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हिमाचल में वेतन और भत्तों में बढ़ोतरी के समय पक्ष-विपक्ष बन जाते हैं दोस्त! जानिए सीएम समेत विधायकों की कितनी है सैलरी - MLA Allowance in Himachal

हिमाचल प्रदेश विधानसभा में 68 विधायक हैं. इनमें से 76 फीसदी करोड़पति (Salary of MLAs in Himachal) हैं. हिमाचल के सबसे अमीर विधायकों में टॉप पर चौपाल (Richest MLA of Himachal) के बलवीर सिंह वर्मा हैं. उनके पास सबसे अधिक 90.73 करोड़ की चल एवं अचल संपति है, फिर शिमला ग्रामीण के विधायक व पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह का नाम आता है. इस तरह 76 फीसदी विधायक करोड़पति हैं. 52 विधायक करोड़ों में खेल रहे हैं बाकी 11 विधायक पचास लाख रुपए से अधिक की संपत्ति के मालिक हैं. कुल 5 विधायकों की संपत्ति पचास लाख रुपए से कम है.

allowances and  Salary of MLAs in Himachal
हिमाचल में विधायकों के भत्ते और वेतन
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Published : Jan 29, 2022, 5:30 PM IST

Updated : Jan 29, 2022, 5:56 PM IST

शिमला: इन दिनों राज्य के कर्मचारी और सरकार हिमाचल प्रदेश में नए वेतन आयोग की (new pay commission in hp) सिफारिशों को लागू करने के गुणा-भाग में जुटे हैं. कर्मचारी एक स्वर में ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने की मांग भी जोर-शोर से उठा रहे हैं. निजी सेक्टर में काम करने वाले युवाओं का तर्क है कि सरकारी कर्मियों का वेतन अच्छा-खासा है. वहीं, सरकारी सेक्टर में काम करने वाले इस तर्क के जवाब में कहते हैं कि मेहनत से नौकरी पाई है. ऐसे में इस गुणा-भाग और तर्क-वितर्क के बीच माननीयों के वेतन और पेंशन को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं.

हिमाचल प्रदेश विधानसभा (Himachal Pradesh Vidhan Sabha) में 68 विधायक हैं. इनमें से 76 फीसदी करोड़पति हैं. ओल्ड पेंशन स्कीम के पक्षधर लोग ये कह रहे हैं कि माननीयों यानी नेताओं की पेंशन भी बंद की जाए. यहां ये जानना दिलचस्प रहेगा कि हिमाचल प्रदेश में माननीयों, मंत्रियों व विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष को कितना वेतन मिलता है. उल्लेखनीय है कि पूर्व में हिमाचल प्रदेश में स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के समय में माननीयों के वेतन में बढ़ोतरी हुई थी. उसके बाद चार साल में जयराम सरकार ने केवल माननीयों का यात्रा भत्ता बढ़ाकर चार लाख रुपए सालाना किया है. यात्रा भत्ता बढ़ाने से सरकार के खजाने पर सालाना 1.99 करोड़ रुपए का बोझ पड़ा है.

आइए, देखते हैं कि क्या है माननीयों के वेतन और भत्तों का गणित. ये भी जानेंगे कि (Salary of MLAs in Himachal) हिमाचल विधानसभा में करोड़पति नेता कौन-कौन से हैं. छह साल पहले की बात है, हिमाचल में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी. उस समय हिमाचल प्रदेश पर पैंतीस हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज था. तब वीरभद्र सिंह सरकार ने माननीयों के वेतन में बढ़ोतरी का फैसला लिया. उस समय नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल थे, हालांकि सदन में गतिरोध चल रहा था और एक समय तो ऐसा लगा कि वेतन और भत्तों की बढ़ोतरी का प्रस्ताव कहीं अधर में न लटक जाए. लेकिन जब लक्ष्मी की बारी आई तो पक्ष और विपक्ष के नेता एक सुर में एकजुट हो गए.

