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अतिरिक्त जिलाधीश सिरमौर को हाईकोर्ट का आदेश, नाहन नगर परिषद के कार्यों की करें जांच

प्रदेश हाईकोर्ट ने निर्देश जारी किए है कि राज्य सरकार नौकरी देने, अनुबंधों में प्रवेश देने, कोटा या लाइसेंस जारी करने जैसे सार्वजानिक हित के कार्य करती है, वहां सरकार मनमाने तरीके से कार्रवाई नहीं कर सकती है.

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Published : Dec 27, 2019, 8:48 PM IST

Updated : Dec 27, 2019, 9:18 PM IST

शिमला: प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने एक एक सुनवाई के बाद कहा कि राज्य सरकार नौकरी देने, अनुबंधों में प्रवेश देने, कोटा या लाइसेंस जारी करने जैसे सार्वजानिक हित के कार्य करती है, वहां सरकार मनमाने तरीके से कार्रवाई नहीं कर सकती है.

न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने अपने निर्णय में कहा कि राज्य सरकार की शक्ति या विवेक तर्कसंगत, प्रासंगिक और गैर-भेदभावपूर्ण मानकों पर आधारित होना चाहिए. नगर परिषद पांवटा साहिब द्वारा नियमों के विपरीत दुकान अलॉट किए जाने के मामले में हाईकोर्ट ने अतिरिक्त जिलाधीश सिरमौर प्रियंका वर्मा को आदेश दिए हैं कि वो नगर परिषद द्वारा पिछले एक दशक में हुए कार्य के बारे में जांच करे और अनुपालना रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष पेश करे. साथ ही न्यायालय ने प्रार्थी सुमन अग्रवाल को कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करने पर पचास हजार रूपये की कॉस्ट लगाई है.

मिली जानकारी के अनुसार प्रार्थी ने बिना किसी प्रोपोजल या विज्ञापन के नगर परिषद के पास आवेदन किया कि वो अपने खर्चे पर दुकान बनाना चाहती है. रिकॉर्ड का अवलोकन के बाद न्यायालय ने पाया कि आश्चर्य वाली बात ये है कि नगर परिषद ने भी साल 2009 में प्रार्थी से इस एवज में दस हजार रूपये पहले भी ले लिए थे. उसके बाद प्रार्थी बार-बार नगर परिषद कार्यालय में बाकी के पैसे जमा करवाने के लिए जाती रही, लेकिन नगर परिषद के अधिकारी उसकी बात टालते रहे.

साल 2013 में प्रार्थी को पता चला कि नगर परिषद उक्त दुकान को किसी दूसरे व्यक्ति को अलॉट कर रही है. तभी प्रार्थी ने निचली अदालत के समक्ष सिविल सूट दायर किया जिसे बाद में प्रार्थी ने नया सिविल सूट दाखिल करने की छूट के साथ वापिस ले लिया. प्रार्थी ने नगर परिषद नाहन द्वारा 30 अगस्त 2013 को पारित प्रस्ताव नंबर 12 को हाईकोर्ट के समक्ष याचिका के माध्यम से चुनौती दी, जिसके तहत प्रतिवादी मदन शर्मा को दुकान आवंटित की गई थी.

मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि नगर परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर दुकान अलॉट तो कर दी, लेकिन ये सब नगर परिषद ने अलॉटमेंट नियमों को दरकिनार करके किया है. अदालत ने नगर परिषद को आदेश दिए कि वो उक्त प्रतिवादी से 6% वार्षिक ब्याज दर से उस समय की नीलामी की कीमत वसूले जोकि अधीक्षण अभियंता लोक निर्माण विभाग नाहन द्वारा तय की जाएगी.

शिमला: प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने एक एक सुनवाई के बाद कहा कि राज्य सरकार नौकरी देने, अनुबंधों में प्रवेश देने, कोटा या लाइसेंस जारी करने जैसे सार्वजानिक हित के कार्य करती है, वहां सरकार मनमाने तरीके से कार्रवाई नहीं कर सकती है.

न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने अपने निर्णय में कहा कि राज्य सरकार की शक्ति या विवेक तर्कसंगत, प्रासंगिक और गैर-भेदभावपूर्ण मानकों पर आधारित होना चाहिए. नगर परिषद पांवटा साहिब द्वारा नियमों के विपरीत दुकान अलॉट किए जाने के मामले में हाईकोर्ट ने अतिरिक्त जिलाधीश सिरमौर प्रियंका वर्मा को आदेश दिए हैं कि वो नगर परिषद द्वारा पिछले एक दशक में हुए कार्य के बारे में जांच करे और अनुपालना रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष पेश करे. साथ ही न्यायालय ने प्रार्थी सुमन अग्रवाल को कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करने पर पचास हजार रूपये की कॉस्ट लगाई है.

