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राजधानी शिमला में नहीं थम रहा कुत्तों का खौफ, साल 2019 में आए 3588 मामले - शिमला कुत्तों का खौफ

शिमला में कुत्तों के आतंक के कारण राजधानी में पैदल गुजरना तक मुश्किल हो गया है. आए दिन बेसहारा कुत्तों द्वारा लोगों को काटने के मामले सामने आ रहे हैं. दीन दयाल उपाध्याय 2019 में 3588 मामले जानवरों के काटने के दर्ज हुए हैं.

शिमला कुत्तों का खौफ dog problems in shimla city
शिमला कुत्तों का खौफ
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Published : Feb 25, 2020, 6:06 PM IST

शिमलाः शहर शिमला का कोई हिस्सा ही ऐसा होगा जहां पर आवारा कुत्तों का खौफ न हो. आए दिन इन कुत्तों द्वारा लोगों को काटने के मामले सामने आ रहे हैं. कुत्तों के आतंक के कारण राजधानी में पैदल गुजरना तक मुश्किल हो गया है.

माल रोड और रिज मैदान में कुछ भी खाने पीने की चीजों को पर्यटकों और स्थानीय लोगों से छीन कर आसानी से भाग जाते हैं. लोगों का कहना है कि इस समस्या को लेकर कई बार प्रशासन गुहार लगाई चुकी है, लेकिन कुत्तों के आतंक से कोई निजात नहीं मिल पाई है.

राजधानी के दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल की अगर बात करें तो अकेले इस अस्पताल में साल 2019 में 3588 मामले जानवरों के काटने के दर्ज हुए हैं.

वीडियो.

खौफ में जी रहे शहरवासी

शिमला के सजंय का कहना है कि इन दिनों में लावारिस कुत्तों से सभी लोगों को परेशानी हो रही है. सुबह के समय बच्चों को अकेले स्कूल भेजना खतरे से खाली नहीं है. बच्चों पर कुत्ते हमला कर देते हैं. इन कुत्तों के लिए कोई न कोई नीति बनाई जानी चाहिए, ताकि लोगों को परेशानियों का सामना न करना पड़े.

वहीं, सुरेन्द्र कुमार जस्टा का कहना है कि शिमला में कुत्तों के काटने के कई मामले आ चुके हैं. इसमें ज्यादा खतरा महिलाओं और बच्चों को होता है. ये ज्यादातर बच्चों पर ही हमला करते हैं. इसके बावजूद प्रशासन इस समस्या के प्रति गंभीर नहीं है. लोगों का रास्ते से गुजरना मुश्किल हो गया है. रास्ते में कुत्ते किसी भी जगह हमला कर देते हैं. सरकार से मांग है कि इन आवारा कुतों की समस्या के लिए स्थाई हल निकाला जाए.

डॉग एडॉप्शन योजना पर उठ रहे सवाल

हालांकि नगर निगम शिमला के दावे के मुताबिक निगम ने साल 2019 में 186 कुत्तों की नसबंदी की है. इसके अलावा 173 कुत्तों के काटने की शिकायतों का निपटारा किया गया है. गौरतलब है की नगर निगम शिमला ने आवारा कुत्तों से निजात पाने के लिए शिमला में डॉग एडॉप्शन योजना शुरु की है जिसके तहत निगम आवारा कुत्तों को गोद लेने पर पार्किंग और गारबेज फीस की फ्री सेवा देता है.

अब तक इस योजना के तहत करीब 150 लोग फायदा उठा चुके हैं, लेकिन शहर में समस्या अभी भी समस्या जस की तस बनी हुई है. निगम की इस योजना के बाद भी शहर के सभी वार्डों में नवजात कुतों से लेकर बड़े कुत्तों की संख्या पर कोई लगाम नहीं लग पाई है.

अब निगम की डॉग एडॉप्शन योजना पर भी सवाल उठने लगे हैं कि क्या निगम ने अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए यह योजना शुरु की है या फिर वास्तव में ही शहर में आवारा कुत्तों की बढती संख्या पर लगाम लगी है.

जानवरों के काटने के मामलों में नहीं आई कमी

दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. जितेंद्र चौहान ने बतया कि जानवरों के काटने में कोई कमी नहीं आई है. 2019 में 3588 मामले जानवरों के काटने के दर्ज हुए हैं. करीब इतना ही आंकड़ा साल 2018 में था. इसके अलावा नगर निगम की डॉग एडॉप्शन योजना के बाद भी इसमें कोई कमी नहीं आई है. उन्होंने बताया अकेले इसी अस्पताल में हर महीने सैकड़ों मरीज जानवरों के काटने के पहुंचते हैं.

