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शिक्षक दिवस विशेष: शिमला की इस इमारत में बसता है सर्वपल्ली के सपनों का संसार

इसे संयोग ही कहा जाएगा कि राजधानी शिमला की जिस इमारत को सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति निवास से भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के तौर पर रूपांतरित किया, वो इमारत भी वर्ष 1888 में ही बनकर तैयार हुई थी. इसी साल की 5 सितंबर को राधाकृष्णन का जन्म हुआ था. जिसे आज पूरा देश शिक्षक दिवस के रूप में मनाता है.

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Published : Sep 4, 2021, 10:50 PM IST

सपनों का संसार
सपनों का संसार

शिमला: महान शिक्षाविद और देश के पूर्व राष्ट्रपति स्व. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सपनों का संसार शिमला की एक खूबसूरत इमारत भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में फल-फूल रहा है. देश भर में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के तौर पर मनाया जाता है. वर्ष 1888 को इस दिन सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था. इसे संयोग ही कहा जाएगा कि जिस इमारत को सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति निवास से भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के तौर पर रूपांतरित किया, वो इमारत भी वर्ष 1888 में ही बनकर तैयार हुई थी.



भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला ब्रिटिश हुकूमत के दौरान वाइसरीगल लॉज के नाम से जाना जाता था. यहां ब्रिटिश वायसराय रहा करते थे. आजादी के बाद यह इमारत राष्ट्रपति निवास कहलाने लगी. बाद में सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने इस ऐतिहासिक इमारत को ज्ञान के केंद्र के तौर पर विकसित करने की सोची. उन्हीं की दूरदर्शी सोच इस समय भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के तौर पर कार्य कर रही है.

सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने वाइसरीगल लॉज यानी राष्ट्रपति निवास को उच्च अध्ययन व शोध के केंद्र के तौर पर पहचान दिलाने के लिए एक कार्ययोजना तैयार की थी. वर्ष 1965 में 20 अक्टूबर को इस इमारत को भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान बना दिया गया. हालांकि, संस्थान की सोसायटी का पंजीकरण 6 अक्टूबर 1964 को हुआ, लेकिन इसका विधिवत शुभारंभ 20 अक्टूबर 1965 को किया गया. संस्थान की स्थापना का मकसद मानविकी व सामाजिक अध्ययन के लिए वातावरण तैयार करना और उसे प्रोत्साहित करना था.

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के पहले अध्यक्ष भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन थे. तत्कालीन शिक्षा मंत्री एमसी छागला उपाध्यक्ष बने. संस्थान के प्रथम निदेशक प्रोफेसर निहार रंजन रॉय थे. यहां सामाजिक व मानविकी के क्षेत्र में अध्ययन और शोध किया जाता है. हर साल देश व विदेश की विख्यात बौद्धिक हस्तियां यहां अध्येता व राष्ट्रीय अध्येता के तौर पर शोध करती हैं. संस्थान की लाइब्रेरी में डेढ़ लाख किताबों का खजाना है. तिब्बती भाषा सहित संस्कृत व गुरुमुखी के हस्तलिखित दुर्लभ ग्रंथ यहां रखे गए हैं. लाइब्रेरी की सारी किताबों की जानकारी ऑनलाइन है. एक क्लिक पर किताबों की सारी जानकारी मिल जाती है. किस किताब को कहां रखा गया है, यह जानकारी आसानी से उपलब्ध होती है.

संस्थान में केंद्र सरकार ने देश का पहला टैगोर सेंटर भी स्थापित किया है. संस्थान में पूरा साल राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के सेमीनार आयोजित किए जाते हैं. ब्रिटिश काल में यह इमारत 1884-1888 यानी चार साल में बनकर तैयार हुई थी. इसमें बर्मा से खासतौर पर टीक की लकड़ी का काफी इस्तेमाल हुआ है. पत्थरों से बनी यह इमारत वास्तुकला का शानदार नमूना है.

सर्वपल्ली राधाकृष्णन इसे राष्ट्रपति निवास के तौर पर नहीं रखना चाहते थे. वे चाहते थे कि इस इमारत का सदुपयोग राष्ट्र के बौद्धिक विकास के रूप में हो. संस्थान में साल भर चलने वाले आयोजनों का पब्लिकेशन भी किया जाता है. संस्थान के अपने जर्नल्स भी हैं. संस्थान को निहारने के लिए हर साल लाखों सैलानी आते हैं. टिकट बिक्री से ही संस्थान को हर साल 80 लाख रुपए सालाना की आय होती रही है. कोरोना काल में इसमें कमी आई है. फिलहाल, संस्थान की लाइब्रेरी में हर साल नई किताबों का खजाना जुड़ता रहता है.

