शिमला: सीमित आर्थिक संसाधनों वाले प्रदेश, हिमाचल को कर्ज के मर्ज का इलाज नहीं सूझ (Himachal State Debt status ) रहा. कैग की रिपोर्ट में हर बार चेतावनी मिलती है कि खर्च कम करना पड़ेगा और नए आर्थिक संसाधन तलाशने होंगे, लेकिन स्थिति सुधर नहीं रही है. हिमाचल का कर्ज 62 हजार करोड़ रुपए से (Debt on Himachal government) अधिक का हो गया है. यही स्थिति रही तो एक दशक बाद हिमाचल प्रदेश बुरी तरह से डेब्ट ट्रैप यानी कर्ज के मकड़जाल में फंस (Himachal trapped in debt trap) कर रह जाएगा.
केंद्र व वित्तायोग की उदार आर्थिक सहायता के बावजूद हिमाचल की स्थिति में सुधार नहीं आ रहा है. अब हालात ये हो गए हैं कि नए वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बाद हिमाचल को सालाना पांच हजार करोड़ रुपए अतिरिक्त जुटाने होंगे. हिमाचल के खजाने का अधिकांश हिस्सा कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर खर्च हो रहा है. कैग की रिपोर्ट आने के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि स्थिति का अध्ययन किया जा रहा है और खर्च कम करने पर सरकार (CM Jairam Thakur on CAG Report) जोर देगी.
हिमाचल की नाजुक आर्थिक स्थिति की पृष्ठभूमि पर नजर डालें तो वर्ष 2012 यानी नौ साल पहले जब प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार ने सत्ता छोड़ी थी तो हिमाचल प्रदेश पर 28,760 करोड़ रुपए का कर्ज था. बाद में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के समय यह कर्ज बढ़कर 47,906 करोड़ रुपए हो गया. मौजूदा सरकार के आंकड़ों के अनुसार हिमाचल सरकार 2018-19 में 5737 करोड़ रुपए मार्केट लोन ले सकती थी, लेकिन सरकार ने कुल 4120 करोड़ रुपए ही लोन लिया.
वहीं, वित्तीय वर्ष 2020-21 में सरकार की मार्केट लोन की सीमा 9187 करोड़ रुपए थी और लोन केवल 6000 करोड़ रुपए ही लिया गया. भाजपा का कहना है कि जयराम सरकार ने तीन साल में पूर्व की कांग्रेस सरकार के समय में लिए गए 19,199 करोड़ रुपए के कर्ज में से 19,486 करोड़ रुपए वापस (Loan on Jairam government) भी लौटाए हैं. हिमाचल प्रदेश को पंद्रहवें वित्तायोग से उदार आर्थिक सहायता मिली है. महीने में 952 करोड़ रुपए वित्तायोग की तरफ से मिल रहे हैं. इसके अलावा रेवेन्यू डेफेसिट ग्रांट से भी काफी मदद मिल रही है. वित्तायोग ने अस्सी हजार करोड़ रुपए से अधिक मंजूर किए हैं. उसमें से एक हजार करोड़ रुपए मंडी ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट (Mandi Green Field Airport) के लिए है.
हिमाचल कर्ज के जाल से नहीं निकल पा रहा (Himachal trapped in debt trap) है. कारण ये है कि सरकार के पास संसाधन कम है, खर्च ज्यादा और वेतन-पेंशन का बड़ा बोझ. नए आयोग की सिफारिशों के बाद सरकार को कर्मचारियों के वेतन और पेंशन पर पचास फीसदी बजट खर्च करना पड़ेगा, अभी ये 42 फीसदी है.आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ राजीव सूद का कहना है कि हिमाचल को नए संसाधन तलाशने होंगे. पर्यटन सेक्टर को मजबूत करना होगा. वहीं, वित्तायोग के चेयरमैन एनके सिंह ने भी हिमाचल सरकार को पर्यटन सेक्टर मजबूत करने की सलाह दी है.
ये भी पढ़ें: सीएम आवास ओक ओवर के पास तेंदुआ दिखने से स्थानीय लोगों में दहशत, वन विभाग से की ये मांग
बता दें कि हिमाचल सरकार का मौजूदा वित्तीय वर्ष में बजट का आंकड़ा 50,192 करोड़ रुपए है. यदि इसी बजट में सौ रुपए को मानक रखा जाए तो सरकारी कर्मियों के वेतन पर 25.31 रुपए खर्च होंगे, इसी तरह पेंशन पर 14.11 रुपए खर्च होंगे. इसके अलावा हिमाचल को ब्याज की अदायगी पर 10 रुपए, लोन की अदायगी पर 6.64 रुपए चुकाने होंगे. इसके बाद सरकार के पास विकास के लिए महज 43.94 रुपए ही बच रहे थे. हिमाचल का राजकोषीय घाटा 7789 करोड़ रुपए अनुमानित है. यह घाटा हिमाचल के सकल घरेलू उत्पाद का 4.52 प्रतिशत है. ऐसे में ये स्थिति (Himachal drowning in debt) चिंताजनक है.
अप्रैल 2021 में हिमाचल प्रदेश पर कर्ज का बोझ 60544 करोड़ रुपए था. पिछले साल यानी 2020 में मार्च महीने तक ये आंकड़ा 56,107 करोड़ रुपए था. यदि 2013-14 की बात करें तो कर्ज का ये बोझ 31,442 करोड़ रुपए था यानी आठ साल में ही ये दोगुना हो गया है. इस समय कर्ज 62 हजार करोड़ रुपए से अधिक है. हिमाचल सरकार ने दिसंबर 2020 में एक हजार करोड़ रुपए का लोन लिया था, फिर जनवरी 2021 में और एक हजार करोड़ रुपए का लोन लिया.
ये भी पढ़ें: लाहौल स्पीति में बर्फबारी से प्रभावित हुई एचआरटीसी बस सेवा, पानी लिए भी झेलनी पड़ रही परेशानी
अभी सरकार ने फिर से दो हजार करोड़ रुपए का कर्ज (HP government took loan) लिया है. हालांकि ये कर्ज सरकार की तय लिमिट के भीतर ही है. पिछले वित्तीय वर्ष में हिमाचल सरकार की लोन लिमिट एक साल के लिए 6500 करोड़ रुपए थी. इस बार लोन लिमिट बढ़ाई गई है, इसके लिए मार्च महीने में बजट सत्र में विधेयक लाया गया था. इसके अनुसार सकल राज्य घरेलू उत्पाद के तीन फीसदी की बजाय पांच फीसदी लोन लिमिट प्रस्तावित थी.
नेता प्रतिपक्ष मुकेश अगिनहोत्री (Leader Of Opposition Mukesh Agnihotri on Himachal Debt) का कहना है कि राज्य सरकार अपने खर्च पर अंकुश नहीं लगा रही. कैग की रिपोर्ट में भी इसकी पोल खुली है. उन्होंने कहा कि जयराम सरकार कर्ज लेने में ही विश्वास रखती है. वहीं, भाजपा नेता सुरेश भारद्वाज का कहना है कि कांग्रेस सरकारों के समय प्रदेश पर कर्ज का बोझ बढ़ा है.
ये भी पढ़ें : हिमाचल में बर्फबारी ने बढ़ाई ठंड, शीतलहर की चपेट में प्रदेश के कई हिस्से