शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में दिव्यांगजनों की नियुक्तियों को नियमित (Recruitment of Divyang in Himachal) की बजाय अनुबंध आधार पर करने को गैरकानूनी ठहराया (Himachal Pradesh High Court big decision) है. न्यायाधीश सत्येन वैद्य ने प्रार्थी नितिन कुमार की याचिका को स्वीकार करते हुए दिव्यांजनों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए 1995 के अधिनियम का हवाला देते हुए यह व्यवस्था दी. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 1995 के अधिनियम के तहत आरक्षण के लाभ का फायदा दिव्यांगों को अस्थाई, एडहॉक अथवा अनुबंध आधार पर नियुक्ति देने से नहीं होगा.
ऐसा करने से इस अधिनियम का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा. इस अधिनियम के तहत आरक्षण का मतलब रोजगार देना है जो दिव्यांग को स्थायित्व प्रदान करे और ऐसा केवल नियमित नियुक्ति देकर ही किया जा सकता है. कोर्ट ने दिव्यांग प्रार्थी की अनुबंध आधार पर हुई नियुक्ति (appointment of Divyang on contract basis) को नियमित नियुक्ति मानते हुए उसे सभी सेवा लाभ जारी करने के आदेश दिए. मामले के अनुसार प्रार्थी दिव्यांग कोटे से वर्ष 2006 में बाल विकास परियोजना अधिकारी ऊना के कार्यालय में अनुबंध आधार पर बतौर चतुर्थ श्रेणी कर्मी नियुक्त हुआ था. प्रार्थी का कहना था कि जब वह नियुक्त हुआ था तब विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मियों के भर्ती नियमों में अनुबंध आधार पर नियुक्ति का प्रावधान नहीं था.
अनुबंध आधार पर नियुक्ति का नियम 19 अप्रैल 2007 को बनाया गया इसलिए नए नियम उस पर लागू नहीं होते. कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान पाया कि 20 मई 1998 के नियमों के तहत विभाग में 124 पद चपरासी के स्वीकृत थे. जिन्हें नियमित आधार पर भरा जाना था. यह नियम 18 अप्रैल 2007 तक लागू रहे. प्रार्थी की नियुक्ति 6 नवम्बर 2006 को हुई थी इसलिए उसे अनुबंध की बजाय नियमित तौर पर नियुक्त किया जाना चाहिए था. कोर्ट ने दिव्यांगों के अधिकारों के लिए बनाए अधिनियम 1995 का हवाला देते हुए भी अनुबंध आधार पर दिव्यांग को दी गई नियुक्ति को सही न मानते हुए उसे वर्ष 2006 से नियमित मानते हुए सभी सेवालाभ देने के आदेश दिए.
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