शिमला: हिमाचल में कांग्रेस और भाजपा सरकारों के समय विवादों में रहे जंगी-थोपन-पोवारी बिजली परियोजना (jangi thopan powari power project) में अपफ्रंट प्रीमियम के मामले में जयराम सरकार (Himachal government) अब हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में याचिका दाखिल करेगी. हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने इस मामले में अडानी समूह (Himachal Government vs Adani Group) को 280 करोड़ रुपए की अपफ्रंट मनी लौटाने के आदेश दिए हैं.
लीगल ओपिनियन के आधार पर याचिका होगी दाखिल: जिला किन्नौर में करीब 800 मेगावाट की ये परियोजना कई पड़ावों से गुजरने के बाद 2018 में सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड को सौंपी गई है, लेकिन उससे पहले राज्य सरकार के समक्ष 280 करोड़ रुपए की अपफ्रंट मनी (Adani Power Upfront Premium) का मामला चुनौती की तरह है. हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने डिवीजन बेंच में जाने का फैसला किया है. हिमाचल सरकार के ऊर्जा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव आरडी धीमान के अनुसार याचिका का ड्राफ्ट कानून विभाग के पास लीगल ओपिनियन के लिए भेजा गया था. अब ड्राफ्ट के आधार पर याचिका दाखिल की जाएगी.
इस महीने अंत तक याचिका दाखिल करने की तैयारी: उर्जा मंत्री सुखराम चौधरी के मुताबिक राज्य सरकार को ऐसा प्रतीत होता है कि हाईकोर्ट के फैसले में सरकार के कई तथ्यों पर ध्यान नहीं दिया गया है. ऐसे में सरकार के पास डिवीजन बेंच में जाने का विकल्प है. हाईकोर्ट की एकल पीठ ने इस केस में अडानी समूह को 280 करोड़ रुपए लौटाने के आदेश (HC orders HP govt to return rs 280 crore to Adani) दिए हैं. अब उस फैसले के खिलाफ डिवीजन बेंच में याचिका दाखिल की जाएगी. आसार है कि इसी महीने के अंत तक याचिका दाखिल कर दी जाए.
प्रभावितों के साथ सहमित नहीं : वैसे हाईकोर्ट ने सरकार को दो महीने में पैसे लौटाने का आदेश दिया था और उसकी मियाद पूरी हो चुकी है, लेकिन सरकार ने डिवीजन बेंच में जाने का फैसला किया है तो इस पर कोई ऑब्जेक्शन किसी भी पक्ष का नहीं आएगा. किन्नौर जिले में जंगी-थोपन-पोवारी पावर प्रोजेक्ट पहले एक हजार मेगावाट का था. बाद में इसे करीब 800 मेगावाट का किया गया. इस पर सतलुज जलविद्युत निगम लिमिटेड काम करेगी, लेकिन अभी तक प्रभावितों के साथ सहमति नहीं बन पाई.
2005 में प्रोजेक्ट का पहला पड़ाव पूरा हुआ: जनजातीय जिला किन्नौर में अक्टूबर 2005 में जंगी-थोपन-पोवारी प्रोजेक्ट पर पहला पड़ाव पूरा हुआ था. तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने इस परियोजना का टेंडर जारी किया था, फिर 2005 में ही विदेशी कंपनी ब्रेकल कॉरपोरेशन ने इस प्रोजेक्ट में सबसे अधिक बोली लगाई और प्रीमियम के तौर पर 280.06 करोड़ जमा किए. परियोजना में लगातार होती देरी के कारण राज्य सरकार ने फिर से बोली लगाने का फैसला किया. रिलायंस ने इस योजना में रुचि दिखाई लेकिन फिर हाथ खींच लिया. तब ब्रेकल कंपनी ने हिमाचल सरकार से पत्राचार किया और अगस्त 2013 को अडानी समूह के कंसोर्टियम पार्टनर के तौर पर 280 करोड़ रुपए की रकम को अप-टू-डेट ब्याज के साथ वापस करने के लिए आग्रह किया.
