शिमला: देश की सेना के टॉप कमांडर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Army top commander President Ram Nath Kovind) पिछले साल हिमाचल दौरे पर आए थे. सितंबर 2021 में उन्होंने हिमाचल के पूर्ण राज्यत्व दिवस (Full Statehood Day of Himachal) के स्वर्ण जयंती समारोह को संबोधित किया था. उस दौरान राष्ट्रपति के समक्ष मांग उठाई गई कि देश की सीमाओं की रक्षा में अतुलनीय योगदान देने वाले हिमाचल के लिए अलग से हिमालयन रेजीमेंट का गठन (Demand for Himalayan regiment) किया जाए. हिमाचल की ये मांग काफी पुरानी है.
हिमालयन रेजीमेंट की मांग: इस मांग को लेकर विगत में विधानसभा के जरिए प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजे गए. विभिन्न अवसरों पर केंद्र सरकार के समक्ष ये आग्रह किया गया कि पहाड़ के युवाओं के सेना में जाने के उत्साह को देखते हुए हिमालयन रेजीमेंट का गठन होना चाहिए. वहीं, सितंबर 2021 में ये संभवत पहली बार था, जब सेना के तीनों अंगों के सर्वोच्च कमांडर राष्ट्रपति के समक्ष ऐसा आग्रह किया गया. हिमाचल विधानसभा के विशेष सत्र में राष्ट्रपति स्वयं मौजूद थे और उन्होंने कार्यक्रम को संबोधित किया था. उसी दौरान नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने राष्ट्रपति के समक्ष हिमालयन रेजीमेंट की मांग फिर से उठाई थी.
'वीरभूमि' की पुकार अब तक अनसुनी: समय-समय पर हिमाचल की तरफ से ये मांग की गई, लेकिन वीरभूमि देवभूमि की पुकार अब तक अनसुनी है. यहां गौर करने वाली बात है कि भारतीय सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र और हिमाचल का नाता बड़ा गहरा है. देश का पहला परमवीर चक्र हिमाचल के ही सपूत मेजर सोमनाथ शर्मा को मिला था. करगिल युद्ध में कैप्टन विक्रम बत्रा को बलिदान के उपरांत परमवीर चक्र देने की घोषणा हुई थी. राइफलमैन संजय कुमार, जो अब सूबेदार मेजर हैं, उन्हें भी परमवीर चक्र मिला था. दोनों सपूत हिमाचल से हैं.
इसके अलावा हिमाचल के वीरों ने विभिन्न युद्धों तथा देश की सेवा के लिए डेढ़ हजार से अधिक गैलेंट्री अवार्ड हासिल किए हैं. ऐसे में हिमाचल प्रदेश की हिमालयन रेजीमेंट की मांग में दम है. हिमाचल ने तो यहां तक कहा है कि यदि अकेले इस पहाड़ी प्रदेश के लिए रेजीमेंट घोषित करना संभव नहीं है तो उत्तराखंड व जेएंडके को भी शामिल कर संयुक्त रूप से सभी राज्यों के लिए रेजीमेंट गठित की जाए.
हिमाचल भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप (Himachal BJP President Suresh Kashyap) खुद वायुसेना में सेवाएं दे चुके हैं. इसके अलावा हिमाचल विधानसभा में इस समय कर्नल इंद्र सिंह, कर्नल धनीराम शांडिल, महेंद्र सिंह ठाकुर व विक्रम जरियाल भारतीय सेना का हिस्सा रहे हैं. सुरेश कश्यप का कहना है कि हिमालयन रेजीमेंट की मांग जायज है. हिमाचल के वीरों में देश की सेना में शामिल होने का जो उत्साह है, उसे देखते हुए हिमालयन रेजीमेंट का तोहफा प्रदेश को मिलना चाहिए. वैसे हिमालयन रेजीमेंट की मांग सबसे पहले प्रदेश के पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल ने उठाई थी.
पहाड़ी राज्य की शौर्य गाथा: छोटे पहाड़ी राज्य में शौर्य की परंपरा निरंतर मजबूत होती चली आ रही है. हिमाचल के सैन्य अफसरों व जांबाजों ने युद्ध के मैदान और अन्य बहादुरी की कहानियों को साकार रूप देते हुए 1160 से अधिक शौर्य सम्मान हासिल किए हैं. इनमें भारतीय सेना के सर्वोच्च सम्मान के तौर पर 4 परमवीर चक्र, दो अशोक चक्र, दस महावीर चक्र, 18 कीर्ति चक्र, 51 वीरचक्र, 89 शौर्य चक्र व 985 अन्य सेना मेडल शामिल हैं.
