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कांग्रेस की सियासत में नया मोड़ साबित होंगे 2022 के चुनाव, वीरभद्र सिंह के बिना पार्टी के लिए कठिन हुई डगर

हिमाचल विधानसभा चुनाव 2022 (Himachal Assembly Elections 2022) में जीत में कहीं कोई कमी न रहे इसके लिए कांग्रेस पार्टी जोर-शोर में जुटी है. हालांकि इस साल बिना वीभद्र सिंह के कांग्रेस के लिए हिमाचल में पहला चुनाव है, ऐसे में पार्टी के सामने कई चुनौतियां हैं. दरअसल वीरभद्र सिंह अकेले अपने दम पर चुनाव का रुख पलटने में माहिर थे. वीरभद्र सिंह के निधन के बाद कांग्रेस में कोई एक सर्वमान्य व शक्तिशाली लीडर प्रदेश स्तर पर नहीं है. शायद यही वजह है कि टिकट वितरण में कांग्रेस को सर्व सम्मति बनाने में पसीने छूट रहे हैं.

Former Himachal CM Virbhadra Singh
हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह
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Published : Oct 2, 2022, 10:58 AM IST

शिमला: हिमाचल कांग्रेस की सियासत में 2022 के चुनाव (Himachal Assembly Elections 2022) नया मोड़ साबित होंगे. इस बार पार्टी के कुछ दिग्गज चुनाव मैदान में नहीं दिखेंगे. सबसे बड़ा चेहरा जो चुनावी रण में प्रत्यक्ष दिखने की बजाय पोस्टरों में ही नजर आएगा, वो वीरभद्र सिंह का होगा. दशकों के सियासी सफर में वीरभद्र सिंह हर चुनाव के जिज्ञासा के केंद्र में रहे हैं. कांग्रेस के लिए बिना वीरभद्र सिंह हिमाचल में पहला चुनाव है. बेशक उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह को हाईकमान ने हिमाचल में पार्टी का मुखिया (Himachal Congress President Pratibha Singh) बनाया है, लेकिन वीरभद्र सिंह जैसी मंझी हुई सियासत प्रतिभा सिंह को सीखने में लंबा समय लगेगा.

अकेले दम पर चुनाव का रुख पलटने में माहिर थे वीरभद्र सिंह: वीरभद्र सिंह अकेले अपने दम पर चुनाव का रुख पलटने में माहिर थे. वर्ष 2012 का चुनाव इसका गवाह है. उस समय प्रदेश में कांग्रेस की पोजीशन मजबूत नहीं थी. प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार का कामकाज संतोषजनक था और भाजपा मिशन रिपीट के लिए निश्चिंत लग रही थी. ठीक उसी समय वीरभद्र सिंह केंद्र की राजनीति से हिमाचल में आए. उन्होंने अध्यक्ष पद संभाला और चुनाव के समय टिकट वितरण में अपने समर्थकों को आगे बढ़ाने में सफल रहे. तब वीरभद्र सिंह ने प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से हाईकमान तक ये संदेश पहुंचा दिया था कि टिकट वितरण में बहुत अधिक हस्तक्षेप उन्हें मंजूर नहीं होगा.

वीरभद्र सिंह के रहते कांग्रेस को नहीं पड़ी स्टार प्रचारक की जरूरत: वीरभद्र सिंह ने खुद शिमला ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र (Shimla Rural Assembly Constituency) से चुनाव लड़ा. वे अपने निर्वाचन क्षेत्र में जाने की बजाय प्रदेश भर में दौरे करते रहे. कांग्रेस के सभी नेता अपने चुनाव क्षेत्र में वीरभद्र सिंह की जमसभा के लिए कतार में खड़े रहे. वीरभद्र सिंह ने प्रदेश भर का दौरा कर भाजपा का मिशन रिपीट डिलीट कर दिया और कांग्रेस सत्ता में आ गई. वीरभद्र सिंह के मौजूद रहते हुए न तो कांग्रेस को किसी स्टार प्रचारक की जरूरत पड़ी और न ही चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस हाईकमान को सीएम के पद पर किसी का नाम सोचने की आवश्यकता रही. खैर, अब परिस्थितियां अलग हैं. (Congress on BJP Mission Repeat in Himachal)

