शिमला: हिमाचल में सेब उत्पादन (Apple production in Himachal) का सफर 100 साल से अधिक का हो गया है. पहाड़ी राज्य हिमाचल में सेब की सौगात लाने के श्रेय अमेरिकी मूल के सैमुअल इवांस स्टोक्स (American-born Samuel Evans Stokes) को जाता है. हिमाचल आकर सैमुअल स्टोक्स सत्यानंद स्टोक्स बन गए और यहां की जमीन पर सेब के रूप में समृद्धि रोप दी. पूरे प्रदेश को संपन्न करने वाली सेब बागवानी की नींव रखने वाले दादा सत्यानंद के पोते विजय स्टोक्स (Samuel Stokes grandson Vijay Stokes) ने अब उनकी स्मृति को और समृद्ध करते हुए कोटगढ़ में 50 बीघा जमीन इलाके के कम भूमि वाले बागवानों को निशुल्क भेंट करने का ऐलान किया है.
विजय स्टोक्स आईआईटी कानपुर के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के मुखिया (Vijay Stokes IIT Kanpur Head of Department of Mechanical Engineering) रहे हैं. कोटगढ़ उनकी कर्मभूमि है और सेब उत्पादन की हर अत्याधुनिक तकनीक से उन्होंने यहां के लोगों को परिचित करवाया है. विजय स्टोक्स को एहसास हुआ कि जिस भूमि ने उन्हें इतना मान सम्मान दिया उसका कुछ कर्ज चुकाने का प्रयास किया जाए. उन्होंने फैसला किया कि वे 50 बीघा जमीन कोटगढ़ की जनता को समर्पित करेंगे. उल्लेखनीय है कि हिमाचल में सेब उत्पादन की आर्थिकी चार से पांच हजार करोड़ के बीच है.
देश का एप्पल बाउल हिमाचल (Country Apple Bowl Himachal) को कहा जाता है. यहां शिमला, कुल्लू, मंडी, किन्नौर, लाहौल स्पीति और चंबा में सेब की पैदावार होती है. हिमाचल में सेब उत्पादन का 80 फीसदी हिस्सा शिमला जिला में होता है. शिमला के थानाधार-कोटगढ़ इलाके में स्टोक्स परिवार ने सेब उत्पादन की शुरुआत की थी. 100 साल के इस सफर में हिमाचल ने सेब उत्पादन में कई आयाम छुए हैं. सेब से समृद्धि का आलम यह है कि हिमाचल के 2 गांव क्यारी और मड़ावग एशिया के सबसे अमीर गांवों (Asia richest villages in Himachal) में शुमार रहे हैं.
विजय स्टोक्स कोटगढ़ में निरंतर सेब बागवानी की साधना में जुटे रहे. उन्होंने दूर-दराज तक के बागवानों को हमेशा मदद का हाथ बढ़ाया. अब उन्होंने खुद की जमीन में से 50 बीघा जमीन आम जनता को भेंट करने का ऐलान किया है. विजय स्टोक्स के इस फैसले की हर तरफ सराहना हो रही है. लोग उन्हें दानवीर के नाम से पुकार रहे हैं. विजय स्टोक्स का कहना है कि उनके पुरखों ने हिमाचल को अपनी कर्मभूमि बनाया था और वे इसका कर्ज उतारने का प्रयास कर रहे हैं.
विजय स्टोक्स ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से की थी. बाद में वे आईआईटी कानपुर में पढ़ाने लगे लेकिन सेब उत्पादन का जुनून उनका बिलकुल भी कम ना हुआ. इस समय वे 82 वर्ष के हैं, लेकिन बागवानी में खूब सक्रिय हैं. सेब उत्पादन के युवा चेहरों मनोज चौहान, पंकज डोगरा, पीयूष दिवान, संजीव चौहान, किशन वर्मा का कहना है कि स्टोक्स परिवार का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता. इन्होंने विजय स्टोक्स के 50 बीघा भूमि दान करने के फैसले को सराहनीय बताया है.
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उल्लेखनीय है कि कोटगढ़ के बारूबाग इलाके में सैमुअल स्टोक्स ने 105 साल पहले सेब का पहला पौधा लगाया था. भारतीय दर्शन से प्रभावित सैमुअल स्टोक्स बाद में सत्यानंद स्टोक्स हुए. उनके प्रयासों से हिमाचल के संघर्षशील व साधनहीन मनुष्यों के जीवन में आर्थिक क्रांति आई और इस समय हिमाचल के बागवान (gardeners in himachal) संपन्न व खुशहाल हैं. प्रदेश में चार लाख बागवान परिवार हैं. सेब उत्पादन यहां के लाखों लोगों की आजीविका है. यहां मौजूदा समय में सेब का सालाना चार हजार करोड़ रुपए का कारोबार होता है.
