शिमला: हर महीने दो प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat Katha )पड़ते है. इस दिन भगवान शंकर की पूजा-अर्चना (Shiva worship in Pradosh)की जाती है. हर माह दो त्रयोदशी आती है. एक शुक्ल और दूसरी कृष्ण पक्ष की. मान्यता है कि प्रदोष के समय भगवान शिव कैलाश पर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं और देवता उनका गुणगान करते हैं.
पौराणिक कथाओं की मानें, तो एक नगर में एक ब्राह्मण महिला रहती थी. पति का देहांत होने के बाद उसका कोई सहारा नहीं था, इसलिए सुबह वह अपने बेटे के साथ भीख मांगने निकलती थी. एक दिन महिला को घर लौटते समय एक लड़का घायल अवस्था में मिला. महिला उसे घर लेकर आ गई. वह लड़का कोई साधारण नहीं, बल्कि विदर्भ का राजकुमार था. शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बनाकर राज्य पर नियंत्रण कर लिया था, इसलिए वह भटक रहा था.
अब वो राजकुमार भी ब्राह्मण-पुत्र के साथ उनके घर रहने लगा. एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई. अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई. उन्हें भी राजकुमार पसंद आ गया. कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए. जिसके बाद दोनों की शादी हो गई.
ब्राह्मण महिला प्रदोष व्रत करने के साथ ही भगवान शिव की पूजा-अर्चना करती थी. प्रदोष व्रत के प्रभाव और गंधर्व राज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के साथ फिर से रहने लगा. राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया. मान्यता है कि जैसे ब्राह्मण महिला के प्रदोष व्रत के प्रभाव से दिन बदले, वैसे ही भगवान शिव अपने भक्तों के दिन फेर देते हैं.
ये भी पढ़ें : धन समृद्धि के लिए मां लक्ष्मी को करें खुश, ये उपाय बना सकते हैं मालामाल