शिमला: चुनावी साल (himachal assembly election 2022) में जयराम सरकार का एक फैसला प्रदेश में हलचल मचा सकता है. हिमाचल प्रदेश में भूमि सुधार कानून और लैंड सीलिंग एक्ट से छेड़छाड़ करने से सभी सरकारें परहेज करती हैं, लेकिन जयराम सरकार ने लैंड सीलिंग एक्ट से पर्यटन यूनिट्स (exclude tourism units from land ceiling act) को बाहर करने का निर्णय ले लिया है. बड़ी बात ये है कि उद्योग विभाग ने ये फैसला लिया है, जबकि इसके लिए कायदे से नियमों का पालन नहीं किया गया है. दरअसल तथ्य ये है कि लैंड सीलिंग एक्ट भारतीय संविधान के नौंवे शेड्यूल का एक्ट है और इसमें संशोधन के लिए विधानसभा में बिल पास करना जरूरी है. विधानसभा में बिल पास करने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाता है, लेकिन उद्योग विभाग के स्तर पर ही फैसला ले लिया गया है. उद्योग विभाग ने अधिसूचना भी जारी कर दी है.
ये है पूरा मामला: उद्योग विभाग ने अधिसूचना जारी कर पर्यटन यूनिट्स को लैंड सीलिंग एक्ट में छूट दी है. उद्योग विभाग एसीएस यानी अतिरिक्त मुख्य सचिव आरडी धीमान की तरफ अधिसूचना जारी की गई. इस अधिसूचना के अनुसार राज्य में अब टूरिज्म यूनिट्स यानी होटल और रिजार्ट लैंड सीलिंग एक्ट में छूट के लिए इंडस्ट्रियल अंडरटेकिंग कंसीडर किए जाएंगे. आसान शब्दों में कहा जाए तो इस अधिसूचना के बाद पर्यटन यूनिट्स हिमाचल प्रदेश सीलिंग ऑन लैंड होल्डिंग्स एक्ट-1972 की धारा 5-एच के तहत इन्हें सीलिंग से छूट मिलेगी.
प्रावधान ये है कि हिमाचल में कोई भी व्यक्ति या संस्था 150 बीघा जमीन से अधिक नहीं रख सकता. हालांकि कुछ धार्मिक संस्थाओं व चाय बागानों सहित उद्योग लगाने के लिए ये सीलिंग लागू नहीं होती. लेकिन जयराम सरकार ने उद्योग विभाग के जरिए जो अधिसूचना जारी की है, उसके अनुसार कोई भी कारोबारी या निवेशक डेढ़ सौ बीघा से अधिक जमीन ले सकेगा. इस अधिसूचना का अध्ययन करें तो टूरिज्म यूनिटस को इंडस्ट्रियल अंडरटेकिंग सिर्फ लैंड सीलिंग एक्ट में छूट पर ही रहेगी.
वहीं, पर्यटन यूनिट्स स्थापित करने वाले उद्योग विभाग की तरफ से मिलने वाले अन्य इन्सेंटिव के हकदार नहीं होंगे. अधिसूचना में कहा गया है कि हिमाचल प्रदेश इंडस्ट्रियल इन्वेस्टमेंट पॉलिसी-2019 या इसी तरह की विभाग की अन्य नीतियों में भी इन्हें लाभ नहीं मिलेगा. उद्योग विभाग तर्क दे रहा है कि ये फैसला हिमाचल में पर्यटन क्षेत्र में निवेश लाने के लिए किया गया है, परंतु आने वाले समय में ये हिमाचल में सियासी भूचाल ला सकता है.
उद्योग विभाग के अतिरिक्त सचिव आईडी धीमान (additional secretary industries department id dhiman,) ने बताया कि पर्यटन के क्षेत्र में निवेश लाने के लिए यह व्यवस्था की गई है. इससे पहले लैंड सीलिंग में छूट न होने की वजह से निवेशकों को प्रस्ताव नहीं दिया जा सकता था. हिमाचल में यदि किसी ने पर्यटन सेक्टर में बड़ा इन्फ्रास्ट्रक्चर स्थापित करना हो तो लैंड सीलिंग एक्ट के कारण संभव नहीं हो पाता था.