अभी भी जनता के दिलों में है वीरभद्र सिंह का नाम: वीरभद्र सिंह के निधन के बाद कांग्रेस में कोई एक सर्वमान्य व शक्तिशाली लीडर प्रदेश स्तर पर नहीं है. राजनीतिक गलियारों में कहा जाता था कि वीरभद्र सिंह में इतने समर्थ थे कि शेर और बकरी को एक घाट पानी पिलाते थे. यानी पार्टी में मजबूत व कमजोर, सभी नेताओं को नाथ कर रखते थे. कांग्रेस नेता जानते हैं कि वीरभद्र सिंह का नाम अभी भी जनता के दिलों में है. यही कारण है कि प्रतिभा सिंह के अध्यक्ष बनने की चिट्ठी जब जारी हुई तो उनका नाम प्रतिभा वीरभद्र सिंह लिखा गया. (Former Himachal CM Virbhadra Singh)

भाजपा में शामिल हो रहे हैं कांग्रेस नेता: हाल ही में नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री (Leader of Opposition Mukesh Agnihotri) ने कहा कि भाजपा वीरभद्र सिंह के फोटो से भी घबराती है. कांग्रेस का कोई भी नेता हो, वो वीरभद्र सिंह को लेकर आगे बढ़ने की बात करता है. उनके बेटे वीरभद्र सिंह के विकास मॉडल की चर्चा करते हैं. ऐसे में स्पष्ट है कि तस्वीर में न होते हुए भी वीरभद्र सिंह ही कांग्रेस की तकदीर हैं, लेकिन वीरभद्र सिंह की देह रूप में मौजूदगी न होने से कांग्रेस को कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ रहा है. कांग्रेस के नेता भाजपा में (Congress Leader joins BJP) जा रहे हैं. साढ़े चार दशक तक वीरभद्र सिंह के साथ साए की तरह रहे हर्ष महाजन भाजपा में चले गए. दो विधायक पवन काजल व लखविंद्र सिंह राणा भी पार्टी छोड़ गए. कांग्रेस के कुछ और नेताओं के भी पार्टी छोड़ने की चर्चा है. (Mukesh Agnihotri on BJP)

कांग्रेस में टिकट आवंटन को लेकर मंथन: टिकट वितरण में कांग्रेस को सर्व सम्मति बनाने में पसीने छूट रहे हैं. प्रदेश स्तर पर पार्टी में कोई स्टार प्रचारक नहीं है. पार्टी में वर्चस्व की जंग भी अंदरखाते चल रही है. प्रतिभा सिंह कभी संगठन में सक्रिय नहीं रही. वे सभी को साथ लेकर चलने की बात करती हैं, लेकिन उनके पास साम-दाम-दंड-भेद को लागू करने की कूवत नहीं दिखती. पार्टी में मुकेश अग्निहोत्री, सुखविंद्र सिंह सुक्खू सहित कौल सिंह ठाकुर की अपनी महत्वकांक्षाएं हैं. ऐसे में आम कार्यकर्ता हतप्रभ हैं कि किसके साथ चलना है. वीरभद्र सिंह जैसे बड़े कद के नेता की गौर मौजूदगी में ऐसी ही मुश्किलें आनी लाजिमी हैं. (Ticket distribution in Himachal Congress)

क्या कहते हैं राजनीतिक विशेषज्ञ: कहा जा सकता है कि ये चुनाव कांग्रेस के लिए सियासी तौर पर आने वाले समय का नया मोड़ साबित होंगे. वरिष्ठ मीडिया कर्मी धनंजय शर्मा के अनुसार वीरभद्र सिंह के बिना ये कांग्रेस का पहला चुनाव है. वीरभद्र सिंह के होते हुए कांग्रेस को टिकट वितरण, चुनाव प्रचार और विपक्ष के खिलाफ सियासी तिकड़मों के लिए कोई चिंता नहीं करनी पड़ती थी, लेकिन अब परिस्थितियां अलग हैं. ऐसे में ये चुनाव कांग्रेस के लिहाज से अत्यंत रोचक और आने वाले समय में पार्टी की दशा व दिशा तय करने वाले होंगे.

