शिमला: देश भर के राज्यों की सरकारें कर्ज के सहारे चल रही हैं. हर साल राज्यों पर कर्ज का बोझ बढ़ता ही जाता है. ताजा उदाहरण पड़ोसी राज्य पंजाब का है. ढाई लाख करोड़ से भी अधिक के कर्ज में डूबे पंजाब की आम आदमी सरकार ने जनता से कई ऐसे वादे किए हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए फिर से भारी-भरकम कर्ज की जरूरत होगी. ऐसे में छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश ने (loan of 5400 crore less than the fixed limit) देश भर के राज्यों के समक्ष एक मिसाल पेश की है. हिमाचल ने बताया है कि जरूरत न होने पर कर्ज लेने से कैसे बचा जाए.
जीडीपी के तय हिस्से के मुताबिक इस वित्तीय वर्ष के लिए हिमाचल (financial year himachal pradesh) की लोन लिमिट 9400 करोड़ रुपए थी. यानी हिमाचल प्रदेश वित्तीय वर्ष 2021-22 में 9400 करोड़ का कर्ज ले सकता था, लेकिन जयराम सरकार ने केवल 4000 करोड़ रुपए कर्ज ही लिया. इस तरह राज्य सरकार ने 5400 करोड़ का कर्ज लेने से परहेज किया. इसका लाभ ये होगा कि हिमाचल पर कर्ज का बोझ अपेक्षाकृत कम होगा और लिए गए कर्ज के ब्याज का भार भी सिर पर नहीं होगा. ये सुखद घटनाक्रम है. बड़ी बात ये है कि हिमाचल सरकार ने कोविड संकट के बावजूद किसी तरह फाइनेंशियल मैनेजमेंट बेहतर की है. आइए, समझते हैं कि वो कौन सी वजूहात रहीं, जिस कारण हिमाचल ने तय लिमिट से 5400 करोड़ रुपए कम कर्ज लिया.
वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए केंद्र सरकार ने हिमाचल के लिए लोन की लिमिट 9400 करोड़ रुपए तय की थी. वर्ष 2021 का अधिकांश समय कोविड से जूझने में लगा. फिर पंजाब सरकार ने अपने यहां नया वेतन आयोग लागू कर दिया. चूंकि सरकारी कर्मियों के वेतन के लिए हिमाचल सरकार पंजाब पैटर्न को फॉलो करती है, लिहाजा भाजपा सरकार पर वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने का दबाव पड़ा. सरकार ने वेतन आयोग की सिफारिशों को भी लागू किया और कर्ज भी नहीं लिया.
ये ठीक है कि वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बाद कर्मचारियों के लिए बकाया एरियर अभी दिया जाना बाकी है. फिर जयराम सरकार की परीक्षा बजट सत्र के दौरान थी कि क्या सरकार कोई ऐसे ऐलान करती है, जिससे राज्य के खजाने पर बोझ पड़े? लेकिन राज्य सरकार ने विवेक से काम लिया और लोक लुभावन घोषणाएं करने की बजाय सामाजिक सुरक्षा पेंशन बढ़ाने और समाज के कमजोर वर्गों के लिए मानदेय में बढ़ोतरी की.
हिमाचल सरकार ने पूरे वित्तीय वर्ष के दौरान केवल 4000 करोड़ रुपए का लोन ही लिया. नए साल यानी 2022 में जनवरी महीने में हिमाचल सरकार ने एक हजार करोड़ रुपए का कर्ज लेने के लिए प्रक्रिया शुरू की. जब राज्य सरकार ने देखा कि ये लोन पहले की बजाय महंगी ब्याज दर पर मिल रहा है तो हाथ पीछे खींच लिए. फिर मार्च के पहले पखवाड़े में 1400 करोड़ रुपए के कर्ज के लिए प्रक्रिया शुरू की गई. इस बार भी ब्याज दर महंगी होने के कारण सरकार ने लोन नहीं लिया. अब वित्तीय वर्ष समाप्त हो रहा है और सरकार की तरफ से लोन लेने की कोई कोशिश नहीं की गई है. इस तरह 5400 करोड़ के बोझ से हिमाचल सरकार बच गई है. हालांकि सरकार ने लोन के लिए दोनों दफा बिड कर दी थी, परंतु कर्ज लेने से परहेज किया गया.
