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महंगाई और नोटा ने बिगाड़ा हिमाचल में भाजपा का खेल, भीतरघात ने भी बढ़ाई चिंता

हिमाचल में सत्ता के सेमी फाइनल में भाजपा बुरी तरह से हार गई. मंडी लोकसभा सीट सहित तीनों विधानसभा सीटों पर भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा है. प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि भाजपा ने जीत के लिए हर संभव प्रयास किये, लेकिन कांग्रेस ने महंगाई को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है. सीएम ने कहा कि मंडी के चुनावी इतिहास में यह सबसे कम अंतर की जीत है.

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मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर. ( फाइल)
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Published : Nov 2, 2021, 7:21 PM IST

Updated : Jan 4, 2022, 2:36 PM IST

शिमला: हिमाचल में एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में भाजपा की पराजय ने कई संकेत दिए हैं. चुनाव परिणाम आने के बाद आनन-फानन में मुख्यमंत्री कार्यालय की तरफ से मीडिया को सूचना आई कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर अपनी बात रखना चाहते हैं. मीडिया के साथ चर्चा के दौरान बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष सुरेश कश्यप (BJP State President Suresh Kashyap) भी मौजूद थे. जाहिर है पराजय का असर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और पार्टी मुखिया सुरेश कश्यप के चेहरे पर स्पष्ट दिख रहा था.

जैसा कि होता आया है, राजनीति के क्षेत्र में हार के कारण तलाशे जाते हैं और ठीकरा किसी ना किसी के सिर पर फोड़ा जाता है. मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष ने यह ठीकरा महंगाई, नोटा, भीतरघात पर फोड़ा है. मंडी सीट पर 13 हजार के करीब मत नोटा के पक्ष में गए हैं. इससे साबित होता है कि लोग भाजपा से तो नाराज हैं ही, कांग्रेस से भी कोई खास खुश नहीं है. वीरभद्र सिंह फैक्टर (Virbhadra Singh Factor) नहीं होता तो प्रतिभा सिंह को ऐसी जीत शायद न मिलती.

वीडियो.

चुनाव प्रचार के दौरान सोशल मीडिया पर भी कई वीडियो ऐसे आए जिसमें लोग चाहे वो अल्पशिक्षित बुजुर्ग हों या फिर स्वरोजगार करने वाले युवा, सभी महंगाई के लिए भाजपा को कोस रहे थे. यह आवाज सत्ता के मद में चूर भाजपा नेताओं तक शायद नहीं पहुंची. फिर कुछ लोग सवर्ण समाज की अनदेखी पर भी नाराज थे. कई लोग इलाके के विकास की उपेक्षा से गुस्से में थे. इसका उदाहरण सोलन जिला के कुनिहार से देखने को मिला जहां सवर्ण समाज के लोगों ने हर क्षेत्र में अपनी अनदेखी का गुस्सा नोटा के रूप में निकाला.

इसी तरह किन्नौर में हाइड्रो प्रोजेक्ट के कारण पर्यावरण को हो रहे नुकसान पर भी लोग नाराज थे. ये छोटे-छोटे फैक्टर मल्टीप्लाई होकर एटॉमिक रिएक्शन की तरह फूटे और भाजपा की नैया ले डूबे. भाजपा और संगठन को इस बात का मुगालता था कि उनके पास मजबूत कैडर है. लेकिन वे यह नहीं भांप पाए कि इसी कैडर में कुछ निष्ठावान कार्यकर्ता अनदेखी के कारण नाराज हैं. पार्टी के कई प्रभावशाली नेता भी अन्यमनस्क होकर चुनाव मैदान में उतरे. उदाहरण के लिए महेश्वर सिंह, अनिल शर्मा, गोविंद राम शर्मा, पूर्व पार्टी अध्यक्ष और पूर्व कैबिनेट मंत्री खिमी राम शर्मा.

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने मंडी में पूरा जोर लगाया. यहां तक की मंडी की अस्मिता के नाम का इमोशनल कार्ड भी खेला लेकिन बाजी नहीं पलट पाए. वहीं यह चुनाव महेंद्र सिंह की प्रबंधन क्षमता की भी कलई उतारने वाले साबित हुए. महेंद्र सिंह अब तक कोई भी चुनाव नहीं हारे थे यह पहला चुनाव है जिसका जिम्मा महेंद्र सिंह के पास था, लेकिन भाजपा हार गई. यह सही है कि भारतीय जनता पार्टी इस बात से खुद को संतुष्ट कर लेगी कि जीत का अंतर बहुत कम है, लेकिन चुनावी मैदान में जीत-जीत ही होती है. चाहे वो एक वोट से ही क्यों ना हो.

