शिमला: देश की आजादी के लिये सरदार अजीत सिंह के खानदान और सुभाष चन्द्र बोस की कुर्बानी का मुकाबला दुनिया में कहीं विरला ही मिल सकता है. इसलिए देश की जनता की भावनाओं को मद्देनजर रखते हुए डलहौजी शहर (Demand To Change The Name Of Dalhousie) के नाम को बदल कर अजीत सिंह नगर और मैक्लोडगंज का नाम सुभाष चन्द्र बोस नगर (Change The Name Of McLeodganj) रखा जाए. यह बात प्रोफेसर मोहन सिंह मेमोरियल फाउंडेशन कनाडा के अध्यक्ष साहिब थिंद ने शिमला में पत्रकार वार्ता के दौरान कही.
उन्होंने कहा कि देश को आजाद हुए आधी सदी से ऊपर हो गया है लेकिन गुलामी का शेष अभी भी बहुत जगह मुंह चिढ़ाती है. सियासती लड़ाई में हमारे शासकों की तरफ कोई ध्यान नहीं है. साहिब थिंद ने कहा कि शेष भाग की एक मिसाल हिमाचल राज्य के डलहौजी की है. उन्होंने कहा कि इसको लेकर पूर्व भाजपा शासन में कई मंत्रियों से मिला था और शहर का नाम बदलने की मांग की थी, मगर आज तक कुछ नहीं हुआ है.
साहिब थिंद ने कहा कि इन दोनों शहरों का नाम अंग्रेजों ने रखा है. हमें गुलामी की सभी निशानियों को मिटा देना चाहिए और ऐसे शहरों व जगह के नाम देश के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले शहीदों के नाम से रखने चाहिए. उन्होंने बताया कि दोनों शहरों के नाम बदलने की मांग को लेकर वह 2020 में भी हिमाचल आए थे. उस दौरान उन्होंने भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष राजीव बिंदल से मुलाकात की थी, लेकिन अचानक लॉकडाउन लगने के कारण लंबे समय से वह इस मांग को दोबारा सरकार के समक्ष नहीं उठा सके. अब वह यही मांग ज्ञापन के जरिए भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सुरेश कश्यप और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष प्रतिभा सिंह के समक्ष उठा चुके हैं. जल्द ही वह इस बाबत मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से भी मिलेंगे.
साहिब थिंद ने कहा कि लार्ड डलहौजी का पूरा नामएंड्रयू ब्राउन राम से डलहौजी था. वह ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से भारत में अपनी शक्ति को फैलाने के लिए भारत में गवर्नर जनरल बन कर आया था. अंग्रेजी सरकार ने गुरदासपुर जिले रावी के उत्तर में एक पहाड़ी को सन् 1853 में रियासत चंबा से खरीद कर गर्मियों में डलहौजी के रहने के लिये डलहौजी के नाम पर बसाया जो पठानकोट से 51 मील उत्तर पश्चिम में है और गुरदासपुर से 74 मील की दूरी पर है.
इसके खिलाफ लाला लाजपत राय, सरदार अजीत सिंह ने लड़ाई लड़ी थी. इसी कारण लाला लाजपत राय और सरदार अजीत सिंह को एक केस में सजा देकर मांडले जेल में भेज दिया था. अजीत सिंह 40 साल के अज्ञात वास के बाद हिन्दुस्तान आए. कराची पहुंचने पर हिन्दुस्तान की समूह पार्टीयों ने जगह-जगह उनका स्वागत किया. 15 अगस्त 1947 को जब आजादी का तिरंगा झंडा लहराया जा रहा था तब डलहौजी में सरदार अजीत सिंह की जीवन ज्योत अस्त हो रही थी. झंडा लहराये जाने पर उनके स्वास भी पूरे हो गए.