अप्रैल 2016 में बजट सत्र के आखिरी दिन वेतन और भत्तों में (MLA Allowance in Himachal) बढ़ोतरी संबंधी प्रस्ताव आया था. विधेयक के पारित होते ही सत्ता और विपक्ष के सदस्यों ने जोर से मेज थपथपा कर उसका स्वागत किया. पूरे सेशन के दौरान एक-दूसरे को कोसने वाले सत्ता व विपक्ष के सदस्य वेतन व भत्तों की बढ़ोतरी पर एकमत थे. तत्कालीन वीरभद्र सिंह की सरकार के तीन साल के कार्यकाल में दूसरी बार माननीयों के वेतन व भत्ते बढ़े थे. बाद में मीडिया से बातचीत में तत्कालीन सीएम वीरभद्र सिंह ने कहा कि विधायकों, मंत्रियों आदि के वेतन व भत्तों में बढ़ोतरी जरूरी थी.

ये है सीएम व मंत्रियों का वेतन-भत्ते का गणित- अप्रैल 2016 में वीरभद्र सिंह सरकार ने माननीयों का वेतन बढ़ाया था. तब सरकार ने मुख्यमंत्री का वेतन 65 से 95 हजार मासिक किया था. इसके साथ सत्कार भत्ते को 30 हजार से बढ़ाकर 95 हजार रुपए किया गया था. कैबिनेट मंत्री का वेतन 50 से 80 हजार रुपए किया और साथ ही अन्य भत्ते भी बढ़ाए गए थे. इससे सरकारी खजाने पर 16.22 करोड़ सालाना का बोझ पड़ा था. जब वीरभद्र सिंह सरकार के समय वेतन बढ़ा तो उससे पहले सीएम को मासिक वेतन के तौर पर 60 हजार रुपए, सत्कार भत्ते के तौर पर 30 हजार रुपए, मुफ्त यात्रा सुविधा के लिए साल में 2 लाख रुपए मिलते थे.

बढ़ोतरी के बाद सीएम का मासिक वेतन 95 हजार रुपए हुआ. सत्कार भत्ते को तीस हजार से बढ़ाकर 95 हजार किया गया है. मुफ्त यात्रा के लिए मिलने वाले भत्ते को ढाई लाख सालाना किया गया था. यात्रा अग्रिम राशि भी दस हजार से बढ़ाकर 25 हजार की गई है. इसी तरह से कैबिनेट मंत्रियों का मासिक वेतन 50 हजार से बढ़ाकर अस्सी हजार किया गया था. सत्कार भत्ता व अन्य सुविधाएं मुख्यमंत्री के बराबर ही है. इसी तरह मुख्य संसदीय सचिवों के वेतन को भी बढ़ाया गया था. सीपीएस यानी मुख्य संसदीय सचिव का वेतन 40 हजार से 65 हजार प्रति माह किया गया था.

संसदीय सचिव को 35 हजार मासिक के स्थान पर 60 हजार रुपए मासिक वेतन तय है. हालांकि जयराम सरकार में सीपीएस व पीएस नहीं हैं. इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष का वेतन पचास हजार रुपए मासिक से बढ़ाकर अस्सी हजार रुपए मासिक किया गया था. वहीं, विधानसभा उपाध्यक्ष का वेतन भी 45 हजार से बढ़ाकर 75 हजार रुपए किया गया था. उनका सत्कार भत्ता भी 30 हजार से 95 हजार मासिक हुआ. यात्रा भत्ता ढाई लाख रुपए सालाना होगा. बाद में जयराम सरकार ने यात्रा भत्ता चार लाख रुपए सालाना किया है.

