शिमला: राजकीय संस्कृत परिषद का एक प्रतिनिधिमंडल (Rajkiya Sanskrit Parishad) प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर मनोज शैल की अध्यक्षता में बुधवार को मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री से उनके निवास ओक ओवर पर मिला. उन्होंने शास्त्री व भाषा अध्यापकों को टीजीटी पदनाम देने के बारे में सीएम को मांगपत्र भी सौंपा. उन्होंने कहा कि देश के अन्य राज्यों में शास्त्री व भाषा अध्यापकों को टीजीटी पदनाम दिया गया है, लेकिन हिमाचल में अभी तक यह व्यवस्था लागू नहीं हुई है.
ऐसे में अध्यापक जिस पद पर नियुक्त होते हैं, उसी पद से सेवानिवृत्त (Language teachers in Himachal) हो जाते हैं. उन्हें पूरे सेवाकाल में पदोन्नति का अवसर प्राप्त नहीं होता. प्रतिनिधिमंडल ने आग्रह किया कि शास्त्री व भाषा अध्यापकों को टीजीटी पदनाम दिलाने के लिए सरकार काम करें. उन्होंने कहा की भविष्य में जो भी भर्ती की जाए, उन्हें नियमों के आधार पर किया जाए.
परिषद के अध्यक्ष मनोज का कहना है कि जैसा सम्मान अंग्रेजी पढ़ाने (English teachers in Himachal) वालों को मिल रहा है, वैसा ही भाषा अध्यापक और संस्कृति पढ़ाने वालों को भी दिया जाए. उन्होंने कहा कि भाषा अध्यापकों को टीजीटी का पद नाम दिए जाने की मांग 1985 से चली आ रही है. उन्होंने (Himachal language teachers demands) कहा कि 11 जनवरी 2018 से वह यह मांग उठा रहे हैं कि भाषा अध्यापकों को टीजीटी का पद नाम दिया जाए, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ.
उन्होंने कहा कि गेटी थिएटर में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरा मुख्यमंत्री ने संस्कृत को दूसरी राज्य भाषा घोषित किया था, लेकिन उसके बाद भी भाषा अध्यापकों को टीजीटी का पद (language teachers meet CM Jairam) नाम नहीं दिया गया. मनोज ने कहा कि आज मुख्यमंत्री से मुलाकात हुई है और उनके समक्ष अपनी मांगें रखी गई हैं. मनोज ने कहा कि यदि इस बार बजट सत्र में उनकी मांगें नहीं मानी गई, तो वह प्रदेश भर में आंदोलन करेंगे. जिसकी जिम्मेदार सरकार की होगी.
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