ये भी पढ़ें: 'कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह का भी बीजेपी में स्वागत, 15 अक्टूबर के बाद करेंगे टिकटों की घोषणा'

शिमला: हिमाचल कांग्रेस की सियासत में 2022 के चुनाव (Himachal Assembly Elections 2022) नया मोड़ साबित होंगे. इस बार पार्टी के कुछ दिग्गज चुनाव मैदान में नहीं दिखेंगे. सबसे बड़ा चेहरा जो चुनावी रण में प्रत्यक्ष दिखने की बजाय पोस्टरों में ही नजर आएगा, वो वीरभद्र सिंह का होगा. दशकों के सियासी सफर में वीरभद्र सिंह हर चुनाव के जिज्ञासा के केंद्र में रहे हैं. कांग्रेस के लिए बिना वीरभद्र सिंह हिमाचल में पहला चुनाव है. बेशक उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह को हाईकमान ने हिमाचल में पार्टी का मुखिया (Himachal Congress President Pratibha Singh) बनाया है, लेकिन वीरभद्र सिंह जैसी मंझी हुई सियासत प्रतिभा सिंह को सीखने में लंबा समय लगेगा.

अकेले दम पर चुनाव का रुख पलटने में माहिर थे वीरभद्र सिंह: वीरभद्र सिंह अकेले अपने दम पर चुनाव का रुख पलटने में माहिर थे. वर्ष 2012 का चुनाव इसका गवाह है. उस समय प्रदेश में कांग्रेस की पोजीशन मजबूत नहीं थी. प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार का कामकाज संतोषजनक था और भाजपा मिशन रिपीट के लिए निश्चिंत लग रही थी. ठीक उसी समय वीरभद्र सिंह केंद्र की राजनीति से हिमाचल में आए. उन्होंने अध्यक्ष पद संभाला और चुनाव के समय टिकट वितरण में अपने समर्थकों को आगे बढ़ाने में सफल रहे. तब वीरभद्र सिंह ने प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से हाईकमान तक ये संदेश पहुंचा दिया था कि टिकट वितरण में बहुत अधिक हस्तक्षेप उन्हें मंजूर नहीं होगा.

वीरभद्र सिंह के रहते कांग्रेस को नहीं पड़ी स्टार प्रचारक की जरूरत: वीरभद्र सिंह ने खुद शिमला ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र (Shimla Rural Assembly Constituency) से चुनाव लड़ा. वे अपने निर्वाचन क्षेत्र में जाने की बजाय प्रदेश भर में दौरे करते रहे. कांग्रेस के सभी नेता अपने चुनाव क्षेत्र में वीरभद्र सिंह की जमसभा के लिए कतार में खड़े रहे. वीरभद्र सिंह ने प्रदेश भर का दौरा कर भाजपा का मिशन रिपीट डिलीट कर दिया और कांग्रेस सत्ता में आ गई. वीरभद्र सिंह के मौजूद रहते हुए न तो कांग्रेस को किसी स्टार प्रचारक की जरूरत पड़ी और न ही चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस हाईकमान को सीएम के पद पर किसी का नाम सोचने की आवश्यकता रही. खैर, अब परिस्थितियां अलग हैं. (Congress on BJP Mission Repeat in Himachal)

