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कोरोना संकट: सरकारी मदद के बावजूद मुसीबत में घुमंतू पशुपालक, वेटरीनरी सुविधाओं की कमी - Wanderer cattleman in trouble

घुमंतू पशुपालकों की सबसे प्रमुख समस्या पशुओं की चिकित्सा जांच की है. साथ ही पशुपालक भेड़ का मीट बेचते थे, जो अब संभव नहीं है. रोना के कारण स्थितियां सामान्य नहीं हैं, जिससे डर का भी माहौल है.

Migrant shepherd facing problem
घुमंतू पशुपालक
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Published : Apr 11, 2020, 11:09 PM IST

Updated : Apr 12, 2020, 10:23 AM IST

शिमला : हिमाचल प्रदेश में गर्मियों का सीजन आते ही घुमंतू पशुपालक मैदानी चरागाहों से पहाडिय़ों की ओर निकल जाते हैं, लेकिन कोरोना संकट के इस दौर में उन पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है. ये सही है कि राज्य सरकार ने घुमंतू पशुपालकों की समस्याओं को देखते हुए उन्हें लॉकडाउन से छूट देते हुए आवाजाही की अनुमति दी है, परंतु कई समस्याएं अब भी दूर नहीं हुई है.

सबसे प्रमुख समस्या है पशुओं की चिकित्सा जांच की. पशु औषधालयों में केवल आपात चिकित्सा सुविधा ही है. ऐसे में मैदानी इलाकों की चरागाहों में जाने से पहले पशुओं की रूटीन जांच व टीकाकरण की मुहिम प्रभावित हो रही है. साथ ही पशुपालक भेड़ का मीट बेचते थे, जो अब संभव नहीं है. इसके अलावा बकरियों व भैंस के दूध को भी बेचना मुश्किल हो रहा है. अब उन्हें एकत्रित दूध का घी बनाना पड़ रहा है.

वीडियो

हिमाचल घुमंतू पशुपालक महासभा की सचिव पवना कुमारी का कहना है कि सरकार ने उनकी समस्याओं को दूर करने का प्रयास जरूर किया है, लेकिन कोरोना के कारण स्थितियां सामान्य नहीं हैं. डर का भी माहौल है. महासभा ने अपनी समस्याओं को लेकर पशुपालन विभाग व संबंधित जिला प्रशासन सहित खासकर जिला कांगड़ा के डीसी को पत्र भी लिखा है. राज्य सरकार ने मार्च के अंतिम सप्ताह आदेश जारी कर कहा था कि घुमंतू पशुपालकों को आवाजाही से छूट है. साथ ही उनके लिए आवश्यक सामान की आपूर्ति के निर्देश भी दिए गए.

फिलहाल, भेड़-बकरियों के साथ पहाड़ों की तरफ निकलने वाले पालकों को भेड़ों की डिपिंग व टीकाकरण को लेकर समस्या आ रही है. इसके अलावा भेड़ों की ऊन काटने की भी परेशानी है. ऊन से कई तरह के उत्पाद तैयार होते हैं. भेड़पालक बकरियों व गुज्जर समुदाय के लोग भैंसों का दूध हलवाइयों को बेचते थे. दुकानें बंद होने के कारण दूध की बिक्री नहीं हो रही. अब दूध से मक्खन व घी बनाना पड़ रहा है.

राज्य में 60 हजार के करीब घूमंतू पशुपालक परिवार हैं. भेड़पालकों के पास 22 लाख से अधिक भेड़ें व बकरियों के रूप में पशुधन है. गुज्जरों के पास प्रदेश भर में 20 हजार के करीब भैंसें हैं. महासभा ने राज्य सरकार से आग्रह किया है कि भेड़ों-बकरियों व अन्य पालतु पशुओं की चिकित्सा जांच की पहले जैसी व्यवस्था करवाई जाए.

राज्य सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि पशु चिकित्सक समूहों में पालतु पशुओं की जांच कर रहे हैं. राज्य सरकार की तरफ से सभी को हरसंभव सहायता देने का प्रयास है. पशुपालन मंत्री वीरेंद्र कंवर के अनुसार राज्य सरकार जिला प्रशासन के माध्यम से इस संकट के समय में सभी पशुपालकों को सुविधाएं दे रही है. चरागाहों के लिए उनकी मूवमैंट पर रोक नहीं लगाई गई है. साथ ही पशु चिकित्सकों को प्रदेश भर में घुमंतू पशुपालकों के पशुधन की जांच व टीकाकरण के लिए कहा गया है.