हाईकोर्ट पहुंचा मामला: मामला हाईकोर्ट में पहुंचा और पूर्व की कांग्रेस सरकार ने पहले तो अक्टूबर 2017 में अडानी ग्रुप को 280 करोड़ की रकम लौटाने का फैसला किया, लेकिन बाद में इससे पीछे हट गई. हिमाचल प्रदेश में सत्ता परिवर्तन से पहले 5 दिसंबर 2017 को वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अडानी समूह को 280 करोड़ रुपए वापस करने से जुड़ा फैसला विदड्रा कर लिया.
रिलायस समूह भी था इंट्रस्टेड: अपफ्रंट मनी वो पैसा होता है जो कंपनी प्रति मेगावाट की तय दर से सरकार को देती है. वैसे तो ये पैसा नॉन रिफंडेबल होता है, लेकिन सरकार किन्हीं कारणों से इस पैसे को वापस भी कर सकती है. ऊर्जा प्रोजेक्ट लगाने पर सरकार को कंपनियों द्वारा मिलने वाली प्रीमियम मनी ही कमाई का साधन है. इस प्रोजेक्ट को लेकर कई खेल हुए. कांग्रेस सरकार ने वर्ष 2005 में इसे ब्रेकल को दिया. वर्ष 2008 में भाजपा सत्ता में आई और पहले तो उसने इस प्रोजेक्ट के आवंटन को रोक दिया, लेकिन बाद में इसे बहाल कर दिया. वहीं, रिलायंस समूह भी इस प्रोजेक्ट को लेकर इंट्रस्टेड था. मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा था.
अडानी उद्योग समूह ने लगया था पैसा: उल्लेखनीय है कि पूर्व में ब्रेकल कंपनी ने अपफ्रंट प्रीमियम के तौर पर 280 करोड़ रुपए जमा करवाए थे. परियोजना से संबंधित शर्तों को पूरा न करने पर राज्य सरकार ने ये अपफ्रंट मनी जब्त कर ली थी. तब ब्रेकल कॉरपोरेशन ने पत्र के माध्यम से राज्य सरकार को सूचित किया था कि यह पैसा अडानी उद्योग समूह ने लगाया था. वहीं, हिमाचल सरकार के साथ परियोजना से संबंधित दस्तावेजों में कहीं भी अडानी समूह का नाम नहीं था.
रिलायंस समूह से नहीं बन पाई बात: हिमाचल में वीरभद्र सिंह सरकार के दौरान इस प्रोजेक्ट को लेकर कैबिनेट में यह फैसला हो गया था कि अडानी समूह के पैसे लौटा दिए जाएंगे. तब ये भी बात निकल कर आई थी कि और राज्य सरकार ने एक ऑप्शन सोचा था कि यदि यह प्रोजेक्ट रिलायंस ग्रुप अपने हाथ में लेता है तो वहां से आने वाला प्रीमियम का पैसा अडानी को दिया जा सकता है. बाद में रिलायंस समूह के साथ भी इस प्रोजेक्ट पर बात सिरे नहीं चढ़ी और अक्टूबर 2018 में जयराम सरकार ने उक्त परियोजना एसजेवीएनएल को सौंपने के आदेश जारी किए.
नजर जयराम सरकार पर: बड़ी बात ये है कि सतलुज जलविद्युत निगम लिमिटेड चूंकि केंद्र सरकार का उपक्रम है, लिहाजा इन्हें बिना टेंडर किए पावर प्रोजेक्ट दिए जा सकते हैं. गौर करने वाली बात है कि केंद्र सरकार के उपक्रम पर अपफ्रंट प्रीमियम की शर्त लागू नहीं होती है. फिलहाल, अब ऊर्जा सेक्टर से जुड़े लोगों की नजर जयराम सरकार की डिवीजन बेंच में दाखिल होने वाली याचिका पर है.