हिमाचल में इससे पहले लैंड सीलिंग एक्ट से चाय बागानों, उद्योगों, जल विद्युत परियोजनाओं और राज्य सरकार के बोर्ड निगमों के अलावा यूनिवर्सिटी जैसे स्वायत्त संस्थानों को छूट मिली हुई है. इन पर लैंड सीलिंग एक्ट लागू नहीं होता. ये सभी डेढ़ सौ बीघा से अधिक जमीन रख सकते हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्थाओं के के तौर पर इस समय हिमाचल में डेरा ब्यास राधास्वामी सत्संग को छूट दी गई है. धार्मिक संस्था के रूप में डेरा ब्यास ही एक मात्र संस्था है जो लैंड सीलिंग एक्ट व धारा-118 जैसे कानूनों से बाहर है. हिमाचल प्रदेश का कोई भी निवासी 150 बीघा तक ही जमीन रख सकता है.
तीन साल पहले हुए विवाद में गई थी रामसुभग सिंह की कुर्सी: वर्ष 2019 में भी लैंड सीलिंग एक्ट से जुड़ा एक विवाद खासा चर्चा में रहा था. मौजूदा मुख्य सचिव रामसुभग सिंह तब अतिरिक्त मुख्य सचिव थे. उस दौरान ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट के लिए खास तौर पर स्थापित पोर्टल राइजिंग हिमाचल पर लैंड सीलिंग एक्ट से जुड़ा विवादित डॉक्यूमेंट अपलोड करने के मामले में एसीएस पर्यटन रामसुभग सिंह पर गाज गिरी थी. तब सरकार ने रामसुभग सिंह को पर्यटन विभाग से हटा दिया था. अगस्त 2019 में जयराम सरकार ने रामसुभग सिंह को तत्काल प्रभाव से पर्यटन विभाग के कार्यभार से मुक्त कर दिया था.
मामला यूं था कि राइजिंग हिमाचल पोर्टल पर पर्यटन निगम के 14 होटलों को लीज पर देने और चाय बागानों में लैंड सीलिंग एक्ट के प्रावधानों को दरकिनार करते हुए कमर्शियल गतिविधियां चलाने से संबंधित एक डॉक्यूमेंट अपलोड हुआ था. हैरानी की बात है कि इस बारे में न तो कैबिनेट को पता था और न ही मुख्यमंत्री कार्यालय को. बाद में मामला सामने आया तो विपक्षी दल कांग्रेस ने विधानसभा में सरकार को घेरा. आरोप था कि इन्वेस्टर्स मीट के बहाने लैंड सीलिंग एक्ट बदलने और पर्यटन निगम के घाटे वाले होटल बेचने की गुपचुप तरीके से कोशिश की गई. तब मामले में चौतरफा घिरी सरकार ने तुरंत विवादित डॉक्यूमेंट को पोर्टल से हटाया और जांच का ऐलान किया था.
उस समय मुख्यमंत्री ने सदन में स्वीकार किया कि इस किस्म का विवादित दस्तावेज सरकारी पोर्टल पर अपलोड होना दुर्भाग्यपूर्ण है. लैंड सीलिंग एक्ट व पर्यटन निगम के होटलों को लीज पर देने का सरकार का दूर-दूर तक कोई इरादा नहीं है. अब फिर से एक ऐसा भी फैसला हुआ है. इस बार उद्योग विभाग ने ऐसा किया है. देखना है कि विपक्ष इस मसले पर सरकार को कितना घेर पाता है.
ये भी पढ़ें: भड़काऊ वायरल ऑडियो संदेश में पन्नू की ही आवाज, ऐसे हुआ खुलासा