माननीयों की भी हुई थी मौज- माननीयों यानी विधायकों के वेतन में भी भारी बढ़ोतरी की गई है. उनका वेतन तीस हजार रुपए मासिक के स्थान पर 55 हजार रुपए किया गया था. निर्वाचन क्षेत्र के भत्ते को साठ हजार से बढ़ाकर नब्बे हजार किया गया. कार्यालय भत्ता दस हजार रुपए से बढ़ाकर तीस हजार रुपए किया गया था. इसके अलावा विधायकों के लिए डाटा एंट्री ऑपरेटर के लिए भी 12 हजार रुपए मासिक की बजाय 15 हजार रुपए किए गए थे. सरकार ने तब पूर्व विधायकों की पेंशन को भी बढ़ाया था. उनकी यानी पूर्व विधायकों की पेंशन मुख्य सचिव से अधिक है. ये 36 हजार मासिक है, लेकिन सैलरी और पेंशन में बेसिक के साथ 120 फीसदी महंगाई भत्ता जोड़ा गया.

पेंशन में एक कार्यकाल के बाद जितने भी साल विधायक रहे हों, हर साल के 1000 रुपए अतिरिक्त जोड़े जाएंगे. इस तरह सभी भत्ते जोड़कर अब एक विधायक को 2.10 लाख सैलरी और पूर्व विधायक को औसतन एक लाख रुपए मासिक पेंशन मिलती है. मुख्यमंत्री और मंत्रियों की सैलरी सभी कुछ मिलाकर करीब ढाई लाख रुपए मासिक है. विधायकों की सैलेरी 2.10 लाख रुपए मासिक है.

ये भी पढ़ें- हिमाचल को परेशान कर रहा तुर्की और ईरान का सेब, 4500 करोड़ के कारोबार पर पड़ रही मार

हिमाचल की मौजूदा विधानसभा में 52 विधायक करोड़पति तथा 11 सदस्य के पास 50 लाख से ज्यादा की चल व अचल संपति है. फिर भी सदन में लाए गए विधानसभा सदस्य के भत्ते और पेंशन संशोधन विधेयक 2019 का विरोध ठियोग के विधायक राकेश सिंघा को छोड़कर किसी भी माननीय ने नहीं किया. वो भी तब जब छोटे से राज्य हिमाचल पर 52 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज है और सभी माननीय दो लाख से ज्यादा मासिक वेतन ले रहे हैं. ज्यादातर मामलों में सरकार जब कोई बिल लाती है तो अमूमन विपक्ष इनका विरोध करते हुए सदन से वॉक-आऊट करता है. लेकिन इस मामले में कांग्रेसी विधायकों के सुर भी भाजपा सदस्य से खूब मिले.

हिमाचल विधानसभा में चौपाल के विधायक बलवीर वर्मा के पास सबसे ज्यादा 90.73 करोड़ की चल एवं अचल संपति है. पालमपुर से आशीष बुटेल 21.39 करोड़, जोगिंद्रनगर से प्रेम प्रकाश 20.87 करोड़, गगरेट से राजेश ठाकुर 20.84 करोड़, कुल्लू से सुंदर सिंह ठाकुर 20.80 करोड़, फतेहपुर से सुजान सिंह पठानिया (अब दिवंगत इस सीट पर अब उनके बेटे विधायक हैं) 19.15 करोड़, ठियोग से राकेश सिंघा 18.15 करोड़, कसुम्पटी से अनिरुद्ध 16.22 करोड़, धर्मपुर से महेंद्र सिंह 15.38 करोड़, दून से परमजीत सिंह 12.73 करोड़, शिलाई से हर्ष वर्धन 11.20 करोड़, ऊना से सत्तपाल रायजादा 8.96 करोड़, नाहन से राजीव बिंदल 8.09 करोड़, हरोली से मुकेश अग्निहोत्री 7.75 करोड़, कांगड़ा से पवन काजल 7.57 करोड़, मनाली से गोविंद ठाकुर 6.83 करोड़, द्रंग से जवाहर ठाकुर 5.90 करोड़, नालागढ़ से लखविंद्र राणा 5.72 करोड़ की चल व अचल संपति के मालिक हैं.

