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Russia Ukraine War: हमें बचा लिया, अब हमारे सपनों को बचा लीजिए... - यूक्रेन से भारत लौट रहे छात्र

घर में एक डॉक्टर होना, किस परिवार की ख्वाहिश नहीं होती. लेकिन जब इन ख्वाहिशों के बीच में दो मुल्कों की जंग आ जाए तो ख्वाहिशें बारूद की गंध में गुम हो जाया करती (russia ukraine war) हैं. वो परिवार जो अपनी ख्वाहिशों को परवाज देना चाहते थे, उनके बेटे-बेटियों को डॉक्टर बनाना चाहते थे, वो अब शुक्र मना रहे हैं कि उस युद्ध की विभिषिका से बचकर अपने घर लौट आएं हैं. जहां अब कुछ नहीं (indian trapped in ukraine) बचा. आंखों में उस बुरे दौर की यादें और अपनी टूटती ख्वाहिशों का मिला-जुला चेहरा लिए ईटीवी भारत से उन लोगों ने अपनी दास्तां बयां की जो यूक्रेन और पड़ोसी मुल्कों में मेडिकल की पढ़ाई के लिए (ukraine russia conflict) गए थे.

indian trapped in ukraine
यूक्रेन से भारत लौटे छात्र
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Published : Mar 4, 2022, 2:18 PM IST

नई दिल्ली: रूस और यूक्रेन के बीच का चल रहा भीषण युद्ध सिर्फ जमीन को खून से लाल नहीं कर रहा, बल्कि कई सपनों भी तोड़ रहा (russia ukraine war) है. यूक्रेन की त्रासद घटनाओं को झेलकर अपने देश लौटे टेरणोपिल यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स ईटीवी भारत के साथ जुड़े और अपना अनुभव साझा किया. ईटीवी भारत से वर्चुअल जुड़े छह स्टूडेंट्स ने बताया कि यूनिवर्सिटी की ओर से ज्यादा इंतजाम नहीं किए गए. लिहाजा भारतीय स्टूडेंट्स को अपने ही स्तर पर यूक्रेन बॉर्डर तक का सफर तय करना पड़ा.

रोमानिया बॉर्डर पर भारतीय दूतावास इन छात्रों के लिए मददगार रहा. लेकिन यूक्रेन के अलग-अलग शहरों से गुजरते हुए हर वक्त दिल धड़कता था कि कहीं वे गोलीबारी या मिसाइल के हमले का शिकार न हो जाएं. कभी पैदल, कभी बस की सवारी में जैसे-तैसे बॉर्डर का जो सफर तय किया, वो ऐसा भयावह अनुभव था कि ताउम्र भुलाया नहीं जा सकेगा.

यूक्रेन से भारत लौटे छात्र

यूक्रेन से लौंटी आयुश्री बता रही हैं कि 10-15 किलोमीटर पैदल चलते हुए हर वक्त मौत का खौफ नजर (indian trapped in ukraine) आया. वहां से लोगों से मदद कैसे मांगते, क्योंकि वे खुद भी युद्ध में मारे जाने की आशंकाओं से घिरे थे. यूक्रेन दरअसल, ऐसा मुल्क बन गया, जहां मूल निवासी और प्रवासी सभी मानों एक साथ शरणार्थी बन गए. कोई फर्क नहीं रहा...सभी को अपनी जान बचाने का रास्ता सिर्फ एक ही सूझ रहा था कि कैसे बॉर्डर पार पहुंचा जाए.

आयुश्री, यशस्वी, प्रिंस, श्रद्धा, शिव और रजूल सभी भारत के अलग-अलग हिस्सों के रहने वाले हैं. ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने बताया उनके कुछ दोस्त अभी भी यूक्रेन में फंसे हुए हैं. उन्हें अब खाने-पीने और कैश की कमी की समस्या सामने आ रही है. यूक्रेन में मेडिकल स्टडीज को लेकर सोशल मीडिया में आ रही बातें उन्हें आहत कर रही (ukraine russia conflict) हैं. उनका कहना है कि भारतीय युवा अवसरों की तलाश में रहता है फिर चाहे वो अपने देश में मिले या विदेश में, कोई फर्क नहीं पड़ता.मकसद पूरा होना चाहिए.

