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KING की तरह पार्टी को संभालते थे राजनीति के 'सिंह', इस बार 'राजा साहब' के बिना चुनावी रण में कांग्रेस

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Published : Apr 24, 2022, 4:16 PM IST

वीरभद्र सिंह की मौजूदगी ही कांग्रेस के लिए संजीवनी थी. पिछले साल वे देह से स्मृति हो गए. उनके देहांत के बाद उपजी सहानुभूति लहर ने ही मंडी लोकसभा व तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में कांग्रेस को जीत दिलाई. लेकिन अब कांग्रेस को उनके चमत्कारी नेतृत्व के बिना ही मैदान में उतरना पड़ेगा. कांग्रेस ने घोषणा की है कि (Himachal assembly elections) वो बिना सीएम फेस चुनाव लड़ेगी.

Role of Virbhadra Singh in Himachal Congress
हिमाचल विधानसभा चुनाव

शिमला: हिमाचल कांग्रेस की चुनावी राजनीति के साथ-साथ सत्ता और संगठन में वीरभद्र सिंह कांग्रेस का चेहरा थे. चुनाव के समय कांग्रेस के सभी नेता वीरभद्र रूपी छतरी के नीचे एकजुट हो जाते थे. दशकों तक हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह कांग्रेस की नैया के खवैया बने रहे. ये पहली बार है, जब कांग्रेस बिना वीरभद्र सिंह चुनावी मैदान में होगी. वीरभद्र सिंह कठिन समय में हिमाचल कांग्रेस को हर तरह के संकट से उबारते रहे. जनता के नेता के रूप में उनकी छवि का ही कमाल था कि वे अपने निर्वाचन क्षेत्र में प्रचार के लिए नहीं जाते थे और पूरे प्रदेश में पार्टी को जिताने के लिए घूमते थे. वर्ष 2012 के चुनाव में हाईकमान ने देखा कि कैसे वीरभद्र सिंह हारी हुई बाजी को पलटने में कामयाब हुए थे.

उस समय भाजपा सत्तासीन थी और मिशन रिपीट के आसार दिख रहे थे. वीरभद्र सिंह केंद्र की राजनीति से वापस हिमाचल (role of virbhadra singh in himachal politics) आए. उस समय चौधरी बीरेंद्र सिंह हिमाचल कांग्रेस के प्रभारी थे. वीरभद्र सिंह समर्थकों ने अपने नेता के प्रति ऐसी जोरदार नारेबाजी से कांग्रेस कार्यालय को गुंजाया कि चौधरी बीरेंद्र सिंह हैरत में पड़ गए. तब चुनाव में वीरभद्र सिंह ने पार्टी को जिताने का जिम्मा लिया और अपने समर्थकों को टिकट आवंटन में हाथ ऊपर रखा. पार्टी चुनाव जीत गई और वीरभद्र सिंह छठी बार हिमाचल के सीएम बने.

इस साल वीरभद्र सिंह के बिना चुनावी रण में उतरेगी कांग्रेस.


हिमाचल कांग्रेस के लिए संजीवनी थे वीरभद्र सिंह: वीरभद्र सिंह की मौजूदगी ही कांग्रेस के लिए संजीवनी थी. पिछले साल वे देह से स्मृति हो गए. उनके देहांत के बाद उपजी सहानुभूति लहर ने ही मंडी लोकसभा व तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में कांग्रेस को जीत दिलाई. लेकिन अब कांग्रेस को उनके चमत्कारी नेतृत्व के बिना ही मैदान में उतरना पड़ेगा. कांग्रेस ने घोषणा की है कि वो बिना सीएम फेस चुनाव लड़ेगी. वहीं, वीरभद्र सिंह के रहते ये संभव ही नहीं था कि कांग्रेस में कोई और सीएम बनने की सोचे.

कारण ये था कि कांग्रेस में कोई नेता उन के कद का था नहीं और वीरभद्र सिंह अपने विरोधियों को दो टूक कहते थे कि अपने निर्वाचन क्षेत्र से बाहर निकल नहीं सकते तो सीएम कैसे बनेंगे. अपनी मौजूदगी के दौरान विद्या स्टोक्स और कौल सिंह ने वीरभद्र सिंह के समक्ष चुनौती बनने की कोशिश की थी, लेकिन वे कामयाब नहीं हुए. यहां तक कि वीरभद्र सिंह हाईकमान के समक्ष भी अपना हठ नहीं छोड़ते थे. हाईकमान को भी अहसास था कि बिना वीरभद्र सिंह हिमाचल में कांग्रेस सत्ता में नहीं आ सकती.


