शिमला: हिमाचल प्रदेश विधानसभा में पीठासीन अधिकारियों के 82वें सम्मेलन के समापन सत्र में राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर (Governor Rajendra Vishwanath Arlekar)ने कहा कि वाद-विवाद और संवाद हमारी समृद्ध परंपरा और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा. हमें इस परंपरा को देश की विधानसभाओं में स्थापित करने की आवश्यकता है. आर्लेकर ने कहा कि हर राज्य की अलग-अलग समस्याएं हो सकती , लेकिन उनका समाधान उस क्षेत्र की परिस्थितियों के अनुकूल संभव है. विधानसभा(Assembly) या विधान परिषद् एक ऐसी जगह जहां सार्थक चर्चा होती और प्रत्येक सदस्य को अपनी समस्या रखने और बोलने का अवसर देना आवश्यक है.
उन्होंने कहा कि हमारे देश की परंपरा ऐसी कि इसमें हर एक की राय ली जानी चाहिए. उन्होंने ऋग्वेद का उदाहरण देते हुए कहा कि हमारे पास हर तरफ से मूल्यवान विचार आने चाहिए और विधानसभा एक ऐसा ही स्थल है.विधानसभा अध्यक्ष को सभी सदस्यों को बोलने का अवसर देना चाहिए और यह हमारी परंपरा भी रही है. पीठासीन अधिकारियों को नवीनतम तकनीक की जानकारी की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि जब वे गोवा विधानसभा के अध्यक्ष थे, तो उन्होंने इसे कागज रहित विधानसभा बनाया. उन्होंने प्रधानमंत्री द्वारा एक राष्ट्र एक विधान मंच की स्थापना का भी समर्थन किया. उन्होंने आशा व्यक्त की कि जब हम स्वतंत्रता का शताब्दी वर्ष मनाएंगे, तो हम नई ऊंचाइयों को प्राप्त करेंगे.
केंद्रीय मंत्री का सुझाव: केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण तथा युवा कार्य एवं खेल मंत्री अनुराग ठाकुर (Union Minister Anurag Thakur)ने विधानसभाओं में प्रौद्योगिकी और अनुसंधान के बेहतर उपयोग पर बल दिया. उन्होंने कहा, शोध होगा तो गुणात्मक चर्चा भी होगी. उन्होंने कहा कि पीठासीन अधिकारी किसी दल विशेष के नहीं होते और उन्हें युवा प्रतिनिधियों को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष अवसर देने चाहिए. उन्होंने पीठासीन अधिकारियों को राजधानी शिमला के ऐतिहासिक पहलुओं से भी अवगत कराया. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने देश को कोरोना महामारी की कठिन परिस्थितियों से बाहर निकाला. उन्होंने अमृत महोत्सव(Amrit Mahotsav) के दौरान विधायिका सप्ताह आयोजित करने और चर्चा के लिए 75 विषयों को चुनने का सुझाव दिया.
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