राज्य सरकार ने केंद्र से आग्रह किया है कि वित्तीय वर्ष की लोन लिमिट में से जो 5400 करोड़ रुपए सरेंडर हो रहा है, उसके लिए अगले वित्तीय वर्ष में इजाजत दी जाए. अभी केंद्र सरकार ने हिमाचल को इस पर कोई संकेत नहीं दिया है, किंतु जिस तरह से हिमाचल ने कर्ज न लेने का उदाहरण पेश किया है, संभव है कि केंद्र सरकार हिमाचल को राहत दे. वहीं, भाजपा सरकार अब अपने इस कदम को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करेगी. वैसे भी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर हिमाचल के उपर कर्ज के बोझ को लेकर कांग्रेस सरकारों पर ठीकरा फोड़ते रहे हैं. अब तो उन्हें कांग्रेस को घेरने के लिए एक तथ्यपूर्ण बहाना मिल जाएगा.
हिमाचल प्रदेश पर इस समय 63 हजार करोड़ रुपए (debt burden on jairam government ) के करीब कर्ज है. हिमाचल के बजट का एक बड़ा हिस्सा सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन अदा करने पर खर्च हो जाता है. यदि सौ रुपए को मानक माने तो इस बार के बजट में इस सौ रुपए में से वेतन और पेंशन पर 41 रुपए खर्च होंगे. लोन यानी कर्ज की अदायगी पर 11 रुपए चुकाने होंगे. इसी तरह लिए गए कर्ज के ब्याज पर सरकार को दस रुपए चुकाने हैं. इस तरह विकास कार्यों के लिए केवल 29 रुपए ही बचते हैं. हिमाचल के सीएम जयराम ठाकुर ने इस बार 51365 करोड़ रुपए का बजट पेश किया है.
2019 के मानसून सेशन में सीएम जयराम ने गिनाया था ये गणित: वर्ष 2019 के मानसून सेशन में कर्ज का सवाल उठा था. उस समय सीएम जयराम ठाकुर ने बताया था कि उनकी सरकार ने दो साल में कुल 2711 करोड़ रुपए कर्ज लिया. उन्होंने बताया था कि पूर्व की कांग्रेस सरकार ने पांच साल में 18787 करोड़ रुपए कर्ज लिया. यानी हर साल 3757 करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज कांग्रेस की 2012 से 2017 के दौरान की सरकार ने लिया.
पिछले बजट सत्र में पेश आया था रोचक घटनाक्रम: पिछले बजट सत्र के दौरान इसी संदर्भ में एक दिलचस्प घटनाक्रम पेश आया था. सदन में लोन लिमिट संबंधी विधेयक लाया गया था. तब विधेयक पेश करने के वक्त कैबिनेट मंत्री सुरेश भारद्वाज ने कहा था कि प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार ने 2012 में जब सत्ता छोड़ी थी तो हिमाचल पर 28760 करोड़ रुपए का कर्ज था. बाद में कांग्रेस सरकार के समय यह कर्ज 47906 करोड़ रुपए हो गया.
हिमाचल में कांग्रेस व भाजपा के बीच कर्ज पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता है. मौजूदा सरकार के आंकड़ों के अनुसार हिमाचल सरकार 2018-19 में 5737 करोड़ रुपए मार्केट लोन ले सकती थी, लेकिन सरकार ने कुल 4120 करोड़ रुपए ही लोन लिया. वित्तीय वर्ष 2020-21 में सरकार की मार्केट लोन की सीमा 9187 करोड़ रुपए थी और लोन केवल 6000 करोड़ रुपए ही लिया गया. भाजपा का कहना है कि जयराम सरकार ने तीन साल में पूर्व की कांग्रेस सरकार के समय लिए गए 19199 करोड़ रुपए के कर्ज में से 19486 करोड़ रुपए वापिस भी लौटाए. अब इस बार सरकार ने 9400 करोड़ रुपए की तय लिमिट से 5400 करोड़ रुपए कम कर्ज लिया है. ऐसा पहली बार हुआ है कि राज्य सरकार ने एक वित्तीय वर्ष में इतना कम कर्ज लिया. देश के अन्य राज्यों को भी इससे सीख लेने की जरूरत है.
राज्य सरकार के पूर्व वित्त सचिव केआर भारती का कहना है कि वित्तीय मैनेजमेंट समय की मांग है. उनका सुझाव है कि राज्य को आय के साधन बढ़ाने चाहिए और कर्ज लेने की तरफ कम झुकाव रखना चाहिए. बजट में लोक लुभावन घोषणाओं और फ्री के मकड़जाल से बचना चाहिए. राज्य सरकार के पूर्व आर्थिक सलाहकार प्रदीप चौहान कहते हैं कि हिमाचल के लिए कर्ज एक बड़ी समस्या है. सरकार को कर्ज लेने से बचने की हरसंभव कोशिश करनी चाहिए.