नादौन से सुखविंद्र सुक्खू 5.04 करोड़, देहरा से होशियार सिंह 4.84 करोड़, चिंतपूर्णी से बलवीर सिंह 4.55 करोड़, डलहौजी से आशा कुमारी 4.53 करोड़, बड़सर से इंद्रदत्त लखनपाल 4.40 करोड़, शाहपुर से सरवीण चौधरी 4.19 करोड़, ज्वाली से अर्जुन सिंह 3.88 करोड़, कोटखाई से नरेंद्र बरागटा (अब दिवंगत) 3.67 करोड़़, श्री नैनादेवी से रामलाल ठाकुर 3.59 करोड़, नूरपुर से राकेश पठानिया 3.47 करोड़, कुटलैहड़ से वीरेंद्र सिंह कंवर 3.39 करोड़, चंबा से पवन नायर 3.34 करोड़, श्रीरेणुकाजी से विनय कुमार 3.31 करोड़, सराज से जयराम ठाकुर 3.27 करोड़ की चल व अचल संपति के मालिक हैं.

ये भी पढ़ें- न्यूयॉर्क टाइम्स का दावा- भारत ने Pegasus को इजरायल से डिफेंस डील में खरीदा

रामपुर से नंदलाल 3.06 करोड़, किन्नौर से जगत सिंह नेगी 3.04 करोड़, सरकाघाट से इंद्र सिंह 2.79 करोड़, घुमारवी से राजेंद्र गर्ग 2.70 करोड़, आनी से किशोरी लाल 2.52 करोड़, पांवटा साहिब से सुखराम 2.38 करोड़, हमीरपुर से नरेंद्र ठाकुर 2.33 करोड़, सुंदरनगर से राकेश जम्वाल 2.06 करोड़, बिलासपुर से सुभाष ठाकुर 1.84 करोड़, रोहड़ू से एम.एल. ब्राक्टा 1.83 करोड़, झंडुता से जीत राम कटवाल 1.70 करोड़, सुलह से विपिन सिंह परमार 1.45 करोड़, बल्ह से इंद्र सिंह 1.11 करोड़ तथा सोलन से धनी राम शांडिल 1.08 करोड़ की चल व अचल संपति के मालिक हैं. विधायकों की यह आय चुनाव संबंधी खर्च का लेखा-जोखा रखने वाली एडीआर संस्था की रिपोर्ट के अनुसार है.

हिमाचल के सबसे अमीर विधायकों में (Richest MLA of Himachal) टॉप पर चौपाल के बलवीर सिंह वर्मा हैं. उनके पास सबसे अधिक 90.73 करोड़ की चल एवं अचल संपति है, फिर शिमला ग्रामीण के विधायक व पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह का नाम आता है. उनके पास 84.32 करोड़, मंडी सदर के विधायक अनिल शर्मा के पास 40.25 करोड़, अर्की से चुने गए वीरभद्र सिंह के पास 30.52 करोड़ रुपए की संपत्ति दर्ज थी. वे अब दिवंगत हैं और अर्की से संजय अवस्थी विधायक हैं. वहीं, प्रेम कुमार धूमल को पराजित करने वाले राजेंद्र सिंह राणा के पास 26 करोड़ रुपए से अधिक की चल व अचल संपत्ति है. इस तरह 76 फीसदी विधायक करोड़पति हैं. 52 विधायक करोड़ों में खेल रहे हैं बाकी 11 विधायक पचास लाख रुपए से अधिक की संपत्ति के मालिक हैं. कुल 5 विधायकों की संपत्ति पचास लाख रुपए से कम है.

हिसाब लगाया जाए तो सीएम की सैलरी ढाई लाख रुपए है. मंत्रियों की व विधायकों की सैलरी मिलाकर सरकार के खजाने पर सालाना 150 करोड़ रुपए का खर्च है. इसमें पूर्व विधायकों की पेंशन को भी शामिल किया जाए तो आंकड़ा दो सौ करोड़ रुपए सालाना हो जाता है. मुफ्त यात्रा भत्ता भी इसमें शामिल है. जयराम सरकार के कार्यकाल में केवल माकपा विधायक राकेश सिंघा ने निशुल्क यात्रा भत्ते में बढ़ोतरी का विरोध किया था. यही नहीं, उन्होंने ऐलान किया था कि वे निशुल्क यात्रा भत्ता सुविधा नहीं लेंगे.