जनता की नब्ज पर हाथ रखते थे वीरभद्र सिंह: वीरभद्र सिंह को समस्त हिमाचल के विधानसभा क्षेत्र में जनता (Role of Virbhadra Singh in Himachal Congress) अपनेपन से अपनाती थी. वे किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में जनता के साथ कनेक्ट कर लेते थे. छह बार सीएम बनने में उनकी लोकप्रिय छवि भी बड़ा कारण थी. वे जनता की नब्ज पर हाथ रखते थे. उन्होंने जब शिमला ग्रामीण से अपने बेटे विक्रमादित्य सिंह को (Role of Virbhadra Singh in Himachal Congress) चुनाव मैदान में उतारने की बात अपने समर्थकों से कही तो उन्हें चाहने वालों ने भरोसा दिया कि विक्रमादित्य सिंह को जिताएंगे. यही हुआ भी. विक्रमादित्य सिंह शिमला ग्रामीण से जीते और वीरभद्र सिंह ने अर्की से जीत हासिल की.


इस साल वीरभद्र सिंह के बिना चुनावी रण में उतरेगी कांग्रेस: अब ये चुनाव कांग्रेस बिना वीरभद्र सिंह के (Himachal assembly elections) लड़ने जा रही है. ये बात अलग है कि कांग्रेस वीरभद्र सिंह की स्मृतियों और उनसे जुड़ी भावनाओं को चुनाव प्रचार में भुनाएगी. प्रतिभा सिंह व विक्रमादित्य सिंह भी वीरभद्र मॉडल की बात कर रहे हैं. साथ ही कांग्रेस उनके कार्यो को लेकर जनता के बीच जाएगी.

हिमाचल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर का कहना है कि वीरभद्र सिंह के (HP Assembly Election 2022) ना होने से पार्टी को बहुत बड़ी क्षति हुई है. वीरभद्र सिंह ने प्रदेश में अभूतपूर्व विकास करवाया है और उन विकास कार्यों को लेकर ही जनता के बीच कांग्रेसी चुनावों में जाएगी. उन्होंने कहा कि नगर निगम और उपचुनाव भी वीरभद्र के बिना ही कांग्रेस चुनावी मैदान में उतरी थी और जीत दर्ज की थी लेकिन वीरभद्र सिंह के कमी हमेशा कांग्रेस में खलती रहेगी.

ये भी पढ़ें: प्रतिभा सिंह की वायरल ऑडियो पहुंची आलाकमान तक, सुधीर बोले- ओछे हथकंडे अपनाने वालों का होगा खुलासा

शिमला: हिमाचल कांग्रेस की चुनावी राजनीति के साथ-साथ सत्ता और संगठन में वीरभद्र सिंह कांग्रेस का चेहरा थे. चुनाव के समय कांग्रेस के सभी नेता वीरभद्र रूपी छतरी के नीचे एकजुट हो जाते थे. दशकों तक हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह कांग्रेस की नैया के खवैया बने रहे. ये पहली बार है, जब कांग्रेस बिना वीरभद्र सिंह चुनावी मैदान में होगी. वीरभद्र सिंह कठिन समय में हिमाचल कांग्रेस को हर तरह के संकट से उबारते रहे. जनता के नेता के रूप में उनकी छवि का ही कमाल था कि वे अपने निर्वाचन क्षेत्र में प्रचार के लिए नहीं जाते थे और पूरे प्रदेश में पार्टी को जिताने के लिए घूमते थे. वर्ष 2012 के चुनाव में हाईकमान ने देखा कि कैसे वीरभद्र सिंह हारी हुई बाजी को पलटने में कामयाब हुए थे.

उस समय भाजपा सत्तासीन थी और मिशन रिपीट के आसार दिख रहे थे. वीरभद्र सिंह केंद्र की राजनीति से वापस हिमाचल (role of virbhadra singh in himachal politics) आए. उस समय चौधरी बीरेंद्र सिंह हिमाचल कांग्रेस के प्रभारी थे. वीरभद्र सिंह समर्थकों ने अपने नेता के प्रति ऐसी जोरदार नारेबाजी से कांग्रेस कार्यालय को गुंजाया कि चौधरी बीरेंद्र सिंह हैरत में पड़ गए. तब चुनाव में वीरभद्र सिंह ने पार्टी को जिताने का जिम्मा लिया और अपने समर्थकों को टिकट आवंटन में हाथ ऊपर रखा. पार्टी चुनाव जीत गई और वीरभद्र सिंह छठी बार हिमाचल के सीएम बने.