ये भी पढ़ें :राष्ट्रपति कोविंद के स्वागत को तैयार रिट्रीट, कभी शिमला आने पर मन में रह गयी थी इसे देखने की टीस

शिमला: महान शिक्षाविद और देश के पूर्व राष्ट्रपति स्व. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सपनों का संसार शिमला की एक खूबसूरत इमारत भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में फल-फूल रहा है. देश भर में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के तौर पर मनाया जाता है. वर्ष 1888 को इस दिन सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था. इसे संयोग ही कहा जाएगा कि जिस इमारत को सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति निवास से भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के तौर पर रूपांतरित किया, वो इमारत भी वर्ष 1888 में ही बनकर तैयार हुई थी.



भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला ब्रिटिश हुकूमत के दौरान वाइसरीगल लॉज के नाम से जाना जाता था. यहां ब्रिटिश वायसराय रहा करते थे. आजादी के बाद यह इमारत राष्ट्रपति निवास कहलाने लगी. बाद में सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने इस ऐतिहासिक इमारत को ज्ञान के केंद्र के तौर पर विकसित करने की सोची. उन्हीं की दूरदर्शी सोच इस समय भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के तौर पर कार्य कर रही है.

सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने वाइसरीगल लॉज यानी राष्ट्रपति निवास को उच्च अध्ययन व शोध के केंद्र के तौर पर पहचान दिलाने के लिए एक कार्ययोजना तैयार की थी. वर्ष 1965 में 20 अक्टूबर को इस इमारत को भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान बना दिया गया. हालांकि, संस्थान की सोसायटी का पंजीकरण 6 अक्टूबर 1964 को हुआ, लेकिन इसका विधिवत शुभारंभ 20 अक्टूबर 1965 को किया गया. संस्थान की स्थापना का मकसद मानविकी व सामाजिक अध्ययन के लिए वातावरण तैयार करना और उसे प्रोत्साहित करना था.

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के पहले अध्यक्ष भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन थे. तत्कालीन शिक्षा मंत्री एमसी छागला उपाध्यक्ष बने. संस्थान के प्रथम निदेशक प्रोफेसर निहार रंजन रॉय थे. यहां सामाजिक व मानविकी के क्षेत्र में अध्ययन और शोध किया जाता है. हर साल देश व विदेश की विख्यात बौद्धिक हस्तियां यहां अध्येता व राष्ट्रीय अध्येता के तौर पर शोध करती हैं. संस्थान की लाइब्रेरी में डेढ़ लाख किताबों का खजाना है. तिब्बती भाषा सहित संस्कृत व गुरुमुखी के हस्तलिखित दुर्लभ ग्रंथ यहां रखे गए हैं. लाइब्रेरी की सारी किताबों की जानकारी ऑनलाइन है. एक क्लिक पर किताबों की सारी जानकारी मिल जाती है. किस किताब को कहां रखा गया है, यह जानकारी आसानी से उपलब्ध होती है.

संस्थान में केंद्र सरकार ने देश का पहला टैगोर सेंटर भी स्थापित किया है. संस्थान में पूरा साल राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के सेमीनार आयोजित किए जाते हैं. ब्रिटिश काल में यह इमारत 1884-1888 यानी चार साल में बनकर तैयार हुई थी. इसमें बर्मा से खासतौर पर टीक की लकड़ी का काफी इस्तेमाल हुआ है. पत्थरों से बनी यह इमारत वास्तुकला का शानदार नमूना है.

सर्वपल्ली राधाकृष्णन इसे राष्ट्रपति निवास के तौर पर नहीं रखना चाहते थे. वे चाहते थे कि इस इमारत का सदुपयोग राष्ट्र के बौद्धिक विकास के रूप में हो. संस्थान में साल भर चलने वाले आयोजनों का पब्लिकेशन भी किया जाता है. संस्थान के अपने जर्नल्स भी हैं. संस्थान को निहारने के लिए हर साल लाखों सैलानी आते हैं. टिकट बिक्री से ही संस्थान को हर साल 80 लाख रुपए सालाना की आय होती रही है. कोरोना काल में इसमें कमी आई है. फिलहाल, संस्थान की लाइब्रेरी में हर साल नई किताबों का खजाना जुड़ता रहता है.

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