वहीं, जिस समय वीरभद्र सरकार ने माननीयों का वेतन बढ़ाया था तब कई सामाजिक संगठनों ने इसका विरोध किया था. वहीं, माकपा नेता व कसुम्पटी से चुनाव लड़ चुके डॉ. केएस तंवर ने वीरभद्र सरकार द्वारा 2016 में वेतन बढ़ाए जाने का विरोध किया था. कुलदीप तंवर ने कहा था कि जब त्रिपुरा में विधायकों को बहुत कम वेतन मिलता है तो हिमाचल में आर्थिक संकट होने के बाद वेतन क्यों बढ़ाया गया. डॉ. तंवर ने तब प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि राज्य के 28 हजार 723 जन प्रतिनिधियों के मानदेय में बढ़ोतरी से सरकार के खजाने पर 7.75 करोड़ सालाना का बोझ पड़ा, लेकिन 2016 में अकेले 68 माननीयों के वेतन बढ़ोतरी से 6 करोड़ 36 लाख 48 हजार का बोझ पड़ा. यदि पूर्व विधायकों का पेंशन भत्ता आदि भी जोड़ा जाए तो सालाना बढ़ोतरी के कारण ही 15 करोड़ का बोझ पड़ेगा.

ये भी पढ़ें: Debt on Himachal: हिमाचल को कैसे मिलेगी कर्ज से मुक्ति, वेतन और पेंशन पर 40 फीसदी खर्च, विकास के लिए बचता है इतना हिस्सा

शिमला: इन दिनों राज्य के कर्मचारी और सरकार हिमाचल प्रदेश में नए वेतन आयोग की (new pay commission in hp) सिफारिशों को लागू करने के गुणा-भाग में जुटे हैं. कर्मचारी एक स्वर में ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने की मांग भी जोर-शोर से उठा रहे हैं. निजी सेक्टर में काम करने वाले युवाओं का तर्क है कि सरकारी कर्मियों का वेतन अच्छा-खासा है. वहीं, सरकारी सेक्टर में काम करने वाले इस तर्क के जवाब में कहते हैं कि मेहनत से नौकरी पाई है. ऐसे में इस गुणा-भाग और तर्क-वितर्क के बीच माननीयों के वेतन और पेंशन को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं.

हिमाचल प्रदेश विधानसभा (Himachal Pradesh Vidhan Sabha) में 68 विधायक हैं. इनमें से 76 फीसदी करोड़पति हैं. ओल्ड पेंशन स्कीम के पक्षधर लोग ये कह रहे हैं कि माननीयों यानी नेताओं की पेंशन भी बंद की जाए. यहां ये जानना दिलचस्प रहेगा कि हिमाचल प्रदेश में माननीयों, मंत्रियों व विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष को कितना वेतन मिलता है. उल्लेखनीय है कि पूर्व में हिमाचल प्रदेश में स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के समय में माननीयों के वेतन में बढ़ोतरी हुई थी. उसके बाद चार साल में जयराम सरकार ने केवल माननीयों का यात्रा भत्ता बढ़ाकर चार लाख रुपए सालाना किया है. यात्रा भत्ता बढ़ाने से सरकार के खजाने पर सालाना 1.99 करोड़ रुपए का बोझ पड़ा है.

आइए, देखते हैं कि क्या है माननीयों के वेतन और भत्तों का गणित. ये भी जानेंगे कि (Salary of MLAs in Himachal) हिमाचल विधानसभा में करोड़पति नेता कौन-कौन से हैं. छह साल पहले की बात है, हिमाचल में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी. उस समय हिमाचल प्रदेश पर पैंतीस हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज था. तब वीरभद्र सिंह सरकार ने माननीयों के वेतन में बढ़ोतरी का फैसला लिया. उस समय नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल थे, हालांकि सदन में गतिरोध चल रहा था और एक समय तो ऐसा लगा कि वेतन और भत्तों की बढ़ोतरी का प्रस्ताव कहीं अधर में न लटक जाए. लेकिन जब लक्ष्मी की बारी आई तो पक्ष और विपक्ष के नेता एक सुर में एकजुट हो गए.

