शिमला: पहाड़ की चरागाहों और जंगलों में घास चरने वाली हिमाचली नस्ल की गाय (Himachali Pahari cow breed) अब देश की शान बनेगी. वनों में जड़ी बूटियों और खास किस्म की घास चरने के कारण पहाड़ी गाय के दूध में औषधीय गुण आते हैं. पशु वैज्ञानिकों ने रिसर्च के बाद यह पाया है कि हिमाचल प्रदेश के ऊंचाई वाले इलाकों के लिए देशी नस्ल की गाय ही उपयुक्त है. इसका संरक्षण और संवर्धन करने के लिए 4.64 करोड़ का प्रोजेक्ट शुरू हो गया है. प्रोजेक्ट के तहत पहाड़ी गाय की नस्ल का सुधार किया जाएगा साथ ही इसके संरक्षण को विशेष प्रयास किए जाएंगे. उल्लेखनीय है कि हिमाचल की पहचान मानी जाने वाली छोटे कद की गाय को नेशनल ब्यूरो ऑफ एनीमल जेनेटिक रिसोर्सेज (National Bureau of Animal Genetic Resources) ने देश की मान्यता प्राप्त नस्लों की सूची में शामिल किया है.
'हिमाचली पहाड़ी' गाय का पंजीकरण (Himachali Pahari Cow Registration) 'हिमाचली पहाड़ी' नाम से एक आधिकारिक नस्ल के रूप में दर्ज है. हिमाचल सरकार इस गाय को गौरी नाम देना चाहती थी और इसी नाम से रजिस्ट्रेशन के लिए नेशनल ब्यूरो को भेजा गया था. चूंकि हिमाचल पहाड़ी राज्य है और इस गाय को पहाड़ के नाम के साथ जोड़ना नेशनल ब्यूरो को अधिक उपयुक्त लगा. ऐसे में ब्यूरो ने इस गाय की नस्ल को 'हिमाचली पहाड़ी' नाम दिया. अभी तक के शोध में इस गाय का न केवल दूध (himachali pahari cow breed milk) औषधीय गुणों से भरपूर पाया गया है बल्कि गौ मूत्र में भी कई गुण मिले हैं. ऐसे में इस गाय की नस्ल का और सुधार होने से हिमाचल के पशु पालकों को लाभ मिलेगा. साथ ही इसके दूध के गुणों को देखते हुए राष्ट्रीय स्तर पर दूध और दूध से बने उत्पादों की मार्केटिंग (Marketing of milk products) भी हो सकेगी.
गौरतलब है कि पहाड़ी गाय के घी को उत्तम मानते हुए हिमाचल के पड़ोसी राज्यों में भी इसकी डिमांड है. जयराम सरकार के पशुपालन मंत्री वीरेंद्र कंवर (Animal Husbandry Minister Virender Kanwar) ने सिरमौर के कोटला बड़ोग में अनुसंधान केंद्र काम करेगा. इस गाय से पैदा हुए बछड़ों की भी नस्ल सुधारी जाएगी. हिमाचल के पशुपालन क्षेत्र में 'हिमाचली पहाड़ी' गाय का संरक्षण होने से पशुपालकों को आर्थिक लाभ होगा. नेशनल ब्यूरो में देशी नस्ल की अन्य गायों जैसे साहिवाल, रेड सिन्धी, गिर सरीखी विख्यात नस्ल के साथ 'हिमाचली पहाड़ी' भी शामिल हुई है.
पशुपालन विभाग के अनुसार हिमाचल के कुल्लू, मंडी, चंबा, कांगड़ा, सिरमौर, लाहौल-स्पीति आदि जिलों में 'हिमाचली पहाड़ी' गाय पाई जाती हैं. एक अनुमान के अनुसार इनकी संख्या 8 लाख से अधिक है. अब इसका संरक्षण होने से शोध कार्य आगे बढ़ेगा. पहले चरण में 4.64 करोड़ का प्रोजेक्ट शुरू हुआ है. इसकी नस्ल सुधार के बाद प्रयास किया जाएगा कि यह गाय पहले के मुकाबले अधिक दूध दे. हिमाचल में पशुपालकों को सरकार कई तरह की सुविधाएं दे रही है.
सरकारी एजेंसियां गौ पालकों से दूध खरीदती हैं. हिमाचल में सरकारी क्षेत्र में संबंधित एजेंसियां दूध, दही, मक्खन, पनीर आदि उपलब्ध करवाती हैं. हाल ही में राज्य सरकार ने विटामिन ए और डी के गुणों से भरपूर फोर्टिफाइड दूध (Fortified milk) हिम गौरी का भी शुभारंभ किया है. राज्य सरकार खेती किसानी के साथ-साथ पशुपालन के जरिए किसानों की आय दोगुनी करना चाहती है. हिमाचल में अभी ग्रामीण इलाकों से डेढ़ लाख लीटर दूध रोजाना इकट्ठा किया जाता है. यह दूध मिल्क फेड इकट्ठा करती है.
पशुपालन मंत्री वीरेंद्र कंवर ने बताया कि मिल्क फेड राज्य के अन्य जिलों में भी प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित करने की संभावनाएं तलाश रहा है. उल्लेखनीय है कि हिमाचल में गौ संवर्धन के लिए आयोग भी स्थापित है इसके जरिए देशी नस्ल की गायों को संरक्षित किया जा रहा है. राज्य सरकार ने 'हिमाचली पहाड़ी' का संरक्षण करने के लिए केंद्र को 10 करोड़ का प्रोजेक्ट भेजा था. जिसका आरंभिक चरण शुरू हो चुका है. पशुपालन विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर स्वर्ण सिंह सेन ने बताया कि 'हिमाचली पहाड़ी' नस्ल को लेकर वैज्ञानिक तौर पर शोध भी जारी है. यह नस्ल अपने बेहतरीन गुणों के कारण अलग महत्व रखती है. इसके दूध में ना केवल औषधीय गुण हैं बल्कि गोमूत्र भी खेती किसानी के लिए लाभदायक है. इस गाय के पालने से किसानों की आर्थिकी भी सुधरेगी.
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