शिमला: वर्ष 2017 की बात है. चुनावी बेला में भाजपा के उस समय के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने सिरमौर में प्रेम कुमार धूमल को पार्टी का सीएम फेस घोषित किया था. तब उत्साह में आए भाजपा कार्यकर्ताओं ने विधानसभा चुनाव में पार्टी के सिर जीत का सेहरा बांधा. प्रेम कुमार धूमल स्टार प्रचारक के तौर पर प्रदेश भर में घूमे और पार्टी को जीत दिलवाई, लेकिन अपनी सीट हार गए. उस समय को याद करें तो पार्टी ने चुनाव अभियान शुरू होने के काफी समय बाद सीएम फेस घोषित किया था.
अब पांच साल में परिस्थितियां बदली हैं. पार्टी हाईकमान ने चुनावी रण सजने से पहले ही जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया है. चार राज्यों में जीत से भाजपा उत्साह में है. हिमाचल प्रवास पर आए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने अपने घर में जीत का परचम लहराने के लिए सारा प्लान संगठन और सरकार के समक्ष रखा है. जेपी नड्डा ने साफ-साफ कह दिया है कि चुनावी साल में न तो कैबिनेट में फेरबदल होगा और न ही संगठन में कोई बदलाव किया जाएगा. जयराम ठाकुर पार्टी का चेहरा होंगे और उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा.
ऐसे में अब जयराम ठाकुर के कंधे पर बड़ी जिम्मेदारी आ गई है. उन्हें न केवल हाईकमान के भरोसे पर खरा उतरना है, बल्कि अपनी साख को भी बचाना है. मंडी जिले में पिछले चुनाव में भाजपा को भारी सफलता मिली थी. उपचुनाव में पार्टी को उस समय हताशा का सामना करना पड़ा, जब मंडी संसदीय सीट का उपचुनाव कांग्रेस ने जीत लिया था. उसके अलावा तीन विधानसभा सीटों पर हुआ उपचुनाव भी भाजपा हार गई थी. ये तो चार राज्यों में सत्ता रिपीट होने से हिमाचल भाजपा को मनोवैज्ञानिक बढ़त मिली है, वरना उपचुनाव की हार में भाजपा की पेशानी पर चिंता की लकीरें डाल दी थीं. खैर, अब नई परिस्थितियों में हिमाचल भाजपा की तैयारियों पर बात करना जरूरी है.
हिमाचल में परंपरा है कि बारी-बारी से कांग्रेस और भाजपा सत्ता में आते हैं. इस बार आम आदमी पार्टी जोर-शोर से प्रचार कर रही है कि वो तीसरा विकल्प देगी, लेकिन जिस तरह से भाजपा ने आप में तोड़-फोड़ की है, उसने शुरुआत में ही अरविंद केजरीवाल को झटका दे दिया है. आलम ये है कि आम आदमी पार्टी की हिमाचल वर्किंग कमेटी भंग कर दी गई है. वहीं, जेपी नड्डा अपने हिमाचल प्रवास में एक के बाद एक बैठकें और कार्यक्रम कर पार्टी में नए प्राण फूंक गए हैं. विपक्षी दल कांग्रेस की दशा भी कोई अधिक ठीक नहीं है. चुनावी साल में कांग्रेस अभी शुरुआती दौर की रणनीति ही तय नहीं कर पाई है. कांग्रेस पार्टी किसकी अगुवाई में चुनाव लड़ेगी, ये भी अभी तय नहीं है. क्या कांग्रेस में समय से पहले सीएम फेस का ऐलान होगा, ऐसे संकेत भी नहीं मिल रहे हैं.
हालांकि कांग्रेस नेताओं के पास एक तर्क हमेशा मौजूद रहता है कि हाईकमान ही अंतिम फैसला करेगी. एक बात गौर करने वाली है कि जब तक वीरभद्र सिंह मौजूद थे, नेतृत्व का कोई सवाल ही नहीं उठता था. एक तरह से हिमाचल कांग्रेस में वीरभद्र सिंह ही परमानेंट चेहरा थे. अब नई परिस्थितियों में हिमाचल कांग्रेस में वीरभद्र सिंह के बिना ये पहला चुनाव है. कांग्रेस ने अभी भी ये तय नहीं है कि चुनाव में संगठन का स्वरूप कैसा होगा. ऐसे में भाजपा के लिए फिलहाल चुनावी दौड़ आसान लग रही है.
जेपी नड्डा ने एक तरह से हिमाचल भाजपा का चुनावी अभियान शुरू कर गए हैं. भाजपा के पास छह लाख से अधिक सदस्य हैं. पार्टी साल भर बूथ से लेकर मंडल और जिला से लेकर राज्य स्तर तक सक्रिय रहती है. चुनावी साल में संगठन में भी बदलाव नहीं होगा. इस तरह सुरेश कश्यप ही हिमाचल भाजपा को लीड करेंगे.
