शिमला: पूरी दुनिया में रेबीज (Rabies) एक ऐसा रोग है जिसका अब तक कोई इलाज संभव नहीं हो पाया. हिमाचल के डॉक्टर ओमेश भारती (Dr. Omesh Bharti) के प्रयास से रेबीज की रोकथाम में मदद जरूर मिली है. डॉक्टर भारती के शोध के बाद रेबीज की रोकथाम का सबसे सस्ता उपाय मिल पाया. इसी खोज के लिए डॉ. भारती को पद्मश्री भी मिला. इस शोध कार्य के बाद डॉ. भारती व अन्य विशेषज्ञों ने रेबीज को अधिसूचित रोग की श्रेणी में लाए जाने के लिए प्रयास किया.
अब इस रोग को अधिसूचित बीमारी में शामिल करने का रास्ता खुल गया है. केंद्र सरकार (central government) ने हिमाचल के स्वास्थ्य विभाग को पत्र लिखकर इस बारे में आगे की आवश्यक कार्रवाई के लिए आदेश दिए हैं. इस तरह हिमाचल में अब रेबीज अधिसूचित रोग होगा. इसका अभिप्राय यह है कि यदि किसी सरकारी या निजी स्वास्थ्य संस्थान में रेबीज से पीड़ित कोई व्यक्ति चिकित्सा सहायता के लिए जाता है तो उसका संपूर्ण रिकॉर्ड रखना होगा.
यदि कोई स्वास्थ्य संस्थान ऐसा नहीं करता तो उसके खिलाफ दंडात्मक कानूनी कार्रवाई होगी. इसका लाभ यह होगा कि देश में रेबीज से पीड़ित लोगों का आंकड़ा सामने आएगा. साथ ही, रेबीज से होने वाली मौत के बारे में भी अध्ययन संभव हो पाएगा. ऐसा होने से रेबीज की रोकथाम व अन्य संभावित उपायों पर काम किया जा सकेगा. बता दें कि भारत देश में हर साल 20 हजार लोगों की मौत रेबीज से होती है. इसके अलावा पूरी दुनिया में रेबीज से मरने वालों का आंकड़ा 59 हजार है. ये वो मामले हैं जो सामने आ सके हैं. इसके अलावा देश में अधिसूचित रोग न होने के कारण रेबीज से होने वाली मौतों का कोई प्रामाणिक डाटा उपलब्ध नहीं है.
हिमाचल सरकार के स्वास्थ्य सचिव अमिताभ अवस्थी (Health Secretary Amitabh Awasthi) के अनुसार केंद्र सरकार से रेबीज को अधिसूचित रोगों की श्रेणी में शामिल करने के लिए आदेश आया है. इस बारे में राज्य सरकार को केंद्र सरकार से 20 सितंबर को एक पत्र मिला है. केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव राजेश भूषण ने एक पत्र प्रधान सचिव स्वास्थ्य और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अभियान निदेशक को लिखा है. इसमें कहा गया है कि किसी भी क्षेत्र में रेबीज से बचाव, नियंत्रण और उन्मूलन के लक्ष्य को मजबूत निगरानी से ही प्राप्त किया जा सकता है. ऐसे में रेबीज से संबंधित आवश्यक अधिसूचनाओं को किया जाना जरूरी है. रेबीज के संदिग्ध, संभावित और साबित मामलों की ठीक से रिपोर्टिंग की जाए. राज्य सरकार उस पत्र के अनुसार आगामी कार्रवाई कर रही है.
उल्लेखनीय है कि कुत्तों के काटने से रेबीज होता है. इसका कोई इलाज नहीं, लेकिन कुत्ते के काटने के बाद यदि एंटी रेबीज इंजेक्शन (Anti Rabies Injection) समय पर लग जाए तो रेबीज की रोकथाम हो जाती है. पहले यह रोकथाम का उपाय बहुत महंगा था. एक इंजेक्शन 35 से 50 हजार रुपए तक की कीमत में मिलता था. अब डॉ. ओमेश भारती के इंट्रा डर्मल इंजेक्शन प्रोसेस के कारण इसकी लागत घटकर सिर्फ 100 रुपए से भी कम रह गई है. हिमाचल में तो यह नि:शुल्क है. अब रेबीज को अधिसूचित रोगों की श्रेणी में डालने से इस क्षेत्र में शोध के लिए मदद मिलेगी, क्योंकि अब तक कई स्वास्थ्य संस्थान रेबीज के शिकार लोगों की जानकारी लापरवाही के कारण दर्ज नहीं करते थे.
डॉ. ओमेश भारती ने शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (Indira Gandhi Medical College) से एमबीबीएस करने के बाद डीएचएम व आईसीएमआर से एमएई की डिग्री हासिल की. वे 27 साल से हिमाचल प्रदेश स्वास्थ्य विभाग में विभिन्न पदों पर सेवाएं दे रहे हैं. रेबीज की रोकथाम के लिए खोजे गए सबसे सस्ते उपाय के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ( World Health Organization) को उनका प्रोटोकॉल मंजूर करना पड़ा. उनके नाम देश और विदेश में कई प्रतिष्ठित सम्मान दर्ज हैं.
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (British Medical Journal) में उनका शोध पत्र (Research Paper) साउथ एशिया में बेस्ट पाया गया. लो कोस्ट इंट्रा डर्मल एंटी रेबीज वैक्सीनेशन पर इंटरनेशनल सेमिनार में उनकी प्रेजेंटेशन को वर्ष 2011 में 83 देशों के प्रतिभागियों ने सुना था. विश्व के कई देशों में उन्हें आमंत्रित किया गया है. डॉ. भारती के कम कीमत वाले रेबीज प्रोटोकॉल से 35000 रुपए से 50 हजार रुपए का इलाज घटकर सौ रुपए से भी कम रह गया. यही नहीं,रेबीज से होने वाली मौतें भी लगभग थम सी गई हैं. इस तकनीक का सबसे अधिक लाभ गरीबों को हुआ. पहले गरीब लोग महंगा इंजेक्शन नहीं लगवा पाते थे और रेबीज से मौत का शिकार हो जाते थे.अब हिमाचल सरकार इस इंजेक्शन को निशुल्क उपलब्ध करवाती है.
डॉ. ओमेश भारती ने अपने शोध से साबित किया था कि अगर रेबीज हीमोग्लोबिन नाम के सीरम को सीधे घाव या जख्म पर लगाया जाता है तो ये जल्द असर भी करता है और दवाई की मात्रा भी कम प्रयोग होती है. हिमाचल में 2017 से इसी तकनीक से इलाज किया जा रहा है. डॉ. भारती ने 17 सालों के अपने शोध के दौरान कई मरीजों पर इस तकनीक का प्रयोग किया, लेकिन वर्ष 2013 के बाद डॉ. भारती ने 269 मरीजों पर इस सीरम का उपयोग किया जिसके बेहतर परिणाम सामने आए. इंट्राडर्मल तकनीक से इस इलाज के बाद हिमाचल में एक भी मामला रेबीज का नहीं आया और ना ही इस बीमारी से किसी की मौत हुई है.
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