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एफसीए और एफआरए के फेर में फसा हिमाचल का विकास, इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की क्लीयरेंस भी जरूरी - development work not being done in himachal

हिमाचल प्रदेश के लिए केंद्र की तरफ से कई योजनाओं की मंजूरी मिली है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर हिमाचल में एफसीए और एफआरए पर प्रतिबंध लगा रखा है. जिसकी वजह से प्रदेश में इन योजनाओं की शुरूआत नहीं हो पा रही है. वन मंत्री राकेश पठानिया का कहना है कि एफसीए और एफआरए के कारण प्रदेश की कई विकासात्मक परियोजनाएं समय पर शुरू नहीं हो पाती हैं.

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Published : Oct 18, 2021, 10:09 PM IST

शिमला: देश के करीब आधा दर्जन राज्यों सहित हिमाचल प्रदेश को एफसीए और एफआरए की मंजूरी मिलने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट की क्लीयरेंस लेनी आवश्यक है. इसी कारण वर्तमान समय में भी केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कई मामलों को वन संरक्षण अधिनियम (एफसीए) और वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) के तहत मंजूरी के बाद वन विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर इन मामलों को क्लीयरेंस की मांग रखी है. क्योंकि, सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर हिमाचल में एफसीए और एफआरए पर प्रतिबंध लगा रखा है. इसलिए जब तक अदालत प्रतिबंध नहीं हटा देती है, तब तक केंद्रीय वन मंत्रालय की मंजूरी के बाद भी सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी अनिवार्य होती है.

हिमाचल प्रदेश के लिए केंद्र की तरफ से मंजूर मामलों में अधिकतर सड़कें, स्कूल-कॉलेज, हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट, कार पार्किंग, आंगनबाड़ी, डिस्पेंसरी, पेयजल व सिंचाई योजना, फेयर प्राइस शॉप, इलैक्ट्रिक व टेलीकॉम लाइन, छोटे सिंचाई प्रोजेक्ट के बताए जा रहे है. सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी के बाद ही इन प्रोजेक्ट को धरातल पर उतारने का काम शुरू हो सकेगा. हिमाचल का 67 फीसदी एरिया कानूनी तौर पर वन क्षेत्र है. शेष भूमि पर रिहायश के साथ-साथ किसान खेती बाड़ी-बागवानी करते हैं. इसलिए प्रदेश में विभिन्न विकास कार्यों के लिए अमूमन भूमि की कमी खलती है‌. एफसीए और एफआरए के बगैर कई योजनाएं तो एक एक दशक से अटकी रहती है. इसका असर विभिन्न विकास कार्यों पर पड़ता है.

एक हेक्टेयर तक भूमि के केस में एफआरए लेनी होती है. इसकी शक्तियां संबंधित डीएफओ के पास रहती है. इससे पहले किसी भी एफआरए के केस में ग्रामसभा की मंजूरी अनिवार्य होती है. ग्रामसभा की मंजूरी के बाद रेंज ऑफिसर को अपनी रिपोर्ट डीएफओ के सामने पेश करनी होती है. इसके बाद डीएफओ रिपोर्ट को एफआरए को देते हैं. एफआरए का कोई मामला डीएफओ द्वारा रिजेक्ट करने की सूरत में संबंधित जिलाधीश के सामने रखा जाता है.

वन भूमि के गैर-वनीय इस्तेमाल के लिए फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट-180 के तहत केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी आवश्यक होती है. सड़क, बिजली, स्कूल, पेयजल प्रोजेक्ट जैसे 13 चिंहित काम के लिए एफसीए का केस देहरादून स्थित वन एवं पर्यावरण मुख्यालय को भेजा जाता है. यहां से सैद्धांतिक मंजूरी के वक्त कई शर्तें लगाई जाती हैं और काटे जाने वाले प्रस्तावित पेड़ का संबंधित विभाग को हर्जाना भरने के निर्देश दिए जाता है, तब जाकर फाइनल अप्रूवल मिलती है.

