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शिमला में रि. इंजीनियर ने शुरू की ऑर्गेनिक खेती, बेसहारा गायों को भी दिया आश्रय

हिमाचल प्रदेश में नेचुरल फार्मिंग (Natural Farming in Himachal Pradesh) को लेकर सरकार प्राकृतिक खेती, खुशहाल किसान योजना चला रही है. इस योजना का लाभ प्रदेश के कई बागवान और किसान उठा रहे हैं. इसी कड़ी में अब नाय नाम सेवानिवृत्त इंजीनियर भगत सिंह राणा का भी जुड़ गया है. भगत सिंह राणा शिमला जिले के चिड़गांव के तहत संदासु गांव के रहने वाले हैं. उनके पास पास 25 बीघा जमीन है और वे सारी की सारी जमीन में प्राकृतिक खेती (Engineer started organic farming in Shimla) ही करते हैं.

Engineer started organic farming in Shimla
शिमला जिले में इंजीनियर ने शुरू की ऑर्गेनिक खेती
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Published : Dec 22, 2021, 7:13 PM IST

Updated : Jan 4, 2022, 1:33 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश बिजली बोर्ड से इंजीनियर के तौर पर सेवानिवृत्त भगत सिंह राणा अब ऑर्गेनिक खेती (organic farming in himachal) में नाम कमा रहे हैं. इतना ही नहीं उन्होंने हिमाचल में बेसहारा गायों (Stray cow in himachal) को भी सहारा दिया है. केमिकल के जहर से मुक्त खेती करने वाले भगत सिंह राणा ने बागवानी में भी प्राकृतिक खेती की विधि को अपनाया है. उन्होंने सुभाष पालेकर नेचुरल फार्मिंग का प्रशिक्षण लेकर वहां सीखे टिप्स आजमाए और सेब उत्पादन में प्रयोग किए.

परिणाम यह निकला कि केमिकल के जहर से मुक्त सेब विश्व ऑर्गेनिक मेला- 2019 दिल्ली में उनका सेब 180 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिका. भगत सिंह राणा शिमला जिले के चिड़गांव के तहत संदासु गांव के रहने वाले हैं. उनके पास पास 25 बीघा जमीन है और वे सारी की सारी जमीन में प्राकृतिक खेती (Engineer started organic farming in Shimla) ही करते हैं. भगत सिंह राणा ना केवल मक्की गेहूं और बेमौसमी सब्जियां उगाते हैं बल्कि पारंपरिक अनाज कोदा भी पैदा करते हैं. राणा का कहना है कि प्राकृतिक खेती में न्यूनतम खर्च होता है और सालाना डेढ़ लाख रुपए से अधिक लाभ मिलता है. जबकि रासायनिक खेती में 80 हजार रुपए खर्च करने पर महज 1 लाख 20 हजार की आय होती है.

देसी गाय का महत्व समझते हुए भगत सिंह राणा ने गौशाला भी संचालित की है. यहां 40 बेसहारा गाय आश्रय पा रही हैं. इन गायों के गोबर और गोमूत्र से प्राकृतिक खाद तथा जीवामृत बनता है. संदासु में अपने बागीचे में भगत सिंह राणा सेब की परंपरागत रॉयल डिलीशियस किस्म के अलावा रेड सुपर चीफ व स्पर किस्म के सेब भी उगा रहे हैं. साथ ही स्टोन फ्रूट (stone fruit in himachal) भी पैदा कर रहे हैं. राणा ने बताया कि सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने खेती और बागवानी में ऑर्गेनिक कॉन्सेप्ट लागू करने की ठानी.

ये भी पढ़ें: CM Jairam Kullu Tour: PM मोदी मंडी में करेंगे 11,279 करोड़ की विकासात्मक परियोजना का शुभारंभ

तीन साल पहले कृषि विभाग के जरिए उन्होंने कुफरी में 6 दिन तक सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के मॉडल (Subhash Palekar Natural Farming Model) का प्रशिक्षण लिया. उसके बाद खेतों में बेमौसमी सब्जियों में प्राकृतिक तरीके से केमिकल मुक्त खेती शुरू की. सफलता मिलने के बाद उन्होंने बागवानी में भी इसी मॉडल का प्रयोग किया. राणा के अनुसार उनके पास अपनी खुद की पाली हुई पांच देसी गाय हैं. वे आसपास के इलाके के किसानों बागवानों को भी प्राकृतिक खेती के तरीके बताते हैं.

साथ ही बागवानों की मदद भी करते हैं. उन्होंने कहा कि नेचुरल फार्मिंग से जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ी है. कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर ने कहा कि प्राकृतिक खेती समय की जरूरत है और भगत सिंह राणा जैसे किसानों और बागवानों ने इसे अपनाया है हम और किसानों को भी प्रोत्साहित कर रहे हैं सरकार इस दिशा में कार्य कर रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राज्यों से इस दिशा में कदम उठाने का सुझाव दिया है.

ये भी पढ़ें: BJP Working Committee meeting kullu: मंडी में होने वाली महारैली के लिए तैयार रहें बीजेपी कार्यकर्ता: मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर

हिमाचल प्रदेश में नेचुरल फार्मिंग (Natural Farming in Himachal Pradesh) को लेकर सरकार प्राकृतिक खेती, खुशहाल किसान योजना चला रही है. प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के कार्यकारी निदेशक प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल ने बताया कि प्रदेश के सभी 9.61 लाख किसानों को नेचुरल फार्मिंग से जोड़ा जाएगा. इस समय सवा लाख किसान इससे जुड़ चुके हैं और लाभ कमा रहे हैं. उन्होंने कहा कि हिमाचल में इस खेती से किसानों की आय अगले साल तक दोगुनी करने का प्रयास है.