आबादी के लिहाज से देखा जाए तो भारतीय सेना को मिले शौर्य सम्मानों में से हर दसवां मेडल हिमाचली के वीर के सीने पर सजा है. करीब 70 लाख की आबादी वाले हिमाचल प्रदेश में 1.06 लाख से अधिक भूतपूर्व फौजी हैं. यानी एक लाख से अधिक फौजी देश की सेवा करने के बाद सेवानिवृत्त जीवन जी रहे हैं. यदि सेवारत सैनिकों व अफसरों की बात की जाए तो हिमाचल प्रदेश के थलसेना में ही 55 हजार अफसर व जवान हैं. हिमाचल प्रदेश में चार लाख परिवार किसी न किसी रूप से सेना व अन्य सुरक्षा बलों से जुड़े हुए हैं.
प्रेम कुमार धूमल ने सबसे पहले उठाई मांग: हिमाचल अथवा हिमालयी राज्यों की अलग से बटालियन हो, ये सपना सबसे पहले प्रेम कुमार धूमल ने देखा था. पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल ने इसके लिए काफी प्रयास किया. बाद में हिमाचल के हर सीएम ने इसके लिए प्रयास किए. स्व. वीरभद्र सिंह और फिर मौजूदा सीएम जयराम ठाकुर की सरकार ने भी बाकायदा विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा. हिमाचल के पूर्ण राज्यत्व दिवस पर स्वर्ण जयंती समारोह के दौरान राष्ट्रपति के समक्ष भी देवभूमि के शौर्य का उल्लेख हुआ. नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री (Leader of Opposition Mukesh Agnihotri) ने इस अवसर पर हिमाचल की मांग को दोहराया था.
पहले हिमाचल रेजीमेंट की होती थी बात: पूर्व पीएम व हिमाचल को दूसरा घर कहने वाले भारत रत्न स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में हिमाचल की ये मांग जोरदार तरीके से उठी थी. उस समय देश के रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीस थे. तब उन्होंने कहा था कि राज्यों के नाम से रेजीमेंट नहीं बनती. इस पर पहाड़ के नेताओं ने तर्क दिया कि हिमाचल न सही हिमालयन रेजीमेंट का गठन किया जाए, जिसमें सभी हिमालयी राज्य शामिल हों. यदि ये संभव हो जाए तो हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और अन्य हिमालयी राज्यों के वीरों को नई पहचान भी मिलेगी और युवाओं के सामने शौर्य का आकाश छूने के सपने और समीप हो जाएंगे.
बड़ा राज्य, बड़ा अनुपात: जनसंख्या के आधार पर देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की सेना में भागीदारी सर्वाधिक है. देश की जनसंख्या का 16.5 प्रतिशत यूपी में है और सेना में भागीदारी 14.5 प्रतिशत है. इसी तरह पंजाब में देश की जनसंख्या का 2.3 प्रतिशत हिस्सा है और सेना में भागीदारी 7.7 प्रतिशत है. इसके बाद महाराष्ट्र और राजस्थान तथा फिर हरियाणा का नंबर आता है. हरियाणा की सेना में भागीदारी 5.7 प्रतिशत है. यदि जम्मू-कश्मीर और हिमाचल को देखा जाए तो यहां देश की जनसंख्या का क्रमश: 1.01 और 0.57 प्रतिशत है, लेकिन सेना में भागीदारी चार प्रतिशत या उससे अधिक है.
हिमाचल प्रदेश में हर तीसरे घर से एक सैनिक देश की सेवा में है. खासकर कांगड़ा व हमीरपुर जिला में तो ये एक परंपरा सी चली आ रही है. हिमाचल के वीर लाला राम और भंडारी राम को विक्टोरिया क्रॉस सम्मान मिल चुका है. इस समय सत्तासीन पार्टी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (BJP National President JP Nadda) हिमाचल से हैं. जीवित योद्धा परमवीर संजय कुमार जेपी नड्डा के गृह जिला बिलासपुर से ही हैं. इसी तरह पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल, जिन्होंने ये सपना देखा था, उनके बेटे अनुराग ठाकुर राष्ट्रीय राजनीति में चर्चित चेहरा हैं. पीएम नरेंद्र मोदी तो हिमाचल को अपना दूसरा घर कहते ही हैं.
ऐसे में जब देश में पंजाब रेजीमेंट, डोगरा रेजीमेंट, सिख रेजीमेंट, सिख लाइट इन्फेंट्री, जम्मू कश्मीर रेजीमेंट, जम्मू कश्मीर राइफल्स, लद्दाख स्काउट्स सक्रिय भूमिका में हैं तो हिमालयन रेजीमेंट का अस्तित्व भी होना चाहिए. हिमाचल विधानसभा ने मौजूदा सीएम जयराम ठाकुर के कार्यकाल में भी ऐसा संकल्प पारित किया है. इस मांग को लेकर पक्ष और विपक्ष एक हैं. हिमालयन रेजीमेंट के गठन से हिमाचल की शौर्य पहचान को और विस्तार मिलेगा.
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