वहीं, जेपी नड्डा ने टिकट को लेकर कह दिया है कि आम परिस्थितियों में भी पार्टी कम से कम दस फीसदी सिटिंग एमएलए के टिकट काट देती है. साथ ही ये भी कहा है कि विधायकों को पार्टी द्वारा तय किए गए मापदंडों पर खरा उतरना होगा. यानी आगामी चुनाव में टिकट भी परफार्मेंस के आधार पर मिलेगा. यही कारण है कि पार्टी की सख्ती को देखते हुए विधायकों को भी अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास कार्यों व जनता के बीच रहने का पूरा ब्यौरा हाईकमान को रिपोर्ट के रूप में देना होता है.
हिमाचल में करीब चार दशक से कोई भी दल सत्ता रिपीट नहीं कर पाया है. इस बार भाजपा गंभीरता से मिशन रिपीट पर काम कर रही है. जून महीने में भाजपा एक लाख युवाओं के साथ रैली करेगी. उस रैली में पीएम नरेंद्र मोदी संबोधन देंगे. इसी तरह पार्टी ने हर महीने का कार्यक्रम तय कर लिया है. सामाजिक सुरक्षा पेंशन के दायरे में हिमाचल के साढ़े सात लाख की आबादी शामिल की गई है. कर्मचारियों की मांगों को लेकर कई कदम उठाए गए हैं. भाजपा सरकार इस वोट बैंक को साधने के लिए सघन प्रचार करेगी.
हिमाचल भाजपा के अध्यक्ष सुरेश कश्यप ने कहा कि उपचुनाव की हार के बाद पार्टी ने मंथन किया है और पूर्व की गलतियों को सुधारने के लिए काम किया गया है. पार्टी ने अपने चुनाव अभियान को सक्रियता से शुरू कर दिया है. चार राज्यों में जीत के बाद भाजपा के पास मनोवैज्ञानिक बढ़त है. निगम चुनाव में भाजपा फिर से जीत हासिल करेगी और फिर उसके बाद विधानसभा चुनाव में मिशन रिपीट को सफल करेगी. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी दावा किया है कि पार्टी ने उन्हें जिम्मेदारी दी है और वे भाजपा को फिर से सत्ता में लाकर दिखाएंगे.
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. एमपीएस राणा का कहना है कि भाजपा की सबसे बड़ी ताकत समय से फैसला लेना है. कार्यकर्ता साल भर एक्टिव मोड में रहते हैं. पार्टी संगठन के तौर पर निरंतर गतिविधियां चलाती हैं. वहीं, हिमाचल में कांग्रेस अभी संगठन के स्तर पर भाजपा के मुकाबले अधिक सक्रिय नहीं है. तीसरा विकल्प खड़ा होने में समय लगेगा. अभी तक का अनुभव बताता है कि हिमाचल में तीसरा मोर्चा कभी कामयाब नहीं हो पाया है. कांग्रेस के पास महंगाई को लेकर सरकार को घेरने का मौका है. फिर वीरभद्र सिंह के बिना पहली बार कांग्रेस चुनावी मैदान में उतर रही है. जाहिर है वीरभद्र सिंह जैसे कद्दावर नेता के बिना पार्टी का मनोबल अधिक मजूबत नहीं होगा. कांग्रेस को जल्दी से संगठन का रूप तय करना होगा कि किसकी अगुवाई में चुनाव होगा.
वहीं, हिमाचल भाजपा की राह में भी रोड़े कम नहीं हैं. टिकट वितरण पहली चुनौती होगी. अलबत्ता ये सही है कि चुनाव प्रचार के मोर्चे पर भाजपा कांग्रेस के मुकाबले बढ़त में है. फिलहाल, जेपी नड्डा ने हिमाचल भाजपा में संगठन व सरकार के मोर्चे पर स्थिति स्पष्ट कर दी है. पार्टी के हिमाचल प्रभारी और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सहित संगठन के नेता निरंतर बैठकें कर रहे हैं. देखना होगा कि भाजपा हिमाचल में भी मिशन रिपीट कामयाब करती है या नहीं. वैसे अनुराग ठाकुर ने हिमाचल आकर ये दावा किया है कि जीत का चौका पार्टी लगा चुकी है और अब गुजरात तथा हिमाचल फतह के बाद पार्टी छक्का जड़ेगी. यदि ऐसा हुआ तो हिमाचल भाजपा में जयराम ठाकुर का कद और बढ़ जाएगा.
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