अप्रैल 2016 में बजट सत्र के आखिरी दिन वेतन और भत्तों में (MLA Allowance in Himachal) बढ़ोतरी संबंधी प्रस्ताव आया था. विधेयक के पारित होते ही सत्ता और विपक्ष के सदस्यों ने जोर से मेज थपथपा कर उसका स्वागत किया. पूरे सेशन के दौरान एक-दूसरे को कोसने वाले सत्ता व विपक्ष के सदस्य वेतन व भत्तों की बढ़ोतरी पर एकमत थे. तत्कालीन वीरभद्र सिंह की सरकार के तीन साल के कार्यकाल में दूसरी बार माननीयों के वेतन व भत्ते बढ़े थे. बाद में मीडिया से बातचीत में तत्कालीन सीएम वीरभद्र सिंह ने कहा कि विधायकों, मंत्रियों आदि के वेतन व भत्तों में बढ़ोतरी जरूरी थी.

ये है सीएम व मंत्रियों का वेतन-भत्ते का गणित- अप्रैल 2016 में वीरभद्र सिंह सरकार ने माननीयों का वेतन बढ़ाया था. तब सरकार ने मुख्यमंत्री का वेतन 65 से 95 हजार मासिक किया था. इसके साथ सत्कार भत्ते को 30 हजार से बढ़ाकर 95 हजार रुपए किया गया था. कैबिनेट मंत्री का वेतन 50 से 80 हजार रुपए किया और साथ ही अन्य भत्ते भी बढ़ाए गए थे. इससे सरकारी खजाने पर 16.22 करोड़ सालाना का बोझ पड़ा था. जब वीरभद्र सिंह सरकार के समय वेतन बढ़ा तो उससे पहले सीएम को मासिक वेतन के तौर पर 60 हजार रुपए, सत्कार भत्ते के तौर पर 30 हजार रुपए, मुफ्त यात्रा सुविधा के लिए साल में 2 लाख रुपए मिलते थे.

बढ़ोतरी के बाद सीएम का मासिक वेतन 95 हजार रुपए हुआ. सत्कार भत्ते को तीस हजार से बढ़ाकर 95 हजार किया गया है. मुफ्त यात्रा के लिए मिलने वाले भत्ते को ढाई लाख सालाना किया गया था. यात्रा अग्रिम राशि भी दस हजार से बढ़ाकर 25 हजार की गई है. इसी तरह से कैबिनेट मंत्रियों का मासिक वेतन 50 हजार से बढ़ाकर अस्सी हजार किया गया था. सत्कार भत्ता व अन्य सुविधाएं मुख्यमंत्री के बराबर ही है. इसी तरह मुख्य संसदीय सचिवों के वेतन को भी बढ़ाया गया था. सीपीएस यानी मुख्य संसदीय सचिव का वेतन 40 हजार से 65 हजार प्रति माह किया गया था.

संसदीय सचिव को 35 हजार मासिक के स्थान पर 60 हजार रुपए मासिक वेतन तय है. हालांकि जयराम सरकार में सीपीएस व पीएस नहीं हैं. इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष का वेतन पचास हजार रुपए मासिक से बढ़ाकर अस्सी हजार रुपए मासिक किया गया था. वहीं, विधानसभा उपाध्यक्ष का वेतन भी 45 हजार से बढ़ाकर 75 हजार रुपए किया गया था. उनका सत्कार भत्ता भी 30 हजार से 95 हजार मासिक हुआ. यात्रा भत्ता ढाई लाख रुपए सालाना होगा. बाद में जयराम सरकार ने यात्रा भत्ता चार लाख रुपए सालाना किया है.

