शिमला: अब हिमाचल में भी लंपी वायरस (lampi Virus in Himachal Pradesh) ने दस्तक दे दी है. लंपी वायरस का कहर इंसानों में नहीं बल्कि जानवरों में है. शिमला जिले में इस वायरल ने दर्जनों पशुओं को अपनी चपेट में ले लिया है. इसमें भी ज्यादा प्रभावित गाय है. लंपी वायरस से प्रभावित पशुओं की संख्या में इजाफा हो रहा है. जिससे लोगों मे भी खौफ का माहौल बना हुआ है. लोग एक दूसरे के घरों में जाने से डर रहे हैं. शिमला के कसुम्पटी विधानसभा के बड़ागांव सहित कई गांवों में ये बीमारी तेजी से फैल रही है और एक दर्जन गायों की मौत भी हो चुकी है और बड़ागांव के आसपास ही 200 के करीब पशु (Lampi Virus spreading rapidly) इसकी चपेट में आ गए हैं. वहीं, बीमारी को लेकर अभी तक पशु पालन विभाग बेखबर है.
बीमारी के बाद पशु पालकों में हड़कंप मच (Lampi Virus In Cow) गया है और दूध तक बिकना बंद हो गया है. इस बीमारी से पशुओं में शरीर में कई गांठें बन जाती हैं. इसके अलावा पशुओं में वजन कम होने, मुंह से तरल पदार्थ निकलने, बुखार और दूध कम होने की शिकायतें सामने आ रही हैं. पशु पालन विभाग को शिकायत भी की है और मौके पर जाकर अधिकारियों डॉक्टरों ने पशुओं की जांच भी की है, लेकिन बीमारी का पूरी तरह से पता नहीं चल पाया है. हालांकि विभाग द्वारा वैक्सीन लगाने का काम शुरू कर दिया है.
वहीं, स्थानीय विधायक अनिरुद्ध सिंह ने इसकी जांच के मुख्यमंत्री और पशु पालन लिए पशु पालन विभाग के अधिकारियों से पशु पालकों को दवाई और मुआवजा देने की मांग की है. उन्होंने कहा लंपी वायरस के मामले उनकी विधानसभा में समाने आ रहे हैं कई पशु इसकी चपेट में आ गए हैं और काफी गाय मर भी गई हैं. इसको लेकर पशुपालन विभाग को भी अवगत करवाया गया है और इसका इलाज करने को कहा गया है. उन्होंने कहा की उनके क्षेत्र में काफी लोग दूध का काम करते हैं और यही उनका रोजी रोटी का साधन भी है. इस बीमारी की वजह से पशु मर रहे हैं जिन लोगों के पशु मर रहे हैं उन्हें सरकार तुरंत मुआवजा दे.
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बड़ागांव की स्थानीय निवासी जिया लाल ने कहा कि पशु तो बीमार हो रहे हैं, लेकिन साथ ही लोग अब एक दूसरे के घर में जाने से भी कतरा रहे हैं. लोगों में दशहत का माहौल हो गया है कि कहीं यह रोग उनके घर में न आ जाए और पशुओं को न लग जाए. यह रोग गाय के पैरों से फोड़ों के रूप में निकल रहा है और धीरे-धीरे यह पूरे शरीर में फैलता जा रहा है. गाय बीमार हो जा रही है और खाना पीना छोड़ रही है. जिसके बाद पशुओं की मृत्यु भी हो रही है.
