शिमला: ब्रिटिशकाल में शिमला देश की समर कैपिटल (shimla summer capital of india) रही है. शिमला के हृदय स्थल रिज मैदान पर शान से खड़ी क्राइस्ट चर्च की इमारत (christ church in shimla) यहां की सबसे फोटोजेनिक इमारत है. देश विदेश के सैलानी इस इमारत के साथ फोटो खींचने और उसे यादगार के तौर पर रखने के लिए लालायित रहते हैं. ब्रिटिश काल में क्रिसमस के दौरान यहां खूब रौनक होती थी. क्रिसमस सेलिब्रेशन का यह सिलसिला निरन्तर जारी है.
शिमला की खास पहचान व्हाइट क्रिसमस (white christmas in himachal) है. शिमला वासी और यहां आने वाले सैलानी इस आस में रहते हैं कि क्रिसमस पर्व के दिन आसमान से बर्फ के फाहे गिरते देखने का अवसर मिले. इसके लिए सैलानियों की भीड़ उमड़ती है. हालांकि कई सालो से शिमला में क्रिसमस पर बर्फबारी (snowfall on christmas in shimla) नही हुई है. 2016 को क्रिसमस पर बर्फबारी हुई थी. इससे पहले 1991 में ही क्रिसमस पर बर्फ देखने को मिली थी.
हालांकि, मौसम विभाग ने क्रिसमस से पहले बर्फबारी की संभावना जताई है. ऐसे में 25 दिसंबर को भी बर्फ गिरने के आसार हैं. मौसम विभाग के निदेशक सुरेंद्र पाल का कहना है कि क्रिसमस पर 2016 में बर्फ गिरी थी और 23 दिसंबर को फिर मौसम खराब रहने वाला है. इस बार उम्मीद है 25 दिसंबर को राजधानी शिमला में बर्फबारी हो सकती है.
वहीं, सैलानी भी व्हाइट क्रिसमस की उम्मीद लेकर शिमला आ रहे हैं अभी फिलहाल मौसम साफ बना हुआ है. जिससे सैलानियों को निराश होकर लौटना पड़ रहा है. सैलानियों का कहना है कि बर्फबारी की उम्मीद लेकर शिमला आये थे, लेकिन बर्फ देखने को नहीं मिली है. क्रिसमस पर बर्फबारी की उम्मीद है और तब तक यहीं रहेंगे.
राजधानी शिमला की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि देखें तो वर्ष 1815 में शिमला एक छोटा सा गांव था और इसका नाम श्यामला था. यहां पहले गोरखा शासकों का राज था. उसके बाद यह पहाड़ी गांव अंग्रेजों के अधीन आया. अंग्रेजों ने यहां के वातावरण को इंग्लैंड की तरह सुरम्य पाया. बाद में अंग्रेज हुकूमत ने इसे भारत की समर कैपिटल बनाने का फैसला किया.
अंग्रेजों ने यहां कई ऐतिहासिक इमारतें बनवाईं. सबसे पहली इमारत कैनेडी हाउस थी. इसके अलावा यहां क्राइस्ट चर्च, रेलवे बोर्ड बिल्डिंग, सेंट्रल टेलीग्राफ ऑफिस, टाउन हाल (नगर निगम), वायसरीगल लॉज व गेयटी थियेटर सरीखी इमारतें शामिल हैं, लेकिन क्राइस्ट चर्च की शान सबसे निराली है. पीले रंग की ये इमारत क्राइस्ट चर्च को राजधानी का ताज कहा जाता है. वर्ष 1857 में नियो गोथिक कला में बना यह चर्च एंग्लीकेन ब्रिटिशन कम्युनिटी के लिए बनाया गया था. जिसे उस समय सिमला कहते थे.
यह चर्च काफी किलोमीटर दूर से एक ताज की तरह दिखाई देता है. क्राइस्ट चर्च को कर्नल जेटी बोयलियो ने 1844 में डिजाइन किया था. 1846 में इसकी नींव रखी गई थी और 1856 में यह बनकर तैयार हुआ. यह उत्तरी भारत में दूसरा सबसे पुराना चर्च है. जिसकी खूबसूरती आज भी लोगों को लुभाती है. अंग्रेजी शासनकाल में बना यह चर्च आज भी शिमला की शान बना हुआ है.
इसका निर्माण करीब 13 साल बाद 1857 में शुरू किया गया. यह लोकप्रिय और प्रसिद्ध स्थान शिमला घूमने आए पर्टयकों के लिए एक मुख्य आकर्षण का केंद्र है. हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में स्थित यह भारत के ब्रिटिश शासन के लंबे समय तक चलने वाली विरासतों में से एक है. साथ ही, शिमला का सबसे लोकप्रिय और प्रसिद्ध पर्टयक स्थान भी है.
इस धार्मिक स्थान का निर्माण वास्तुकला की नव-गोथिक शैली में किया गया है. यदि आप हिमाचल प्रदेश की यात्रा का प्लान बना रहे हैं तो एक बार इस स्थान की यात्रा अवश्य करें. शिमला घूमने आने वाले पर्टयकों को इस धार्मिक चर्च में अपना कुछ समय व्यतीत करना चाहिए. यहां आप की आत्मा को बेहद शांति और सुकून मिलेगा.
इस चर्च परिसर के अंदर कांच की खिड़कियां लगी हुई हैं. जो दान, भाग्य, विश्वास, आशा, धैर्य और मानवता का प्रतिनिधित्व करती हैं. हर साल बहुत से पर्टयक यहां घूमने और समय व्यतीत करने के लिए आते हैं. क्राइस्ट चर्च ब्रिटिश राज की स्थायी विरासतों में से एक मानी जाती है.
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला का यह क्राइस्ट चर्च शिमला शहर के आसपास के कई क्षेत्रों से दिखाई देता है. रिज पर स्थित यह क्राइस्ट चर्च ब्रिटिश राज की स्थायी विरासतों में से एक मानी जाती है. इस खूबसूरत क्राइस्ट चर्च को कर्नल जेटी. बोइल्यू ने 1844 में डिजाइन किया था. 10 जनवरी 1857 को मद्रास के बिशप थॉमस डेल्ट्रे, बिशप द्वारा चर्च को संरक्षित किया गया था.
चर्च के इतिहास के बारे में यहां के इंचार्ज सोहन लाल बताते हैं कि यह चर्च नार्थ इंडिया के सबसे पुराने चर्चों में से एक है. साल 1846 में इसकी नींव रखी गई थी और 1856 में यह बनकर तैयार हुआ. शिमला में वायसरॉय, गवर्नर और कई ब्रिटिश उच्च अधिकारी रहते थे. 1947 तक कोई भी भारतीय क्रिश्चियन इस चर्च में अराधना करने के लिए नहीं आ सकता था. भारतीयों के लिये सेन्ट थॉमस चर्च था जो अब एक स्कूल है, लेकिन 1947 के बाद सारे हिंदुस्तानी यहां आने शुरू हो गए.
उन्होंने बताया कि चर्च की बेल भी काफी समय से खराब पड़ी थी. जो हमने पिछले साल ठीक करवा दी. यहां पर ऑर्गन भी है जिसे प्रार्थना के समय बजाया जाता है. इसे 1849 में इंग्लैंड से लाया गया था. उन्होंने बताया कि इस चर्च की मरम्मत चर्च मेंबर के डोनेशन और यहां आने वाले विजिटर के दान से इकट्ठा हुई राशि से कराया जाता है.