अगर युद्ध की विभिषिका नहीं होती तो वो पूरे इत्मिनान से पढ़ाई कर रहे थे. अब यूनिवर्सिटीज में अधूरी पढ़ाई का क्या होगा, इसका जवाब न तो वहां का प्रशासन के पास है और न ही और किसी के पास. मगर उनका दर्द कुछ और है. सपनों का मर जाना किसी त्रासदी से कम नहीं, मेडिकल स्टूडेंट्स जो वापस लौटे हैं, वो अब भारत सरकार से अधूरी पढ़ाई को लेकर कोई फैसला चाहते हैं.

ये भी पढ़ें: आज ऐसे करें मां लक्ष्मी की पूजा, घर में धन-समृद्धि का होगा वास

नई दिल्ली: रूस और यूक्रेन के बीच का चल रहा भीषण युद्ध सिर्फ जमीन को खून से लाल नहीं कर रहा, बल्कि कई सपनों भी तोड़ रहा (russia ukraine war) है. यूक्रेन की त्रासद घटनाओं को झेलकर अपने देश लौटे टेरणोपिल यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स ईटीवी भारत के साथ जुड़े और अपना अनुभव साझा किया. ईटीवी भारत से वर्चुअल जुड़े छह स्टूडेंट्स ने बताया कि यूनिवर्सिटी की ओर से ज्यादा इंतजाम नहीं किए गए. लिहाजा भारतीय स्टूडेंट्स को अपने ही स्तर पर यूक्रेन बॉर्डर तक का सफर तय करना पड़ा.

रोमानिया बॉर्डर पर भारतीय दूतावास इन छात्रों के लिए मददगार रहा. लेकिन यूक्रेन के अलग-अलग शहरों से गुजरते हुए हर वक्त दिल धड़कता था कि कहीं वे गोलीबारी या मिसाइल के हमले का शिकार न हो जाएं. कभी पैदल, कभी बस की सवारी में जैसे-तैसे बॉर्डर का जो सफर तय किया, वो ऐसा भयावह अनुभव था कि ताउम्र भुलाया नहीं जा सकेगा.

यूक्रेन से भारत लौटे छात्र

यूक्रेन से लौंटी आयुश्री बता रही हैं कि 10-15 किलोमीटर पैदल चलते हुए हर वक्त मौत का खौफ नजर (indian trapped in ukraine) आया. वहां से लोगों से मदद कैसे मांगते, क्योंकि वे खुद भी युद्ध में मारे जाने की आशंकाओं से घिरे थे. यूक्रेन दरअसल, ऐसा मुल्क बन गया, जहां मूल निवासी और प्रवासी सभी मानों एक साथ शरणार्थी बन गए. कोई फर्क नहीं रहा...सभी को अपनी जान बचाने का रास्ता सिर्फ एक ही सूझ रहा था कि कैसे बॉर्डर पार पहुंचा जाए.

आयुश्री, यशस्वी, प्रिंस, श्रद्धा, शिव और रजूल सभी भारत के अलग-अलग हिस्सों के रहने वाले हैं. ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने बताया उनके कुछ दोस्त अभी भी यूक्रेन में फंसे हुए हैं. उन्हें अब खाने-पीने और कैश की कमी की समस्या सामने आ रही है. यूक्रेन में मेडिकल स्टडीज को लेकर सोशल मीडिया में आ रही बातें उन्हें आहत कर रही (ukraine russia conflict) हैं. उनका कहना है कि भारतीय युवा अवसरों की तलाश में रहता है फिर चाहे वो अपने देश में मिले या विदेश में, कोई फर्क नहीं पड़ता.मकसद पूरा होना चाहिए.

अगर युद्ध की विभिषिका नहीं होती तो वो पूरे इत्मिनान से पढ़ाई कर रहे थे. अब यूनिवर्सिटीज में अधूरी पढ़ाई का क्या होगा, इसका जवाब न तो वहां का प्रशासन के पास है और न ही और किसी के पास. मगर उनका दर्द कुछ और है. सपनों का मर जाना किसी त्रासदी से कम नहीं, मेडिकल स्टूडेंट्स जो वापस लौटे हैं, वो अब भारत सरकार से अधूरी पढ़ाई को लेकर कोई फैसला चाहते हैं.

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