परंपरागत रॉयल किस्म के साथ-साथ यहां अब विदेशी किस्म के सेब भी खूब पैदा किए जाते हैं. अमेरिका, इटली, न्यूजीलैंड, चीन की सेब किस्में हिमाचल में सफलता से उगाई जा रही हैं. हिमाचल की विभिन्न सरकारों ने भी बागवानी को बढ़ावा देने के प्रयास किए. फलस्वरूप हिमाचल प्रदेश में 2.25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फल पैदा होते हैं. यदि वर्ष 1950-51 का आंकड़ा देखा जाए तो उस समय राज्य में महज 792 हेक्टेयर क्षेत्र बागवानी के अधीन था. इसी प्रकार, वर्ष 1950-51 में फलों का उत्पादन केवल 1200 टन था, जो आज बढ़कर 8.19 लाख टन तक पहुंच गया है.
यहां सेब का उत्पादन वर्ष 1950 में कुल चालीस हेक्टेयर भूमि में किया जाता था. इस समय एक लाख हेक्टेयर से भी अधिक भूमि पर सेब पैदा होता है. हिमाचल प्रदेश के कुल 12 जिलों में से सात जिलों में सेब पैदा होता है. शिमला जिला सबसे बड़ा सेब उत्पादक जिला है. हिमाचल में फल उत्पादन के तहत कुल क्षेत्र में से 49 प्रतिशत सेब के अधीन है. यहां फलों के कुल उत्पादन में 85 फीसदी हिस्सा सेब का है.
हिमाचल में सेब की परंपरागत रॉयल किस्म (Royal variety of apple) के अलावा सेब की विदेशी किस्में पैदा की जाती हैं. इनमें सुपरचीफ, स्कारलेट स्पर टू, वाशिंगटन स्पर, जेरोमाइन, रेड विलॉक्स, रेडलम गाला, स्कारलेट गाला, गेल गाला आदि किस्में सफलता से उगाई जा रही हैं. माकपा नेता व शिमला के मेयर संजय चौहान एक सफल बागवान भी हैं. शिमला के आईजीएमसी अस्पताल के सर्जरी विभाग (Surgery Department of Shimla IGMC Hospital) के प्रोफेसर आरएस झोबटा भी कुशल बागवान हैं.
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पीजीआई चंडीगढ़ से सर्जरी की मास्टर डिग्री के बाद आईजीएमसी अस्पताल में सेवाएं देना शुरू की और इस समय प्रोफेसर रैंक के डॉक्टर हैं. इसके अलावा कई नामी हस्तियां सेब बागीचे वाली हैं. यही नहीं, शिमला के बखोल गांव के युवा बागवान संजीव चौहान के नाम प्रति हेक्टेयर सेब उत्पादन का विश्व रिकॉर्ड भी है. सेब ने हिमाचल को इस कदर संपन्न किया है कि शिमला जिला के ऊपरी इलाकों में अधिकांश बागवान करोड़पति हैं.
स्टोक्स परिवार का राजनीति में भी खूब नाम रहा है. इसी परिवार की बहू विद्या स्टोक्स हिमाचल की राजनीति का जाना पहचाना चेहरा रही हैं. वे लंबे समय तक हॉकी इंडिया की अध्यक्ष भी रही हैं. हिमाचल सरकार में वे कैबिनेट मंत्री (cabinet minister in himachal government) रही हैं. सत्यानंद स्टोक्स के तीन बेटों में से प्रेमचंद सबसे बड़े थे और विजय स्टोक्स उन्हीं के बेटे हैं. वे विद्या स्टोक्स के भतीजे हैं. विजय स्टोक्स अपने पुरखों की बागवानी रुपी विरासत को बहुत अच्छे से संभाल रहे हैं.
विजय स्टोक्स ने अपने बागीचे में सेब तुड़ान से लेकर ग्रेडिंग और पैकिंग तक की अत्याधुनिक सुविधाएं जुटा रखी हैं. कोटगढ़ से संबंध रखने वाले भारद्वाज परिवार की सदस्य निधि भारद्वाज का कहना है कि उनके इलाके की पहचान स्टोक्स परिवार से है और उन्हें गर्व है कि स्टोक्स परिवार से उनका नजदीकी परिचय रहा है. उन्होंने विजय स्टोक्स के भूदान के फैसले की सराहना की है.
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