मिली जानकारी के अनुसार प्रार्थी ने बिना किसी प्रोपोजल या विज्ञापन के नगर परिषद के पास आवेदन किया कि वो अपने खर्चे पर दुकान बनाना चाहती है. रिकॉर्ड का अवलोकन के बाद न्यायालय ने पाया कि आश्चर्य वाली बात ये है कि नगर परिषद ने भी साल 2009 में प्रार्थी से इस एवज में दस हजार रूपये पहले भी ले लिए थे. उसके बाद प्रार्थी बार-बार नगर परिषद कार्यालय में बाकी के पैसे जमा करवाने के लिए जाती रही, लेकिन नगर परिषद के अधिकारी उसकी बात टालते रहे.

साल 2013 में प्रार्थी को पता चला कि नगर परिषद उक्त दुकान को किसी दूसरे व्यक्ति को अलॉट कर रही है. तभी प्रार्थी ने निचली अदालत के समक्ष सिविल सूट दायर किया जिसे बाद में प्रार्थी ने नया सिविल सूट दाखिल करने की छूट के साथ वापिस ले लिया. प्रार्थी ने नगर परिषद नाहन द्वारा 30 अगस्त 2013 को पारित प्रस्ताव नंबर 12 को हाईकोर्ट के समक्ष याचिका के माध्यम से चुनौती दी, जिसके तहत प्रतिवादी मदन शर्मा को दुकान आवंटित की गई थी.

मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि नगर परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर दुकान अलॉट तो कर दी, लेकिन ये सब नगर परिषद ने अलॉटमेंट नियमों को दरकिनार करके किया है. अदालत ने नगर परिषद को आदेश दिए कि वो उक्त प्रतिवादी से 6% वार्षिक ब्याज दर से उस समय की नीलामी की कीमत वसूले जोकि अधीक्षण अभियंता लोक निर्माण विभाग नाहन द्वारा तय की जाएगी.


 प्रदेश हाईकोर्ट ने निर्देश जारी किए कि राज्य सरकार जहां नौकरी देने,अनुबंधों में प्रवेश देने, कोटा या लाइसेंस जारी करने या अन्य प्रकार के अनुदान देने जैसे सार्वजानिक हित के कार्य करती है वहां सरकार मनमाने तरीके से कार्रवाई नहीं कर सकती।न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने अपने निर्णय में कहा कि  राज्य सरकार की  शक्ति या विवेक तर्कसंगत, प्रासंगिक और गैर-भेदभावपूर्ण मानको पर आधारित होना चाहिए। नगर परिषद् पौण्टा साहिब द्वारा नियमो के विपरीत दूकान अलॉट किये जाने के मामले में हाईकोर्ट ने अतिरिक्त जिलाधीश सिरमौर प्रियंका वर्मा को आदेश दिए कि वह नगर परिषद् द्वारा पिछले एक दशक में हुए कार्य बारे जाँच करे और अनुपालना रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष पेश करे। साथ ही न्यायालय ने प्रार्थी सुमन अग्रवाल द्वारा कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करने पर उसे पचास हजार रूपये की कॉस्ट लगाईं है। 
मामले के अनुसार प्रार्थी ने बिना किसी प्रोपोजल या विज्ञापन के नगर परिषद् के पास आवेदन किया कि वह अपने खर्चे पर दूकान बनाना चाहती है।  रिकॉर्ड का अवलोकन के पश्चात न्यायालय ने पाया कि आश्चर्य वाली बात यह है कि नगर परिषद् ने भी वर्ष 2009 में प्रार्थी से इस एवज में दस हजार रूपये अडवांस भी ले लिए। प्रार्थी उसके बाद बार बार नगर परिषद् के कार्यलय में बाकी के पैसे जमा करवाने के लिए जाती रही लेकिन नगर परिषद्  के अधिकारी उसकी बात टालते रहे। वर्ष 2013 में प्रार्थी को पता चला कि नगर परिषद्  उक्त दुकान को किसी दुसरे व्यक्ति को अलॉट कर रही है तभी प्रार्थी ने निचली अदालत के समक्ष सिविल सूट दायर किया जिसे बाद में प्रार्थी ने नया सिविल सूट दाखिल करने की छूट के साथ वापिस ले लिया। प्रार्थी ने  नगर परिषद नाहन द्वारा  30 अगस्त 2013 को पारित प्रस्ताव नंबर 12 को हाईकोर्ट के समक्ष याचिका के माध्यम से चुनौती दी जिसके तहत प्रतिवादी मदन शर्मा को दुकान आवंटित की गई थी। मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि नगर परिषद् द्वारा पारित  प्रस्ताव के आधार पर दुकान अलॉट तो कर दी लेकिन यह सब नगर परिषद् ने अलॉटमेंट नियमो को दरकिनार कर किया। अदालत ने नगर परिषद् को आदेश दिए कि वह उक्त प्रतिवादी से 6% वार्षिक ब्याज दर से उस समय की नीलामी की कीमत बसूले जोकि अधीक्षण अभियंता लोक निर्माण विभाग नाहन द्वारा तय की जाएगी। अगर यह प्रतिवादी दुकान की कीमत देने के लिए तैयार न हो तो इस दुकान को नियमों के मुताबिक किसी अन्य व्यक्ति को अलॉट किया जाए।
Last Updated : Dec 27, 2019, 9:18 PM IST
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