शिमला : हिमाचल प्रदेश में गर्मियों का सीजन आते ही घुमंतू पशुपालक मैदानी चरागाहों से पहाडिय़ों की ओर निकल जाते हैं, लेकिन कोरोना संकट के इस दौर में उन पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है. ये सही है कि राज्य सरकार ने घुमंतू पशुपालकों की समस्याओं को देखते हुए उन्हें लॉकडाउन से छूट देते हुए आवाजाही की अनुमति दी है, परंतु कई समस्याएं अब भी दूर नहीं हुई है.

सबसे प्रमुख समस्या है पशुओं की चिकित्सा जांच की. पशु औषधालयों में केवल आपात चिकित्सा सुविधा ही है. ऐसे में मैदानी इलाकों की चरागाहों में जाने से पहले पशुओं की रूटीन जांच व टीकाकरण की मुहिम प्रभावित हो रही है. साथ ही पशुपालक भेड़ का मीट बेचते थे, जो अब संभव नहीं है. इसके अलावा बकरियों व भैंस के दूध को भी बेचना मुश्किल हो रहा है. अब उन्हें एकत्रित दूध का घी बनाना पड़ रहा है.

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हिमाचल घुमंतू पशुपालक महासभा की सचिव पवना कुमारी का कहना है कि सरकार ने उनकी समस्याओं को दूर करने का प्रयास जरूर किया है, लेकिन कोरोना के कारण स्थितियां सामान्य नहीं हैं. डर का भी माहौल है. महासभा ने अपनी समस्याओं को लेकर पशुपालन विभाग व संबंधित जिला प्रशासन सहित खासकर जिला कांगड़ा के डीसी को पत्र भी लिखा है. राज्य सरकार ने मार्च के अंतिम सप्ताह आदेश जारी कर कहा था कि घुमंतू पशुपालकों को आवाजाही से छूट है. साथ ही उनके लिए आवश्यक सामान की आपूर्ति के निर्देश भी दिए गए.

फिलहाल, भेड़-बकरियों के साथ पहाड़ों की तरफ निकलने वाले पालकों को भेड़ों की डिपिंग व टीकाकरण को लेकर समस्या आ रही है. इसके अलावा भेड़ों की ऊन काटने की भी परेशानी है. ऊन से कई तरह के उत्पाद तैयार होते हैं. भेड़पालक बकरियों व गुज्जर समुदाय के लोग भैंसों का दूध हलवाइयों को बेचते थे. दुकानें बंद होने के कारण दूध की बिक्री नहीं हो रही. अब दूध से मक्खन व घी बनाना पड़ रहा है.

राज्य में 60 हजार के करीब घूमंतू पशुपालक परिवार हैं. भेड़पालकों के पास 22 लाख से अधिक भेड़ें व बकरियों के रूप में पशुधन है. गुज्जरों के पास प्रदेश भर में 20 हजार के करीब भैंसें हैं. महासभा ने राज्य सरकार से आग्रह किया है कि भेड़ों-बकरियों व अन्य पालतु पशुओं की चिकित्सा जांच की पहले जैसी व्यवस्था करवाई जाए.

राज्य सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि पशु चिकित्सक समूहों में पालतु पशुओं की जांच कर रहे हैं. राज्य सरकार की तरफ से सभी को हरसंभव सहायता देने का प्रयास है. पशुपालन मंत्री वीरेंद्र कंवर के अनुसार राज्य सरकार जिला प्रशासन के माध्यम से इस संकट के समय में सभी पशुपालकों को सुविधाएं दे रही है. चरागाहों के लिए उनकी मूवमैंट पर रोक नहीं लगाई गई है. साथ ही पशु चिकित्सकों को प्रदेश भर में घुमंतू पशुपालकों के पशुधन की जांच व टीकाकरण के लिए कहा गया है.

Last Updated : Apr 12, 2020, 10:23 AM IST
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