इस साल वीरभद्र सिंह के बिना चुनावी रण में उतरेगी कांग्रेस.


हिमाचल कांग्रेस के लिए संजीवनी थे वीरभद्र सिंह: वीरभद्र सिंह की मौजूदगी ही कांग्रेस के लिए संजीवनी थी. पिछले साल वे देह से स्मृति हो गए. उनके देहांत के बाद उपजी सहानुभूति लहर ने ही मंडी लोकसभा व तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में कांग्रेस को जीत दिलाई. लेकिन अब कांग्रेस को उनके चमत्कारी नेतृत्व के बिना ही मैदान में उतरना पड़ेगा. कांग्रेस ने घोषणा की है कि वो बिना सीएम फेस चुनाव लड़ेगी. वहीं, वीरभद्र सिंह के रहते ये संभव ही नहीं था कि कांग्रेस में कोई और सीएम बनने की सोचे.

कारण ये था कि कांग्रेस में कोई नेता उन के कद का था नहीं और वीरभद्र सिंह अपने विरोधियों को दो टूक कहते थे कि अपने निर्वाचन क्षेत्र से बाहर निकल नहीं सकते तो सीएम कैसे बनेंगे. अपनी मौजूदगी के दौरान विद्या स्टोक्स और कौल सिंह ने वीरभद्र सिंह के समक्ष चुनौती बनने की कोशिश की थी, लेकिन वे कामयाब नहीं हुए. यहां तक कि वीरभद्र सिंह हाईकमान के समक्ष भी अपना हठ नहीं छोड़ते थे. हाईकमान को भी अहसास था कि बिना वीरभद्र सिंह हिमाचल में कांग्रेस सत्ता में नहीं आ सकती.


जनता की नब्ज पर हाथ रखते थे वीरभद्र सिंह: वीरभद्र सिंह को समस्त हिमाचल के विधानसभा क्षेत्र में जनता (Role of Virbhadra Singh in Himachal Congress) अपनेपन से अपनाती थी. वे किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में जनता के साथ कनेक्ट कर लेते थे. छह बार सीएम बनने में उनकी लोकप्रिय छवि भी बड़ा कारण थी. वे जनता की नब्ज पर हाथ रखते थे. उन्होंने जब शिमला ग्रामीण से अपने बेटे विक्रमादित्य सिंह को (Role of Virbhadra Singh in Himachal Congress) चुनाव मैदान में उतारने की बात अपने समर्थकों से कही तो उन्हें चाहने वालों ने भरोसा दिया कि विक्रमादित्य सिंह को जिताएंगे. यही हुआ भी. विक्रमादित्य सिंह शिमला ग्रामीण से जीते और वीरभद्र सिंह ने अर्की से जीत हासिल की.


इस साल वीरभद्र सिंह के बिना चुनावी रण में उतरेगी कांग्रेस: अब ये चुनाव कांग्रेस बिना वीरभद्र सिंह के (Himachal assembly elections) लड़ने जा रही है. ये बात अलग है कि कांग्रेस वीरभद्र सिंह की स्मृतियों और उनसे जुड़ी भावनाओं को चुनाव प्रचार में भुनाएगी. प्रतिभा सिंह व विक्रमादित्य सिंह भी वीरभद्र मॉडल की बात कर रहे हैं. साथ ही कांग्रेस उनके कार्यो को लेकर जनता के बीच जाएगी.

हिमाचल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर का कहना है कि वीरभद्र सिंह के (HP Assembly Election 2022) ना होने से पार्टी को बहुत बड़ी क्षति हुई है. वीरभद्र सिंह ने प्रदेश में अभूतपूर्व विकास करवाया है और उन विकास कार्यों को लेकर ही जनता के बीच कांग्रेसी चुनावों में जाएगी. उन्होंने कहा कि नगर निगम और उपचुनाव भी वीरभद्र के बिना ही कांग्रेस चुनावी मैदान में उतरी थी और जीत दर्ज की थी लेकिन वीरभद्र सिंह के कमी हमेशा कांग्रेस में खलती रहेगी.

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