वन विभाग के प्रमुख अजय श्रीवास्तव का कहना है कि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से एफ.सी.ए. और एफ.आर.ए. के कुछ मामलों में हरी झंडी मिल गई है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में एप्लीकेशन देकर जल्द क्लीयरेंस देने का आग्रह किया गया है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने लंबे समय से अटके 603 प्रोजेक्टों को मंजूरी प्रदान की है. प्रदेश में मार्च 2019 के बाद से कई परियोजनाओं के काम रुक गए थे, जिनको अब गति मिलने की उम्मीद है. सुप्रीम कोर्ट से 138 परियोजनाएं एफसीए और 465 परियोजनाएं एफआरए में मंजूर हुई हैं. 143 करोड़ रुपए के शिक्षा क्षेत्र के प्रोजेक्ट, 334 सड़क योजनाएं और 54 स्कूल भवन भी इसमें शामिल हैं. जिन परियोजनाओं के लिए वन भूमि की स्वीकृति हिमाचल को मिली है, उनमें तीन बिजली परियोजनाओं के लिए 7.3566 हेक्टेयर वन भूमि का इस्तेमाल होगा. 27 सड़क परियोजनाओं में 64.2176 हेक्टेयर वन भूमि शामिल है.

सिरमौर जिले में एक ग्रीन कॉरिडोर एनएच बनाया जाएगा, जोकि 1337 करोड़ रुपये का है. धर्मशाला में डबल लेन एनएच 20, जोकि 61.48 करोड़ का है. इसके लिए भी जमीन की स्वीकृति मिली है. ग्रीन कॉरिडोर के पहले चरण में 28.449 हेक्टेयर जमीन और दूसरे चरण में 22.419 हेक्टेयर वन भूमि शामिल रहेगी. वहीं, धर्मशाला डबल लेन में 7.0713 हेक्टेयर फॉरेस्ट लैंड के यूज को मंजूरी मिली है. वहीं, मंडी के शिवधाम के लिए भी वन भूमि को मंजूरी मिल चुकी है.

56.36 करोड़ रुपए की लागत का 66 केवी लाइन सैंज उप केंद्र से लास्टाधार, 12.54 करोड़ रुपए लागत के वर्तमान 33/11 केवी उपकेंद्र के स्तरोन्नयन, दो एमवी सोलर पीवी काजा की स्थापना के लिए 19.31 करोड़ की योजना, 2.07 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित होने वाले 33/11 केवी तलयार मंडी और 6.74 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित होने वाले 33/11 केवी मानव रहित उपकेंद्र मनाली के निर्माण के लिए भी अनुमति प्रदान की है.

पॉवर ट्रांसमिशन कारपोरेशन लिमिटेड की 338.31 करोड़ रुपए की परियोजनाओं को भी मंजूरी प्रदान की है. इनमें निरमंड से कोटला उपकेंद्र की 31.73 करोड़ रुपए की 66 केवी डी/सी लाइन, 11.97 करोड़ रुपए की कुरथला-बठार से माजरा की 132 केवी ट्रांसमिशन लाइन, अंधेरी (काला अंब) में 66.47 करोड़ रुपए की 220/132/33 केवी उपकेंद्र, दैहन से हमीरपुर 119.58 करोड़ रुपए की 220 केवी ट्रांसमिशन लाइन और लाहा में 108.58 करोड़ रुपए की 66/220 केवी हेलिंग उपकेंद्र शामिल है.

वन मंत्री राकेश पठानिया का कहना है कि एफसीए और एफआरए के कारण प्रदेश की कई विकासात्मक परियोजनाएं समय पर शुरू नहीं हो पाती हैं. उन्होंने कहा कि केंद्रीय विश्वविद्यालय का कार्य भी इसी कारण लंबे समय तक अटका रहा, लेकिन अब सरकार से केंद्रीय विश्वविद्यालय के देहरा में स्थापित होने वाले भवन निर्माण की मंजूरी मिल चुकी है. धर्मशाला में प्रस्तावित केंद्रीय विश्वविद्यालय के भवन का मामला एफसीए की मंजूरी के इंतजार में है. फोरलेन के तमाम प्रोजेक्टों, अस्पतालों के निर्माण व नेशनल हाईवे समेत करीब 1400 प्रोजेक्टों को एफसीए मंजूरी मिलने के बाद शीघ्र ही निर्माण कार्य शुरू हो रहा है.