अभी भी जनता के दिलों में है वीरभद्र सिंह का नाम: वीरभद्र सिंह के निधन के बाद कांग्रेस में कोई एक सर्वमान्य व शक्तिशाली लीडर प्रदेश स्तर पर नहीं है. राजनीतिक गलियारों में कहा जाता था कि वीरभद्र सिंह में इतने समर्थ थे कि शेर और बकरी को एक घाट पानी पिलाते थे. यानी पार्टी में मजबूत व कमजोर, सभी नेताओं को नाथ कर रखते थे. कांग्रेस नेता जानते हैं कि वीरभद्र सिंह का नाम अभी भी जनता के दिलों में है. यही कारण है कि प्रतिभा सिंह के अध्यक्ष बनने की चिट्ठी जब जारी हुई तो उनका नाम प्रतिभा वीरभद्र सिंह लिखा गया. (Former Himachal CM Virbhadra Singh)

भाजपा में शामिल हो रहे हैं कांग्रेस नेता: हाल ही में नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री (Leader of Opposition Mukesh Agnihotri) ने कहा कि भाजपा वीरभद्र सिंह के फोटो से भी घबराती है. कांग्रेस का कोई भी नेता हो, वो वीरभद्र सिंह को लेकर आगे बढ़ने की बात करता है. उनके बेटे वीरभद्र सिंह के विकास मॉडल की चर्चा करते हैं. ऐसे में स्पष्ट है कि तस्वीर में न होते हुए भी वीरभद्र सिंह ही कांग्रेस की तकदीर हैं, लेकिन वीरभद्र सिंह की देह रूप में मौजूदगी न होने से कांग्रेस को कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ रहा है. कांग्रेस के नेता भाजपा में (Congress Leader joins BJP) जा रहे हैं. साढ़े चार दशक तक वीरभद्र सिंह के साथ साए की तरह रहे हर्ष महाजन भाजपा में चले गए. दो विधायक पवन काजल व लखविंद्र सिंह राणा भी पार्टी छोड़ गए. कांग्रेस के कुछ और नेताओं के भी पार्टी छोड़ने की चर्चा है. (Mukesh Agnihotri on BJP)

कांग्रेस में टिकट आवंटन को लेकर मंथन: टिकट वितरण में कांग्रेस को सर्व सम्मति बनाने में पसीने छूट रहे हैं. प्रदेश स्तर पर पार्टी में कोई स्टार प्रचारक नहीं है. पार्टी में वर्चस्व की जंग भी अंदरखाते चल रही है. प्रतिभा सिंह कभी संगठन में सक्रिय नहीं रही. वे सभी को साथ लेकर चलने की बात करती हैं, लेकिन उनके पास साम-दाम-दंड-भेद को लागू करने की कूवत नहीं दिखती. पार्टी में मुकेश अग्निहोत्री, सुखविंद्र सिंह सुक्खू सहित कौल सिंह ठाकुर की अपनी महत्वकांक्षाएं हैं. ऐसे में आम कार्यकर्ता हतप्रभ हैं कि किसके साथ चलना है. वीरभद्र सिंह जैसे बड़े कद के नेता की गौर मौजूदगी में ऐसी ही मुश्किलें आनी लाजिमी हैं. (Ticket distribution in Himachal Congress)

क्या कहते हैं राजनीतिक विशेषज्ञ: कहा जा सकता है कि ये चुनाव कांग्रेस के लिए सियासी तौर पर आने वाले समय का नया मोड़ साबित होंगे. वरिष्ठ मीडिया कर्मी धनंजय शर्मा के अनुसार वीरभद्र सिंह के बिना ये कांग्रेस का पहला चुनाव है. वीरभद्र सिंह के होते हुए कांग्रेस को टिकट वितरण, चुनाव प्रचार और विपक्ष के खिलाफ सियासी तिकड़मों के लिए कोई चिंता नहीं करनी पड़ती थी, लेकिन अब परिस्थितियां अलग हैं. ऐसे में ये चुनाव कांग्रेस के लिहाज से अत्यंत रोचक और आने वाले समय में पार्टी की दशा व दिशा तय करने वाले होंगे.

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