शिमला: पहाड़ की सुंदरता निहारने के लिए ही सैलानी हिमाचल की सैर के लिए आते हैं, लेकिन यही पहाड़ अब इनसान की जान के दुश्मन साबित हो रहे हैं. किन्नौर के बटसेरी में पहाड़ी से चट्टानें खिसकीं और 9 लोग काल का ग्रास बन गए. ये दिल दहला देने वाला हादसा सोशल मीडिया पर वायरल है. जिस तरह पहाड़ से चट्टानें टूट कर गिर रही हैं, उससे ये संकेत मिलता है कि पहाड़ कमजोर हो रहे हैं. पहाड़ों की इस कमजोरी के पीछे कई कारण हैं.
जनजातीय जिला किन्नौर में जलविद्युत परियोजनाओं ने यहां का पारिस्थितकीय संतुलन बिगाड़ दिया है. भूवैज्ञानिक संजीव शर्मा के अनुसार किन्नौर की चट्टानें वैसे भी मजबूत नहीं हैं. किन्नौर में पर्यावरण की चिंता करने वाले पूर्व आईएएस आरएस नेगी भी यहां आने वाली आपदाओं को जलविद्युत परियोजनाओं से जोड़ते हैं. किन्नौर में करछम-वांगतू, बास्पा, शौंग-टौंग, नाथपा-झाकड़ी जैसी बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं के कारण पहाड़ को नुकसान हुआ है. बड़ी संख्या में टूरिस्ट किन्नौर की खूबसूरती को निहारने के लिए आते हैं. इससे भी पर्यावरण को नुकसान हुआ है. महाराष्ट्र कैडर के आईएएस आरएस नेगी के अनुसार पहाड़ियों पर पेड़ों की संख्या भी कम हुई है. इसके अलावा अवैध निर्माण, अवैध खनन और नदी-नालों के आसपास मकानों के निर्माण से भी स्थितियां खराब हुई हैं.
बटसेरी हादसे में उपरोक्त सभी कारण एकसाथ मौजूद थे. पहाड़ कमजोर हैं और चट्टानें भीं. बारिश के कारण भूस्खलन हो गया. पहाड़ से चट्टानें खिसकती हैं तो बड़े पत्थर तेज गति से नीचे आते हैं. उनकी गति किस कदर तेज होती है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक बड़ा पत्थर जैसे ही लोहे के पुल पर गिरा, पुल टूटकर नदी में जा गिरा. बटसेरी हादसे में नौ सैलानियों की मौत हो गई. इनमें से एक डॉ. दीपा तो कुछ समय पहले तक किन्नौर की खूबसूरती दर्शाती फोटोज सोशल मीडिया पर अपडेट कर रही थी.
स्थानीय लोगों के अनुसार बटसेरी में पहाड़ से पत्थर कुछ समय से गिर रहे थे. जिला प्रशासन भी औपचारिक चेतावनी देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं. वहीं, सैलानियों को अकसर स्थानीय लोग आगाह करते हैं कि बरसात के दौरान किसी भी समय पहाड़ से चट्टानें खिसकती हैं. भूस्खलन से बरसात में हर साल सैकड़ों करोड़ रुपए का नुकसान होता है. किन्नौर तो वैसे भी इस मामले में संवेदनशील है.
पर्यावरणविद भगत सिंह नेगी का कहना है कि दो दशक में जनजातीय जिला में कई निर्माण कार्य हुए हैं. फिर किन्नौर के कुछ इलाके जैसे मालिंग नाला आदि कच्चे पत्थर वाले हैं। यहां पहाड़ से भूस्खलन होता रहता है. किन्नौर में पागल नाला, पुरबनी झूला, लाल ढांक, टिंकू नाला, में अकसर हादसे होते रहते हैं. इन हादसों से निपटने के लिए होलेस्टिक एप्रोच की जरूरत है। जिला प्रशासन को चाहिए की सभी स्थानों को चिन्हित कर वहां चेतावनी बोर्ड लगाए जाएं. साथ ही सैलानियों को भी जागरूक किया जाना चाहिए.
ये भी पढ़ें: किन्नौर लैंडस्लाइड में 9 पर्यटकों की मौत, मंजर देख कांप जाएगी रूह
सैलानियों को भी बरसात में ऐसे स्थानों में जाने के लिए मना किया जाता है, परंतु एडवेंचर के शौक में वे दुस्साहस करते हैं, जिसका परिणाम ऐसे हादसों के रूप में सामने आता है. बटसेरी हादसे में भी सैलानियों ने लापरवाही की थी. स्थानीय जनता सैलानियों को आगाह करती है कि बरसात में पहाड़ी इलाके में नहीं जाना चाहिए. किन्नौर के स्थानीय लोग भी परियोजनाओं के लिए ब्लास्टिंग के विरोधी हैं. यहां प्रोजेक्ट्स निर्माण के लिए अंधाधुंध कटिंग से सेब बागीचों को भी नुकसान हुआ है. साल भर भूस्खलन होने से अकसर रोड बंद हो जाते हैं. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के अनुसार स्थानीय प्रशासन को बरसात और बर्फबारी के दौरान हमेशा अलर्ट किया जाता है. सैलानियों को भी स्थानीय प्रशासन की चेतावनियों पर ध्यान देना चाहिए.
ये भी पढ़ें: GSI की टीम 3 दिन तक छितकुल में करेगी स्टडी, किन्नौर में लैंडस्लाइड की घटनाएं रोकने पर बनेगी रणनीति
ये भी पढ़ें: मौत से चंद लम्हे पहले तक सोशल मीडिया पर तस्वीरें शेयर करती रहीं डॉ दीपा