ये भी पढ़ें: हिमाचल में बारिश और बर्फबारी ने मचाई तबाही, प्रदेश में सात लोगों की मौत, 37 सड़कें बंद

शिमला: देश के करीब आधा दर्जन राज्यों सहित हिमाचल प्रदेश को एफसीए और एफआरए की मंजूरी मिलने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट की क्लीयरेंस लेनी आवश्यक है. इसी कारण वर्तमान समय में भी केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कई मामलों को वन संरक्षण अधिनियम (एफसीए) और वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) के तहत मंजूरी के बाद वन विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर इन मामलों को क्लीयरेंस की मांग रखी है. क्योंकि, सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर हिमाचल में एफसीए और एफआरए पर प्रतिबंध लगा रखा है. इसलिए जब तक अदालत प्रतिबंध नहीं हटा देती है, तब तक केंद्रीय वन मंत्रालय की मंजूरी के बाद भी सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी अनिवार्य होती है.

हिमाचल प्रदेश के लिए केंद्र की तरफ से मंजूर मामलों में अधिकतर सड़कें, स्कूल-कॉलेज, हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट, कार पार्किंग, आंगनबाड़ी, डिस्पेंसरी, पेयजल व सिंचाई योजना, फेयर प्राइस शॉप, इलैक्ट्रिक व टेलीकॉम लाइन, छोटे सिंचाई प्रोजेक्ट के बताए जा रहे है. सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी के बाद ही इन प्रोजेक्ट को धरातल पर उतारने का काम शुरू हो सकेगा. हिमाचल का 67 फीसदी एरिया कानूनी तौर पर वन क्षेत्र है. शेष भूमि पर रिहायश के साथ-साथ किसान खेती बाड़ी-बागवानी करते हैं. इसलिए प्रदेश में विभिन्न विकास कार्यों के लिए अमूमन भूमि की कमी खलती है‌. एफसीए और एफआरए के बगैर कई योजनाएं तो एक एक दशक से अटकी रहती है. इसका असर विभिन्न विकास कार्यों पर पड़ता है.

एक हेक्टेयर तक भूमि के केस में एफआरए लेनी होती है. इसकी शक्तियां संबंधित डीएफओ के पास रहती है. इससे पहले किसी भी एफआरए के केस में ग्रामसभा की मंजूरी अनिवार्य होती है. ग्रामसभा की मंजूरी के बाद रेंज ऑफिसर को अपनी रिपोर्ट डीएफओ के सामने पेश करनी होती है. इसके बाद डीएफओ रिपोर्ट को एफआरए को देते हैं. एफआरए का कोई मामला डीएफओ द्वारा रिजेक्ट करने की सूरत में संबंधित जिलाधीश के सामने रखा जाता है.

वन भूमि के गैर-वनीय इस्तेमाल के लिए फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट-180 के तहत केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी आवश्यक होती है. सड़क, बिजली, स्कूल, पेयजल प्रोजेक्ट जैसे 13 चिंहित काम के लिए एफसीए का केस देहरादून स्थित वन एवं पर्यावरण मुख्यालय को भेजा जाता है. यहां से सैद्धांतिक मंजूरी के वक्त कई शर्तें लगाई जाती हैं और काटे जाने वाले प्रस्तावित पेड़ का संबंधित विभाग को हर्जाना भरने के निर्देश दिए जाता है, तब जाकर फाइनल अप्रूवल मिलती है.