ये चुनाव भाजपा के लिए तो सबक लेकर आए ही हैं. कांग्रेस के लिए भी मंथन का विषय है. यह देखना होगा कि कांग्रेस अपने कैडर और जनता के बीच संपर्क के जरिए यह चुनाव जीती है या फिर सहानुभूति फैक्टर के कारण अर्की मंडी व फतेहपुर की जीत में इमोशन के रोल को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता. रोहित ठाकुर पहले भी जुब्बल-कोटखाई में भी नरेंद्र बरागटा के लिए चुनौती रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस को अति आत्म विश्वास में नहीं आना होगा. इस चुनाव के बाद भाजपा और कांग्रेस में नए समीकरण बनेंगे.

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व और राजनीतिक कौशल को भी सवालिया घेरे में लिया जाएगा. हालांकि मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष ने भीतरघातियों पर एक्शन लेने की बात कही है, लेकिन यह भी देखना होगा कि इससे पार्टी को लाभ होगा या नुकसान. कांग्रेस में विक्रमादित्य सिंह का कद बढ़ा है. उन्होंने मंडी सीट पर सक्रियता दिखाई और मेहनत भी खूब की अब 2022 में हिमाचल की सत्ता का फाइनल मैच है. क्या महंगाई और बेरोजगारी मुद्दा होगी या फिर भाजपा इस हार से सबक लेकर विनम्रता का पाठ पढ़ते हुए जनता के बीच जाएगी यह देखना होगा.


वहीं, कांग्रेस में भी प्रथम पंक्ति का सवाल उभरेगा. कांग्रेस यदि इस भरोसे बैठी रही कि पांच साल बाद सत्ता परिवर्तन होता ही है तो यह आने वाले समय में गलत भी साबित हो सकता है. जयराम ठाकुर आने वाले समय में खुद को साबित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे उन्होंने पार्टी हाईकमान को भी भरोसे में लिया है. अमित शाह भी कह चुके हैं कि हिमाचल में पांच नहीं पंद्रह साल के लिए भाजपा की ही सरकार बनाने के प्रयास करना है.

जयराम ठाकुर का राजनीतिक भविष्य भी तभी शिखर पर रहेगा जब वे सत्ता का फाइनल जीतेंगे अन्यथा आने वाले समय में भाजपा के ही भीतर कोई अन्य चेहरा उभरकर नेतृत्व करेगा. क्योंकि हाईकमान प्रयोग करने से पीछे नहीं हटती. बेशक चुनावी हार के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की बॉडी लैंग्वेज हताशा से भरी थी, लेकिन उनके बयान पर गौर किया जाए तो मनोवैज्ञानिक रूप से यह पता चल रहा है कि जयराम ठाकुर कांग्रेस के कम मार्जिन से जीतने पर कुछ हद तक राहत महसूस कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें: हिमाचल में एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों पर कांग्रेस विजयी, उपचुनाव में BJP का सूपड़ा साफ

वहीं, कांग्रेस में मनोवैज्ञानिक बढ़त मिलते ही उत्साह का माहौल है. ऐसे माहौल में दिग्गज नेता कौल सिंह ठाकुर की मुख्यमंत्री बनने की अभिलाषा जोर पकड़ ले तो कोई हैरत नहीं होगी. कांग्रेस में वीरभद्र सिंह के बाद जीएस बाली के देहावसान से रिक्तता पैदा हुई है. अब कांग्रेस में मुकेश अग्निहोत्री, सुखविंद्र सिंह सुक्खू, आशा कुमारी, रामलाल ठाकुर के बीच महत्वाकांक्षा उभरेगी. कुल मिलाकर चार सीटों के उपचुनाव वाले सेमीफाइनल के लिए दोनों दलों को लेकर नई संभावनाओं के कई दरवाजे खोल दिए हैं.

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. महेंद्र प्रताप के अनुसार हिमाचल में स्थानीय मुद्दे प्रभावी रहते हैं. इन उपचुनावों सहित आने वाले विधानसभा चुनावों को भी इसी संदर्भ में देखना चाहिए. उन्होंने कहा कि जीत के चौके के बाद जाहिर है कांग्रेस उत्साहित है और मनोवैज्ञानिक बढ़त भी उसे मिली है. जहां तक भाजपा का सवाल है, अगर पार्टी गंभीर होकर मंथन करती है तो 2022 में दोनों दलों के बीच कड़ी टक्कर होगी.