ये भी पढ़ें- राज्यपाल के अभिभाषण के साथ बजट सत्र का आगाज, पहले दिन की कार्यवाही स्थगित

शिमलाः शहर शिमला का कोई हिस्सा ही ऐसा होगा जहां पर आवारा कुत्तों का खौफ न हो. आए दिन इन कुत्तों द्वारा लोगों को काटने के मामले सामने आ रहे हैं. कुत्तों के आतंक के कारण राजधानी में पैदल गुजरना तक मुश्किल हो गया है.

माल रोड और रिज मैदान में कुछ भी खाने पीने की चीजों को पर्यटकों और स्थानीय लोगों से छीन कर आसानी से भाग जाते हैं. लोगों का कहना है कि इस समस्या को लेकर कई बार प्रशासन गुहार लगाई चुकी है, लेकिन कुत्तों के आतंक से कोई निजात नहीं मिल पाई है.

राजधानी के दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल की अगर बात करें तो अकेले इस अस्पताल में साल 2019 में 3588 मामले जानवरों के काटने के दर्ज हुए हैं.

वीडियो.

खौफ में जी रहे शहरवासी

शिमला के सजंय का कहना है कि इन दिनों में लावारिस कुत्तों से सभी लोगों को परेशानी हो रही है. सुबह के समय बच्चों को अकेले स्कूल भेजना खतरे से खाली नहीं है. बच्चों पर कुत्ते हमला कर देते हैं. इन कुत्तों के लिए कोई न कोई नीति बनाई जानी चाहिए, ताकि लोगों को परेशानियों का सामना न करना पड़े.

वहीं, सुरेन्द्र कुमार जस्टा का कहना है कि शिमला में कुत्तों के काटने के कई मामले आ चुके हैं. इसमें ज्यादा खतरा महिलाओं और बच्चों को होता है. ये ज्यादातर बच्चों पर ही हमला करते हैं. इसके बावजूद प्रशासन इस समस्या के प्रति गंभीर नहीं है. लोगों का रास्ते से गुजरना मुश्किल हो गया है. रास्ते में कुत्ते किसी भी जगह हमला कर देते हैं. सरकार से मांग है कि इन आवारा कुतों की समस्या के लिए स्थाई हल निकाला जाए.

डॉग एडॉप्शन योजना पर उठ रहे सवाल

हालांकि नगर निगम शिमला के दावे के मुताबिक निगम ने साल 2019 में 186 कुत्तों की नसबंदी की है. इसके अलावा 173 कुत्तों के काटने की शिकायतों का निपटारा किया गया है. गौरतलब है की नगर निगम शिमला ने आवारा कुत्तों से निजात पाने के लिए शिमला में डॉग एडॉप्शन योजना शुरु की है जिसके तहत निगम आवारा कुत्तों को गोद लेने पर पार्किंग और गारबेज फीस की फ्री सेवा देता है.

अब तक इस योजना के तहत करीब 150 लोग फायदा उठा चुके हैं, लेकिन शहर में समस्या अभी भी समस्या जस की तस बनी हुई है. निगम की इस योजना के बाद भी शहर के सभी वार्डों में नवजात कुतों से लेकर बड़े कुत्तों की संख्या पर कोई लगाम नहीं लग पाई है.

अब निगम की डॉग एडॉप्शन योजना पर भी सवाल उठने लगे हैं कि क्या निगम ने अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए यह योजना शुरु की है या फिर वास्तव में ही शहर में आवारा कुत्तों की बढती संख्या पर लगाम लगी है.

जानवरों के काटने के मामलों में नहीं आई कमी

दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. जितेंद्र चौहान ने बतया कि जानवरों के काटने में कोई कमी नहीं आई है. 2019 में 3588 मामले जानवरों के काटने के दर्ज हुए हैं. करीब इतना ही आंकड़ा साल 2018 में था. इसके अलावा नगर निगम की डॉग एडॉप्शन योजना के बाद भी इसमें कोई कमी नहीं आई है. उन्होंने बताया अकेले इसी अस्पताल में हर महीने सैकड़ों मरीज जानवरों के काटने के पहुंचते हैं.

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