शिमला: दो लोगों की दोस्ती में एक-दूसरे को छोटे-छोटे स्नेह से भरे तोहफे देना आम बात है, लेकिन एक मित्र अगर देश का मुखिया हो तो तोहफा बड़ा हो जाता है. इसे रोहतांग टनल के उदाहरण से समझा जा सकता है. बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने टशी दावा के मांगने पर उन्हें यह तोहफे में दिया था.
गौर रहे कि भारत के महान नेताओं में शुमार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने किशोरावस्था के मित्र टशी दावा के मांगने पर रोहतांग टनल तोहफे में दिया था. जो अब देश के लिए वरदान साबित होगा.
जानकारी के लिए बता दें कि टशी दावा उर्फ अर्जुन गोपाल लाहौल के ठोलंग गांव के रहने वाले थे. आजादी से पहले टशी दावा और अटल बिहारी वाजपेयी आरएसएस में एक साथ सक्रिय थे. दोनों वर्ष 1942 में गुजरात के बड़ोदरा में आयोजित संघ के एक प्रशिक्षण शिविर में मिले थे. जिस दौरान दोनों में गहरी दोस्ती हो गई.
टशी के मन में लाहौल घाटी की कठिन जिंदगी को लेकर काफी पीड़ा थी. वहीं, बर्फबारी के दौरान लाहौल घाटी छह महीने तक शेष दुनिया से कट जाती थी और उस बीच बीमार लोगों को स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल पाती थी. उन्होंने सोचा कि अगर लाहौल घाटी को मनाली से सुरंग के जरिए जोड़ दिया जाए तो यह सारी समस्याएं दूर हो सकती हैं.
इसी विचार को लेकर वर्ष 1998 में टशी अपने दो सहयोगियों के साथ दोस्त और तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी से मिलने के लिए दिल्ली पहुंचे. उन्होंने वाजपेयी को लाहौल का दुख सुनाया. जिस पर वाजपेयी ने तुरंत हामी भरी और फिर कुछ समय बाद केलांग के दौरे पर आए और रोहतांग टनल के निर्माण की घोषणा की.
अटल जी 16 अगस्त 2018 में दुनिया को अलविदा कह गए. ये विडंबना ही रही कि वे अपने ड्रीम प्रोजेक्ट को जनता को लोकार्पित नहीं पाए, लेकिन उनकी ये देन हिमाचल और देश कभी नहीं भूल पाएगा.
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