ये भी पढ़ें: मंडी संसदीय सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी प्रतिभा सिंह ने हासिल की जीत, ब्रिगेडियर खुशाल सिंह ठाकुर को हराया

शिमला: हिमाचल में एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में भाजपा की पराजय ने कई संकेत दिए हैं. चुनाव परिणाम आने के बाद आनन-फानन में मुख्यमंत्री कार्यालय की तरफ से मीडिया को सूचना आई कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर अपनी बात रखना चाहते हैं. मीडिया के साथ चर्चा के दौरान बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष सुरेश कश्यप (BJP State President Suresh Kashyap) भी मौजूद थे. जाहिर है पराजय का असर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और पार्टी मुखिया सुरेश कश्यप के चेहरे पर स्पष्ट दिख रहा था.

जैसा कि होता आया है, राजनीति के क्षेत्र में हार के कारण तलाशे जाते हैं और ठीकरा किसी ना किसी के सिर पर फोड़ा जाता है. मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष ने यह ठीकरा महंगाई, नोटा, भीतरघात पर फोड़ा है. मंडी सीट पर 13 हजार के करीब मत नोटा के पक्ष में गए हैं. इससे साबित होता है कि लोग भाजपा से तो नाराज हैं ही, कांग्रेस से भी कोई खास खुश नहीं है. वीरभद्र सिंह फैक्टर (Virbhadra Singh Factor) नहीं होता तो प्रतिभा सिंह को ऐसी जीत शायद न मिलती.

वीडियो.

चुनाव प्रचार के दौरान सोशल मीडिया पर भी कई वीडियो ऐसे आए जिसमें लोग चाहे वो अल्पशिक्षित बुजुर्ग हों या फिर स्वरोजगार करने वाले युवा, सभी महंगाई के लिए भाजपा को कोस रहे थे. यह आवाज सत्ता के मद में चूर भाजपा नेताओं तक शायद नहीं पहुंची. फिर कुछ लोग सवर्ण समाज की अनदेखी पर भी नाराज थे. कई लोग इलाके के विकास की उपेक्षा से गुस्से में थे. इसका उदाहरण सोलन जिला के कुनिहार से देखने को मिला जहां सवर्ण समाज के लोगों ने हर क्षेत्र में अपनी अनदेखी का गुस्सा नोटा के रूप में निकाला.

इसी तरह किन्नौर में हाइड्रो प्रोजेक्ट के कारण पर्यावरण को हो रहे नुकसान पर भी लोग नाराज थे. ये छोटे-छोटे फैक्टर मल्टीप्लाई होकर एटॉमिक रिएक्शन की तरह फूटे और भाजपा की नैया ले डूबे. भाजपा और संगठन को इस बात का मुगालता था कि उनके पास मजबूत कैडर है. लेकिन वे यह नहीं भांप पाए कि इसी कैडर में कुछ निष्ठावान कार्यकर्ता अनदेखी के कारण नाराज हैं. पार्टी के कई प्रभावशाली नेता भी अन्यमनस्क होकर चुनाव मैदान में उतरे. उदाहरण के लिए महेश्वर सिंह, अनिल शर्मा, गोविंद राम शर्मा, पूर्व पार्टी अध्यक्ष और पूर्व कैबिनेट मंत्री खिमी राम शर्मा.

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने मंडी में पूरा जोर लगाया. यहां तक की मंडी की अस्मिता के नाम का इमोशनल कार्ड भी खेला लेकिन बाजी नहीं पलट पाए. वहीं यह चुनाव महेंद्र सिंह की प्रबंधन क्षमता की भी कलई उतारने वाले साबित हुए. महेंद्र सिंह अब तक कोई भी चुनाव नहीं हारे थे यह पहला चुनाव है जिसका जिम्मा महेंद्र सिंह के पास था, लेकिन भाजपा हार गई. यह सही है कि भारतीय जनता पार्टी इस बात से खुद को संतुष्ट कर लेगी कि जीत का अंतर बहुत कम है, लेकिन चुनावी मैदान में जीत-जीत ही होती है. चाहे वो एक वोट से ही क्यों ना हो.

