत्री रहते हुए उन्होंने ऐसा इंतजाम किया कि लोगों को आसानी से पासपोर्ट मिल सके. इतना ही नहीं वह विदेश में फंसे प्रत्येक भारतीय के लिए तुरंत सक्रिय होती थीं. उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान सैकड़ों की संख्या में विदेशों में फंसे लोगों की मदद की.

सबसे कम उम्र में बनी थीं मंत्री
सुधांशु मित्तल ने बताया कि सुषमा स्वराज सबसे कम उम्र में हरियाणा सरकार में मंत्री बनी थीं. उस समय वह महज 25 वर्ष की थीं. तभी वह भारतीय जनता पार्टी में आई थीं जब बीजेपी की केवल 2 सीटें संसद में थी. अपने श्रम और परिश्रम से उन्होंने आज बीजेपी को यहां तक पहुंचाया.

उस समय लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू, प्रमोद महाजन और गोविंदाचार्य बीजेपी को लगातार आगे बढ़ाने में लगे रहे. वह लालकृष्ण आडवाणी को अपना पिता तुल्य मानती थी और अंत तक उन्हें अपने पिता के रूप में ही देखती रहीं.

नहीं बनना चाहती थीं दिल्ली की मुख्यमंत्री
सुधांशु मित्तल ने बताया कि साल 1998 में जब उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के लिए पूछा तो उन्होंने इंकार कर दिया था. लेकिन, जब वाजपेयी जी ने इसे पार्टी का आदेश बता कर उनसे कहा तो उन्होंने तुरंत स्वीकार कर लिया.

सुषमा स्वराज जानती थी कि इसका उन्हें नुकसान होगा. लेकिन पार्टी के आदेश को उन्होंने स्वीकार किया. चुनाव में जाने पर उन्हें इसका नुकसान भी उठाना पड़ा और 2 साल तक वह मंत्रिमंडल में भी नहीं रही. लेकिन एक कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में वह काम करती रहीं.

बीमारी के चलते नहीं लड़ी थी चुनाव
सुधांशु मित्तल ने बताया कि किडनी का ऑपरेशन होने के बाद से उन्हें इन्फेक्शन का खतरा रहता था. इसलिए उन्होंने इस बार चुनाव नहीं लड़ा था. वह बाहरी दुनिया से अलग रहना चाहती थी ताकि उनके जीवन पर कोई संकट न आये. इसलिए ही उन्होंने सरकारी घर छोड़कर जंतर-मंतर पर रहना शुरू किया था. किसी को भी इस बात की भनक नहीं थी कि काल इस तरह से उन्हें छीन कर ले जाएगा.

शिमला/नई दिल्ली: पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के देहांत को भाजपा के वरिष्ठ नेता सुधांशु मित्तल ने केवल बीजेपी की नहीं बल्कि देश की बड़ी क्षति बताया है. उन्होंने कहा कि सुषमा स्वराज एक आदर्श व्यक्तित्व थीं. वह एक आदर्श नेता, कार्यकर्ता, महिला, दांपत्य जीवन की संगिनी एवं आदर्श भारतीय नारी का प्रतिबिंब थी. उन्होंने कहा कि ऐसे लोग भगवान अब बनाता ही नहीं है.

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'उन्हें केवल देश की चिंता थी'
भाजपा के वरिष्ठ नेता सुधांशु मित्तल ने बताया कि सुषमा स्वराज को किसी पद की चिंता नहीं थी. उन्हें अपने लिए कोई ख्याति नहीं चाहिए थी. उन्हें धन की अभिलाषा नहीं थी. उन्हें केवल देश की चिंता थी जिसने उन्हें बड़ा व्यक्तित्व बनाया.

विदेश मंत्री रहते हुए उन्होंने ऐसा इंतजाम किया कि लोगों को आसानी से पासपोर्ट मिल सके. इतना ही नहीं वह विदेश में फंसे प्रत्येक भारतीय के लिए तुरंत सक्रिय होती थीं. उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान सैकड़ों की संख्या में विदेशों में फंसे लोगों की मदद की.

सबसे कम उम्र में बनी थीं मंत्री
सुधांशु मित्तल ने बताया कि सुषमा स्वराज सबसे कम उम्र में हरियाणा सरकार में मंत्री बनी थीं. उस समय वह महज 25 वर्ष की थीं. तभी वह भारतीय जनता पार्टी में आई थीं जब बीजेपी की केवल 2 सीटें संसद में थी. अपने श्रम और परिश्रम से उन्होंने आज बीजेपी को यहां तक पहुंचाया.

उस समय लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू, प्रमोद महाजन और गोविंदाचार्य बीजेपी को लगातार आगे बढ़ाने में लगे रहे. वह लालकृष्ण आडवाणी को अपना पिता तुल्य मानती थी और अंत तक उन्हें अपने पिता के रूप में ही देखती रहीं.

नहीं बनना चाहती थीं दिल्ली की मुख्यमंत्री
सुधांशु मित्तल ने बताया कि साल 1998 में जब उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के लिए पूछा तो उन्होंने इंकार कर दिया था. लेकिन, जब वाजपेयी जी ने इसे पार्टी का आदेश बता कर उनसे कहा तो उन्होंने तुरंत स्वीकार कर लिया.

