शिमला: ग्रामीण विकास एवं पंचायती व पशुपालन मंत्री वीरेन्द्र कंवर ने कहा कि पहाड़ी गाय को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलने से हिमाचल प्रदेश सरकार के प्रयासों को बड़ी सफलता मिली है. पहाड़ी गाय को नेशनल ब्यूरो ऑफ एनीमल जेनेटिक रिसोर्सेज ने देश की मान्यता प्राप्त नस्लों की सूचि में शामिल कर लिया है.
हिमाचली पहाड़ी गाय का पंजीकरण 'हिमाचली पहाड़ी' नाम से एक अधिकारिक नस्ल के रूप में किया है. जिससे कि अब यह नस्ल देशी नस्ल की अन्य गायों जैसे साहिवाल, रेड सिन्धी, गिर जैसी नस्लों की श्रेणी में शामिल हुई है. पशुपालन विभाग द्वारा इस गाय को "गौरी' नाम से पंजीकृत करवाने का मामला ब्यूरो को भेजा गया था परन्तु प्रदेश की देशी नस्ल पहाड़ी नाम से ज्यादा प्रचलित हाने के कारण इस नस्ल का नामकरण हिमाचली पहाड़ी के रूप से किया गया है.
मंत्री वीरेन्द्र कंवर ने बताया कि पशुपालन विभाग हिमाचल प्रदेश द्वारा इस गाय को मान्यता प्राप्त नस्लों की श्रेणी में शामिल करवाने हेतु इस नस्ल की विशेषताओं को संकलित करके नेशनल ब्यूरो ऑफ एनीमल जेनेटिक रिसोर्सेज के समक्ष रखा गया था. समय-समय पर उपरोक्त संस्थान द्वारा मांगे गए विवरणों को उपलब्ध करवाकर अब 2 वर्षों के प्रयास के पश्चात इस नस्ल का पंजीकरण हो सका है तथा यह नस्ल देशी नस्ल की गायों में सम्मिलित की गई है.
पशुपालन मंत्री ने बताया कि वर्तमान में हिमाचली पहाड़ी गाय की संख्या 7.50 से 8.00 लाख के करीब आंकी गई है. यह गाय मुख्य रूप से चंबा, मंडी, कुल्लू, कांगड़ा, सिरमौर, लाहौल-स्पीति जिलों में पाई जाती है. इस नस्ल के पंजीकरण होने से अब इस गाय के उत्थान हेतु कार्यों के लिए भारत सरकार से धन राशि प्राप्त हो सकेगी. जिससे कि इस नस्ल के गायों के सरंक्षण व संवर्धन के कार्य में तेजी आएगी.
पशुपालन विभाग द्वारा इस नस्ल को संरक्षित करने के लिए भारत सरकार को 9.13 करोड़ रूपये का प्रस्ताव भेजा गया था. भारत सरकार द्वारा यह आश्वासन दिया गया था कि इस नस्ल के पंजीकृत होते ही उपरोक्त धन राशि प्रदेश को जारी कर दी जाएगी. पशुपालन विभाग द्वारा उपरोक्त राशि से जिला सिरमौर के बागथन में पहाड़ी गाय का प्रक्षेत्र स्थापित किया जाएगा.
इसके अलावा उपरोक्त ब्यूरो द्वारा प्रदेश में पाई जाने वाली भैंस की विशेष नस्ल को भी मान्यता प्रदान की है. जिसे गौजरी का नाम दिया गया है. भैंस की यह नस्ल मुख्यतः चंबा तथा कांगड़ा जिलों में पाई जाती है.