स्थानीय निवासी बिट्टू ने कहा कि उनकी (Lumpy virus in Shimla) गाय इस रोग से मर गई है और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बहुत गरीब हैं और दूध बेचकर ही वह अपना गुजर बसर करते हैं. सरकार जल्द ही इस ओर कुछ कदम उठाए. वहीं, स्थानीय महिला वंदना और निवासी जिया लाल ने कहा कि अब कठिनाई यह है कि लोग अब स्वस्थ पशुओं का दूध लेने से भी कतरा रहे हैं. लोगों अब उनसे दूध लेना बंद कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि एक तो बीमार पशु दूध नहीं दे रहे जो एक आध लीटर दूध दे भी रहा है उसे वह फेंक रहे हैं. उन्होंने कहा कि अगर समय रहते इसका समाधान नहीं किया गया तो लोग दूध पीने से भी परहेज करेंगे. स्थानीय लोगों ने सरकार से मांग की है कि जल्द इस बीमारी की रोकथाम के लिए कुछ कदम उठाए जाएं जिससे बेजुबान पशुओं में फैल रहे इस रोग को रोका जा सके.
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क्या है लंपी वायरस: लंपी वायरस, पशुओं (what is lampi virus) में फैलने वाला एक चर्म रोग (Lampi Skin Desease) है. राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश और गुजरात में भी इसका संक्रमण बढ़ा है. जानकारी के मुताबिक, इस वायरस की देश में एंट्री पाकिस्तान के रास्ते हुई है. इस बीमारी से ग्रसित जानवरों के शरीर पर सैकड़ों की संख्या में गांठे उभर आती हैं. साथ ही तेज बुखार, मुंह से पानी टपकना शुरू हो जाता है. इससे पशुओं को बहुत ज्यादा कमजोरी महसूस होती है. उसे चारा खाने और पानी पीने में भी परेशानी होती है. यह एक संक्रामक बीमारी है जो मच्छर, मक्खी और जूं आदि के काटने या सीधा संपर्क में आने से फैलती है. कम प्रतिरोधक क्षमता वाली गायें शीघ्र ही इस वायरस की शिकार हो जाती है. बाद में यह वायरस एक से दूसरे पशुओं में फैल जाता है.
लंपी वायरस से ऐसे बचाएं अपने पशुओं को: खास तौर से गायों में लगातार फैल रहे लंपी वायरस ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है. गौशालाओं के बाहर पशुपालकों के पशु भी लंपी वायरस की चपेट में आने लगे हैं. राज्य सरकार इस वायरस पर नियंत्रण पाने के प्रयास कर रही है लेकिन फिलहाल यह काबू में नहीं आया है. सरकार ने पशुपालकों से अपील की है कि वे जागरूकता बरतते हुए अपनी गायों को इस वायरस की चपेट में आने से बचाएं. यह बीमारी लाइलाज है. ऐसे में एहतियात बरतना बेहद जरूरी है.
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बचाव ही इलाज है-
1. इस बीमारी के प्रारंभिक लक्षण नजर आने पर पशुओं को दूसरे जानवरों से अलग कर दें. इलाज के लिए नजदीकी पशु चिकित्सा केन्द्र से संपर्क करें.
2. बीमार पशु को चारा पानी और दाने की व्यवस्था अलग बर्तनों में करें.
3. रोग ग्रस्त क्षेत्रों में पशुओं की आवाजाही रोकें.
4. जहां ऐसे पशु हों, वहां नीम के पत्तों को जलाकर धुआं करें, जिससे मक्खी, मच्छर आदि को भगाया जा सके.
5. पशुओं के रहने वाली जगह की दीवारों में आ रही दरार या छेद को चूने से भर दें. इसके साथ कपूर की गोलियां भी रखी जा सकती हैं, इससे मक्खी, मच्छर दूर रहते हैं.
6. जानवरों को बैक्टीरिया फ्री करने के लिए सोडियम हाइपोक्लोराईट के 2 से 3 फीसदी घोल का छिड़काव करें.
7. मरने वाले जानवरों के संपर्क में रही वस्तुओं और जगह को फिनाइल और लाल दवा आदि से साफ कर दें.
8. संक्रामक रोग से मृत पशु को गांव के बाहर लगभग डेढ़ मीटर गहरे गड्ढे में चूने या नमक के साथ दफनाएं.
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