माननीयों की भी हुई थी मौज- माननीयों यानी विधायकों के वेतन में भी भारी बढ़ोतरी की गई है. उनका वेतन तीस हजार रुपए मासिक के स्थान पर 55 हजार रुपए किया गया था. निर्वाचन क्षेत्र के भत्ते को साठ हजार से बढ़ाकर नब्बे हजार किया गया. कार्यालय भत्ता दस हजार रुपए से बढ़ाकर तीस हजार रुपए किया गया था. इसके अलावा विधायकों के लिए डाटा एंट्री ऑपरेटर के लिए भी 12 हजार रुपए मासिक की बजाय 15 हजार रुपए किए गए थे. सरकार ने तब पूर्व विधायकों की पेंशन को भी बढ़ाया था. उनकी यानी पूर्व विधायकों की पेंशन मुख्य सचिव से अधिक है. ये 36 हजार मासिक है, लेकिन सैलरी और पेंशन में बेसिक के साथ 120 फीसदी महंगाई भत्ता जोड़ा गया.

पेंशन में एक कार्यकाल के बाद जितने भी साल विधायक रहे हों, हर साल के 1000 रुपए अतिरिक्त जोड़े जाएंगे. इस तरह सभी भत्ते जोड़कर अब एक विधायक को 2.10 लाख सैलरी और पूर्व विधायक को औसतन एक लाख रुपए मासिक पेंशन मिलती है. मुख्यमंत्री और मंत्रियों की सैलरी सभी कुछ मिलाकर करीब ढाई लाख रुपए मासिक है. विधायकों की सैलेरी 2.10 लाख रुपए मासिक है.

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हिमाचल की मौजूदा विधानसभा में 52 विधायक करोड़पति तथा 11 सदस्य के पास 50 लाख से ज्यादा की चल व अचल संपति है. फिर भी सदन में लाए गए विधानसभा सदस्य के भत्ते और पेंशन संशोधन विधेयक 2019 का विरोध ठियोग के विधायक राकेश सिंघा को छोड़कर किसी भी माननीय ने नहीं किया. वो भी तब जब छोटे से राज्य हिमाचल पर 52 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज है और सभी माननीय दो लाख से ज्यादा मासिक वेतन ले रहे हैं. ज्यादातर मामलों में सरकार जब कोई बिल लाती है तो अमूमन विपक्ष इनका विरोध करते हुए सदन से वॉक-आऊट करता है. लेकिन इस मामले में कांग्रेसी विधायकों के सुर भी भाजपा सदस्य से खूब मिले.

हिमाचल विधानसभा में चौपाल के विधायक बलवीर वर्मा के पास सबसे ज्यादा 90.73 करोड़ की चल एवं अचल संपति है. पालमपुर से आशीष बुटेल 21.39 करोड़, जोगिंद्रनगर से प्रेम प्रकाश 20.87 करोड़, गगरेट से राजेश ठाकुर 20.84 करोड़, कुल्लू से सुंदर सिंह ठाकुर 20.80 करोड़, फतेहपुर से सुजान सिंह पठानिया (अब दिवंगत इस सीट पर अब उनके बेटे विधायक हैं) 19.15 करोड़, ठियोग से राकेश सिंघा 18.15 करोड़, कसुम्पटी से अनिरुद्ध 16.22 करोड़, धर्मपुर से महेंद्र सिंह 15.38 करोड़, दून से परमजीत सिंह 12.73 करोड़, शिलाई से हर्ष वर्धन 11.20 करोड़, ऊना से सत्तपाल रायजादा 8.96 करोड़, नाहन से राजीव बिंदल 8.09 करोड़, हरोली से मुकेश अग्निहोत्री 7.75 करोड़, कांगड़ा से पवन काजल 7.57 करोड़, मनाली से गोविंद ठाकुर 6.83 करोड़, द्रंग से जवाहर ठाकुर 5.90 करोड़, नालागढ़ से लखविंद्र राणा 5.72 करोड़ की चल व अचल संपति के मालिक हैं.