वन विभाग के प्रमुख अजय श्रीवास्तव का कहना है कि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से एफ.सी.ए. और एफ.आर.ए. के कुछ मामलों में हरी झंडी मिल गई है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में एप्लीकेशन देकर जल्द क्लीयरेंस देने का आग्रह किया गया है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने लंबे समय से अटके 603 प्रोजेक्टों को मंजूरी प्रदान की है. प्रदेश में मार्च 2019 के बाद से कई परियोजनाओं के काम रुक गए थे, जिनको अब गति मिलने की उम्मीद है. सुप्रीम कोर्ट से 138 परियोजनाएं एफसीए और 465 परियोजनाएं एफआरए में मंजूर हुई हैं. 143 करोड़ रुपए के शिक्षा क्षेत्र के प्रोजेक्ट, 334 सड़क योजनाएं और 54 स्कूल भवन भी इसमें शामिल हैं. जिन परियोजनाओं के लिए वन भूमि की स्वीकृति हिमाचल को मिली है, उनमें तीन बिजली परियोजनाओं के लिए 7.3566 हेक्टेयर वन भूमि का इस्तेमाल होगा. 27 सड़क परियोजनाओं में 64.2176 हेक्टेयर वन भूमि शामिल है.

सिरमौर जिले में एक ग्रीन कॉरिडोर एनएच बनाया जाएगा, जोकि 1337 करोड़ रुपये का है. धर्मशाला में डबल लेन एनएच 20, जोकि 61.48 करोड़ का है. इसके लिए भी जमीन की स्वीकृति मिली है. ग्रीन कॉरिडोर के पहले चरण में 28.449 हेक्टेयर जमीन और दूसरे चरण में 22.419 हेक्टेयर वन भूमि शामिल रहेगी. वहीं, धर्मशाला डबल लेन में 7.0713 हेक्टेयर फॉरेस्ट लैंड के यूज को मंजूरी मिली है. वहीं, मंडी के शिवधाम के लिए भी वन भूमि को मंजूरी मिल चुकी है.

56.36 करोड़ रुपए की लागत का 66 केवी लाइन सैंज उप केंद्र से लास्टाधार, 12.54 करोड़ रुपए लागत के वर्तमान 33/11 केवी उपकेंद्र के स्तरोन्नयन, दो एमवी सोलर पीवी काजा की स्थापना के लिए 19.31 करोड़ की योजना, 2.07 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित होने वाले 33/11 केवी तलयार मंडी और 6.74 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित होने वाले 33/11 केवी मानव रहित उपकेंद्र मनाली के निर्माण के लिए भी अनुमति प्रदान की है.

पॉवर ट्रांसमिशन कारपोरेशन लिमिटेड की 338.31 करोड़ रुपए की परियोजनाओं को भी मंजूरी प्रदान की है. इनमें निरमंड से कोटला उपकेंद्र की 31.73 करोड़ रुपए की 66 केवी डी/सी लाइन, 11.97 करोड़ रुपए की कुरथला-बठार से माजरा की 132 केवी ट्रांसमिशन लाइन, अंधेरी (काला अंब) में 66.47 करोड़ रुपए की 220/132/33 केवी उपकेंद्र, दैहन से हमीरपुर 119.58 करोड़ रुपए की 220 केवी ट्रांसमिशन लाइन और लाहा में 108.58 करोड़ रुपए की 66/220 केवी हेलिंग उपकेंद्र शामिल है.

वन मंत्री राकेश पठानिया का कहना है कि एफसीए और एफआरए के कारण प्रदेश की कई विकासात्मक परियोजनाएं समय पर शुरू नहीं हो पाती हैं. उन्होंने कहा कि केंद्रीय विश्वविद्यालय का कार्य भी इसी कारण लंबे समय तक अटका रहा, लेकिन अब सरकार से केंद्रीय विश्वविद्यालय के देहरा में स्थापित होने वाले भवन निर्माण की मंजूरी मिल चुकी है. धर्मशाला में प्रस्तावित केंद्रीय विश्वविद्यालय के भवन का मामला एफसीए की मंजूरी के इंतजार में है. फोरलेन के तमाम प्रोजेक्टों, अस्पतालों के निर्माण व नेशनल हाईवे समेत करीब 1400 प्रोजेक्टों को एफसीए मंजूरी मिलने के बाद शीघ्र ही निर्माण कार्य शुरू हो रहा है.

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