हिमाचल में सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदमों की नीती आयोग ने भी सराहना की है. उन्होंने कहा कि वर्ष 2018 में राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत किए गए पहले बजट में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए 25 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया था. हिमाचल में 1.28 लाख किसान पहले से ही प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण ले चुके हैं. हिमाचल इस दिशा में देश के लिए एक उदाहरण बना है. उन्होंने कहा कि सेब राज्य हिमाचल में अब अधिक से अधिक सेब उत्पादक प्राकृतिक खेती को अपना रहे हैं.

ये भी पढ़ें: शिमला में क्रिसमस और नए साल के लिए उमड़ने लगे सैलानी, ओमीक्रॉन का भी नहीं दिख रहा खौफ

शिमला: हिमाचल प्रदेश बिजली बोर्ड से इंजीनियर के तौर पर सेवानिवृत्त भगत सिंह राणा अब ऑर्गेनिक खेती (organic farming in himachal) में नाम कमा रहे हैं. इतना ही नहीं उन्होंने हिमाचल में बेसहारा गायों (Stray cow in himachal) को भी सहारा दिया है. केमिकल के जहर से मुक्त खेती करने वाले भगत सिंह राणा ने बागवानी में भी प्राकृतिक खेती की विधि को अपनाया है. उन्होंने सुभाष पालेकर नेचुरल फार्मिंग का प्रशिक्षण लेकर वहां सीखे टिप्स आजमाए और सेब उत्पादन में प्रयोग किए.

परिणाम यह निकला कि केमिकल के जहर से मुक्त सेब विश्व ऑर्गेनिक मेला- 2019 दिल्ली में उनका सेब 180 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिका. भगत सिंह राणा शिमला जिले के चिड़गांव के तहत संदासु गांव के रहने वाले हैं. उनके पास पास 25 बीघा जमीन है और वे सारी की सारी जमीन में प्राकृतिक खेती (Engineer started organic farming in Shimla) ही करते हैं. भगत सिंह राणा ना केवल मक्की गेहूं और बेमौसमी सब्जियां उगाते हैं बल्कि पारंपरिक अनाज कोदा भी पैदा करते हैं. राणा का कहना है कि प्राकृतिक खेती में न्यूनतम खर्च होता है और सालाना डेढ़ लाख रुपए से अधिक लाभ मिलता है. जबकि रासायनिक खेती में 80 हजार रुपए खर्च करने पर महज 1 लाख 20 हजार की आय होती है.

देसी गाय का महत्व समझते हुए भगत सिंह राणा ने गौशाला भी संचालित की है. यहां 40 बेसहारा गाय आश्रय पा रही हैं. इन गायों के गोबर और गोमूत्र से प्राकृतिक खाद तथा जीवामृत बनता है. संदासु में अपने बागीचे में भगत सिंह राणा सेब की परंपरागत रॉयल डिलीशियस किस्म के अलावा रेड सुपर चीफ व स्पर किस्म के सेब भी उगा रहे हैं. साथ ही स्टोन फ्रूट (stone fruit in himachal) भी पैदा कर रहे हैं. राणा ने बताया कि सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने खेती और बागवानी में ऑर्गेनिक कॉन्सेप्ट लागू करने की ठानी.

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तीन साल पहले कृषि विभाग के जरिए उन्होंने कुफरी में 6 दिन तक सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के मॉडल (Subhash Palekar Natural Farming Model) का प्रशिक्षण लिया. उसके बाद खेतों में बेमौसमी सब्जियों में प्राकृतिक तरीके से केमिकल मुक्त खेती शुरू की. सफलता मिलने के बाद उन्होंने बागवानी में भी इसी मॉडल का प्रयोग किया. राणा के अनुसार उनके पास अपनी खुद की पाली हुई पांच देसी गाय हैं. वे आसपास के इलाके के किसानों बागवानों को भी प्राकृतिक खेती के तरीके बताते हैं.

साथ ही बागवानों की मदद भी करते हैं. उन्होंने कहा कि नेचुरल फार्मिंग से जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ी है. कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर ने कहा कि प्राकृतिक खेती समय की जरूरत है और भगत सिंह राणा जैसे किसानों और बागवानों ने इसे अपनाया है हम और किसानों को भी प्रोत्साहित कर रहे हैं सरकार इस दिशा में कार्य कर रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राज्यों से इस दिशा में कदम उठाने का सुझाव दिया है.

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हिमाचल प्रदेश में नेचुरल फार्मिंग (Natural Farming in Himachal Pradesh) को लेकर सरकार प्राकृतिक खेती, खुशहाल किसान योजना चला रही है. प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के कार्यकारी निदेशक प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल ने बताया कि प्रदेश के सभी 9.61 लाख किसानों को नेचुरल फार्मिंग से जोड़ा जाएगा. इस समय सवा लाख किसान इससे जुड़ चुके हैं और लाभ कमा रहे हैं. उन्होंने कहा कि हिमाचल में इस खेती से किसानों की आय अगले साल तक दोगुनी करने का प्रयास है.

हिमाचल में सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदमों की नीती आयोग ने भी सराहना की है. उन्होंने कहा कि वर्ष 2018 में राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत किए गए पहले बजट में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए 25 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया था. हिमाचल में 1.28 लाख किसान पहले से ही प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण ले चुके हैं. हिमाचल इस दिशा में देश के लिए एक उदाहरण बना है. उन्होंने कहा कि सेब राज्य हिमाचल में अब अधिक से अधिक सेब उत्पादक प्राकृतिक खेती को अपना रहे हैं.

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Last Updated : Jan 4, 2022, 1:33 PM IST
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