शिमला: देव भूमि हिमाचल प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध कम नहीं हो रहे हैं. खासकर बलात्कार के मामलों में बढ़ोतरी होना चिंताजनक है. कोरोना काल में वर्ष 2020 में बेशक बलात्कार के केस कुछ कम हुए, लेकिन पिछले साल यह फिर से बढ़ गए. अलबत्ता महिलाओं के खिलाफ क्रूरता (VIOLENCE AGAINST WOMEN IN HIMACHAL) के मामलों में जरूर गिरावट आई है. इसी तरह छेड़छाड़ के मामले भी कुछ कम हुए हैं, लेकिन बलात्कार के मामलों में कमी न आना चिंता का विषय है. दहेज प्रथा के खिलाफ जागरूकता के कारण अब दहेज को लेकर नवविवाहिताओं की हत्या के मामले कम हुए हैं.
कम हुए महिला के साथ क्रूरता के मामले- आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2018 में हिमाचल प्रदेश में विभिन्न थानों में बलात्कार के 345 मामले दर्ज हुए हैं. अगले साल यानी वर्ष 2019 में यह बढ़कर 360 हो गए. कोरोना काल के समय बलात्कार के मामलों में कुछ कमी आई. वर्ष 2020 में कोरोना संक्रमण के दौर में प्रदेश में 333 रेप के केस दर्ज किए गए. इस हल्की सी कमी के बाद पिछले साल यह मामले फिर बढ़कर 359 हो गए. इसी तरह महिलाओं के खिलाफ क्रूरता के मामले कोरोना काल में बढ़े थे, लेकिन अब उसमें कमी आई है. वर्ष 2018 में महिलाओं के खिलाफ क्रूरता के 183 मामले दर्ज किए गए. अगले साल यानी वर्ष 2019 में यह बढ़कर 229 हो गए. कोरोना काल में यह और अधिक हो गए.
वर्ष 2020 में महिला पर क्रूरता के 258 मामले दर्ज किए गए. पिछले साल 2021 में यह कम होकर 222 रहे. छेड़छाड़ के मामले जरूर कम हुए हैं लेकिन अभी भी उनकी संख्या चिंताजनक है. पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2018 में छेड़छाड़ के 515 मामले दर्ज किए गए थे. 2019 यह कम होकर 498 रिकॉर्ड किए गए. कोरोना काल में इनमें अचानक बढ़ोतरी हुई तब छेड़छाड़ के 539 मामले दर्ज किए गए. पिछले साल यह गिरावट के साथ 488 रिकॉर्ड किए गए.
हिमाचल मे दहेज से जुड़े मामलों में कमी- एक दशक में हिमाचल में महिलाओं के सशक्तिकरण पर काफी काम हुआ है. समाज में जागरूकता बढ़ी है. उच्च शिक्षित युवा अब दहेज को अधिक प्राथमिकता नहीं देते हैं. यही कारण है कि हिमाचल में दहेज उत्पीड़न और मौत के मामले भी अब सिंगल डिजिट में हैं. 2018 और 2019 में दहेज हत्या के चार-चार केस दर्ज हुए. 2020 में हिमाचल में केवल एक मामला दहेज हत्या का सामने आया. पिछले साल यानी 2021 में दहेज हत्या के दो मामले दर्ज किए गए.
साल-दर-साल बढ़ते रहे बलात्कार के मामले- हिमाचल में बलात्कार (RAPE IN HIMACHAL) के बाद महिलाओं की नृशंस हत्या के मामले भी सामने आए हैं. कोटखाई के गुड़िया रेप एंड मर्डर केस (GUDIYA RAPE CASE) ने पूरे हिमाचल को दहला दिया था. इसी तरह हाल ही में सोलन जिला में चाकू की नोक पर युवती का रेप हुआ था. वर्ष 2008 में हिमाचल प्रदेश में बलात्कार के मामलों की संख्या 157 थी. 2009 में यह बढ़कर 182 हो गई. वर्ष 2010 और 2011 में बलात्कार के मामलों में गिरावट आई. वर्ष 2010 में 160 और 2011 में यह संख्या 168 थी. वर्ष 2012 में राज्य में बलात्कार के 183 केस दर्ज किए गए. अगले ही साल यह मामले तेजी से बढ़े. 2013 में यह संख्या 250 हो गई. इसी तरह 2014 में बलात्कार के 284, 2015 व 2016 में 244, 244 मामले दर्ज किए गए. 2018 में तो यह बढ़कर 345 हो गए.
इंसानियत को शर्मसार करने वाले कुछ मामले- हिमाचल प्रदेश में कुछ घटनाएं इंसानियत को शर्मसार करने वाली भी सामने आई हैं. हमीरपुर जिला के लंबलू में पिता ने अपनी ही नाबालिग बेटी को बलात्कार का शिकार बनाया. दोषी को शिकायत के बाद गिरफ्तार किया गया. वहीं, 2019 में ऊना में एक शिक्षक द्वारा छात्रा से दुष्कर्म का मामला सामने आया था. वर्ष 2017 में जिला चंबा में एक शिक्षक ने फेर करने की धमकी देकर छात्रा का यौन शोषण किया. 2019 में सिरमौर जिला में अदालत ने एक शिक्षक को छात्रा के साथ दुराचार का दोषी पाए जाने पर 10 साल की सजा सुनाई थी. सिरमौर में ही सरकारी स्कूल के शिक्षक ने 10वीं की छात्रा का यौन शोषण किया था. बाद में छात्रा गर्भवती हुई और उसने बच्चे को जन्म दिया था.
बलात्कार की शिकार महिलाओं के प्रति नजरिया बदलने की जरूरत- समाजशास्त्री डॉ. ललित के अनुसार महिलाओं की गरिमा के प्रति समाज को और अधिक जागरूक करने की जरूरत है. सबसे पहले संस्कार परिवार में ही मिलते हैं. अभिभावकों को अपने बेटों को नारी की गरिमा का पाठ पढ़ाना चाहिए. समाज को भी बलात्कार की शिकार महिलाओं के प्रति नजरिया बदलने की जरूरत है. डीजीपी संजय कुंडू का कहना है कि महिलाओं के साथ अपराध रोकने के लिए पुलिस प्रशासन को भी समाज के सहयोग की जरूरत है.
महिलाओं की सुरक्षा के लिए भारत में अधिनियम
- अनैतिक व्यापार अधिनियम, 1956
- दहेज निषेध अधिनियम, 1961
- मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971
- महिलाओं का अश्लील चित्रण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1986
- सती (रोकथाम) अधिनियम, 1987
- राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990
- प्री-गर्भाधान और प्री-नेटल डायग्नोस्टिक तकनीक (लिंग चयन पर प्रतिबंध) अधिनियम, 1994
- घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005