सुषमा स्वराज जानती थी कि इसका उन्हें नुकसान होगा. लेकिन पार्टी के आदेश को उन्होंने स्वीकार किया. चुनाव में जाने पर उन्हें इसका नुकसान भी उठाना पड़ा और 2 साल तक वह मंत्रिमंडल में भी नहीं रही. लेकिन एक कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में वह काम करती रहीं.

बीमारी के चलते नहीं लड़ी थी चुनाव
सुधांशु मित्तल ने बताया कि किडनी का ऑपरेशन होने के बाद से उन्हें इन्फेक्शन का खतरा रहता था. इसलिए उन्होंने इस बार चुनाव नहीं लड़ा था. वह बाहरी दुनिया से अलग रहना चाहती थी ताकि उनके जीवन पर कोई संकट न आये. इसलिए ही उन्होंने सरकारी घर छोड़कर जंतर-मंतर पर रहना शुरू किया था. किसी को भी इस बात की भनक नहीं थी कि काल इस तरह से उन्हें छीन कर ले जाएगा.

Intro:नई दिल्ली
पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के देहांत को भाजपा के वरिष्ठ नेता सुधांशु मित्तल ने केवल बीजेपी का नहीं बल्कि देश की बड़ी क्षति बताया है. उन्होंने कहा कि सुषमा स्वराज एक आदर्श व्यक्तित्व थीं. वह एक आदर्श नेता, कार्यकर्ता, महिला, दांपत्य जीवन की संगिनी एवं आदर्श भारतीय नारी का प्रतिबिंब थी. उन्होंने कहा कि ऐसे लोग भगवान अब बनाता ही नहीं है.


Body:भाजपा के वरिष्ठ नेता सुधांशु मित्तल ने बताया कि सुषमा स्वराज को किसी पद की चिंता नहीं थी. उन्हें अपने लिए कोई ख्याति नहीं चाहिए थी. उन्हें धन की अभिलाषा नहीं थी. उन्हें केवल देश की चिंता थी जिसने उन्हें बड़ा व्यक्तित्व बनाया. विदेश मंत्री रहते हुए उन्होंने लोगों को आसानी से पासपोर्ट मिल सके इसका इंतजाम किया. इतना ही नहीं वह विदेश में फंसे प्रत्येक भारतीय के लिए तुरंत सक्रिय होती थीं. उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान सैकड़ों की संख्या में विदेश में फंसे लोगों की मदद की.


सबसे कम उम्र में बनी थी मंत्री
सुधांशु मित्तल ने बताया कि वह सुषमा स्वराज सबसे कम उम्र में हरियाणा सरकार में मंत्री बनी थी. उस समय वह महज 25 वर्ष की थीं. वह उस समय भारतीय जनता पार्टी में आई थीं जब बीजेपी की केवल 2 सीटें संसद में थी. अपने श्रम और परिश्रम से उन्होंने आज बीजेपी को यहां तक पहुंचाया. उस समय लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू, प्रमोद महाजन और गोविंदाचार्य बीजेपी को लगातार आगे बढ़ाने में लगे रहे. वह लालकृष्ण आडवाणी को अपना पिता तुल्य मानती थी और अंत तक उन्हें अपने पिता के रूप में ही देखती रही.


नहीं बनना चाहती थी दिल्ली की मुख्यमंत्री
सुधांशु मित्तल ने बताया कि वर्ष 1998 में जब उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के लिए पूछा तो उन्होंने इंकार कर दिया था. लेकिन जब वाजपेयी जी ने इसे पार्टी का आदेश बता कर उनसे कहा तो उन्होंने तुरंत स्वीकार कर लिया. वह जानती थी कि इसका उन्हें नुकसान होगा. लेकिन पार्टी के आदेश को उन्होंने स्वीकार किया. चुनाव में जाने पर उन्हें इसका नुकसान भी उठाना पड़ा और 2 साल तक वह मंत्रिमंडल में भी नहीं रही. लेकिन एक कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में वह काम करती रहीं.


बीमारी के चलते नहीं लड़ी थी चुनाव
सुधांशु मित्तल ने बताया कि किडनी का ऑपरेशन होने के बाद से उन्हें इन्फेक्शन का खतरा रहता था. इसलिए उन्होंने इस बार चुनाव नहीं लड़ा था. वह बाहरी दुनिया से अलग रहना चाहती थी ताकि उनके जीवन पर कोई संकट न आये. इसलिए ही उन्होंने सरकारी घर छोड़कर यहां जंतर मंतर पर रहना शुरू किया था. किसी को भी इस बात की भनक नहीं थी कि काल इस तरह से उन्हें छीन कर ले जाएगा.


Conclusion:सीएनजी से होगा अंतिम संस्कार
सुधांशु मित्तल ने बताया कि उनके पार्थिव शरीर को अभी फिलहाल जंतर-मंतर स्थित उनके घर पर रखा गया है. यहां पर सुबह 11 बजे तक अंतिम दर्शन किए जाएंगे. इसके बाद यहां से उनके पार्थिव शरीर को भाजपा मुख्यालय में ले जाया जाएगा. वहां पर दोपहर तक आम लोग एवं पार्टी के कार्यकर्ता उनके अंतिम दर्शन कर सकेंगे. शाम लगभग 4 बजे उनके पार्थिव शरीर को लोदी कॉलोनी स्थित सीएनजी शवदाह गृह में ले जाया जाएगा, जहां उनका अंतिम संस्कार होगा.
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