ये चुनाव भाजपा के लिए तो सबक लेकर आए ही हैं. कांग्रेस के लिए भी मंथन का विषय है. यह देखना होगा कि कांग्रेस अपने कैडर और जनता के बीच संपर्क के जरिए यह चुनाव जीती है या फिर सहानुभूति फैक्टर के कारण अर्की मंडी व फतेहपुर की जीत में इमोशन के रोल को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता. रोहित ठाकुर पहले भी जुब्बल-कोटखाई में भी नरेंद्र बरागटा के लिए चुनौती रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस को अति आत्म विश्वास में नहीं आना होगा. इस चुनाव के बाद भाजपा और कांग्रेस में नए समीकरण बनेंगे.

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व और राजनीतिक कौशल को भी सवालिया घेरे में लिया जाएगा. हालांकि मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष ने भीतरघातियों पर एक्शन लेने की बात कही है, लेकिन यह भी देखना होगा कि इससे पार्टी को लाभ होगा या नुकसान. कांग्रेस में विक्रमादित्य सिंह का कद बढ़ा है. उन्होंने मंडी सीट पर सक्रियता दिखाई और मेहनत भी खूब की अब 2022 में हिमाचल की सत्ता का फाइनल मैच है. क्या महंगाई और बेरोजगारी मुद्दा होगी या फिर भाजपा इस हार से सबक लेकर विनम्रता का पाठ पढ़ते हुए जनता के बीच जाएगी यह देखना होगा.


वहीं, कांग्रेस में भी प्रथम पंक्ति का सवाल उभरेगा. कांग्रेस यदि इस भरोसे बैठी रही कि पांच साल बाद सत्ता परिवर्तन होता ही है तो यह आने वाले समय में गलत भी साबित हो सकता है. जयराम ठाकुर आने वाले समय में खुद को साबित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे उन्होंने पार्टी हाईकमान को भी भरोसे में लिया है. अमित शाह भी कह चुके हैं कि हिमाचल में पांच नहीं पंद्रह साल के लिए भाजपा की ही सरकार बनाने के प्रयास करना है.

जयराम ठाकुर का राजनीतिक भविष्य भी तभी शिखर पर रहेगा जब वे सत्ता का फाइनल जीतेंगे अन्यथा आने वाले समय में भाजपा के ही भीतर कोई अन्य चेहरा उभरकर नेतृत्व करेगा. क्योंकि हाईकमान प्रयोग करने से पीछे नहीं हटती. बेशक चुनावी हार के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की बॉडी लैंग्वेज हताशा से भरी थी, लेकिन उनके बयान पर गौर किया जाए तो मनोवैज्ञानिक रूप से यह पता चल रहा है कि जयराम ठाकुर कांग्रेस के कम मार्जिन से जीतने पर कुछ हद तक राहत महसूस कर रहे हैं.

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वहीं, कांग्रेस में मनोवैज्ञानिक बढ़त मिलते ही उत्साह का माहौल है. ऐसे माहौल में दिग्गज नेता कौल सिंह ठाकुर की मुख्यमंत्री बनने की अभिलाषा जोर पकड़ ले तो कोई हैरत नहीं होगी. कांग्रेस में वीरभद्र सिंह के बाद जीएस बाली के देहावसान से रिक्तता पैदा हुई है. अब कांग्रेस में मुकेश अग्निहोत्री, सुखविंद्र सिंह सुक्खू, आशा कुमारी, रामलाल ठाकुर के बीच महत्वाकांक्षा उभरेगी. कुल मिलाकर चार सीटों के उपचुनाव वाले सेमीफाइनल के लिए दोनों दलों को लेकर नई संभावनाओं के कई दरवाजे खोल दिए हैं.

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. महेंद्र प्रताप के अनुसार हिमाचल में स्थानीय मुद्दे प्रभावी रहते हैं. इन उपचुनावों सहित आने वाले विधानसभा चुनावों को भी इसी संदर्भ में देखना चाहिए. उन्होंने कहा कि जीत के चौके के बाद जाहिर है कांग्रेस उत्साहित है और मनोवैज्ञानिक बढ़त भी उसे मिली है. जहां तक भाजपा का सवाल है, अगर पार्टी गंभीर होकर मंथन करती है तो 2022 में दोनों दलों के बीच कड़ी टक्कर होगी.

ये भी पढ़ें: मंडी संसदीय सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी प्रतिभा सिंह ने हासिल की जीत, ब्रिगेडियर खुशाल सिंह ठाकुर को हराया

Last Updated : Jan 4, 2022, 2:36 PM IST
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