नादौन से सुखविंद्र सुक्खू 5.04 करोड़, देहरा से होशियार सिंह 4.84 करोड़, चिंतपूर्णी से बलवीर सिंह 4.55 करोड़, डलहौजी से आशा कुमारी 4.53 करोड़, बड़सर से इंद्रदत्त लखनपाल 4.40 करोड़, शाहपुर से सरवीण चौधरी 4.19 करोड़, ज्वाली से अर्जुन सिंह 3.88 करोड़, कोटखाई से नरेंद्र बरागटा (अब दिवंगत) 3.67 करोड़़, श्री नैनादेवी से रामलाल ठाकुर 3.59 करोड़, नूरपुर से राकेश पठानिया 3.47 करोड़, कुटलैहड़ से वीरेंद्र सिंह कंवर 3.39 करोड़, चंबा से पवन नायर 3.34 करोड़, श्रीरेणुकाजी से विनय कुमार 3.31 करोड़, सराज से जयराम ठाकुर 3.27 करोड़ की चल व अचल संपति के मालिक हैं.

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रामपुर से नंदलाल 3.06 करोड़, किन्नौर से जगत सिंह नेगी 3.04 करोड़, सरकाघाट से इंद्र सिंह 2.79 करोड़, घुमारवी से राजेंद्र गर्ग 2.70 करोड़, आनी से किशोरी लाल 2.52 करोड़, पांवटा साहिब से सुखराम 2.38 करोड़, हमीरपुर से नरेंद्र ठाकुर 2.33 करोड़, सुंदरनगर से राकेश जम्वाल 2.06 करोड़, बिलासपुर से सुभाष ठाकुर 1.84 करोड़, रोहड़ू से एम.एल. ब्राक्टा 1.83 करोड़, झंडुता से जीत राम कटवाल 1.70 करोड़, सुलह से विपिन सिंह परमार 1.45 करोड़, बल्ह से इंद्र सिंह 1.11 करोड़ तथा सोलन से धनी राम शांडिल 1.08 करोड़ की चल व अचल संपति के मालिक हैं. विधायकों की यह आय चुनाव संबंधी खर्च का लेखा-जोखा रखने वाली एडीआर संस्था की रिपोर्ट के अनुसार है.

हिमाचल के सबसे अमीर विधायकों में (Richest MLA of Himachal) टॉप पर चौपाल के बलवीर सिंह वर्मा हैं. उनके पास सबसे अधिक 90.73 करोड़ की चल एवं अचल संपति है, फिर शिमला ग्रामीण के विधायक व पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह का नाम आता है. उनके पास 84.32 करोड़, मंडी सदर के विधायक अनिल शर्मा के पास 40.25 करोड़, अर्की से चुने गए वीरभद्र सिंह के पास 30.52 करोड़ रुपए की संपत्ति दर्ज थी. वे अब दिवंगत हैं और अर्की से संजय अवस्थी विधायक हैं. वहीं, प्रेम कुमार धूमल को पराजित करने वाले राजेंद्र सिंह राणा के पास 26 करोड़ रुपए से अधिक की चल व अचल संपत्ति है. इस तरह 76 फीसदी विधायक करोड़पति हैं. 52 विधायक करोड़ों में खेल रहे हैं बाकी 11 विधायक पचास लाख रुपए से अधिक की संपत्ति के मालिक हैं. कुल 5 विधायकों की संपत्ति पचास लाख रुपए से कम है.

हिसाब लगाया जाए तो सीएम की सैलरी ढाई लाख रुपए है. मंत्रियों की व विधायकों की सैलरी मिलाकर सरकार के खजाने पर सालाना 150 करोड़ रुपए का खर्च है. इसमें पूर्व विधायकों की पेंशन को भी शामिल किया जाए तो आंकड़ा दो सौ करोड़ रुपए सालाना हो जाता है. मुफ्त यात्रा भत्ता भी इसमें शामिल है. जयराम सरकार के कार्यकाल में केवल माकपा विधायक राकेश सिंघा ने निशुल्क यात्रा भत्ते में बढ़ोतरी का विरोध किया था. यही नहीं, उन्होंने ऐलान किया था कि वे निशुल्क यात्रा भत्ता सुविधा नहीं लेंगे.

वहीं, जिस समय वीरभद्र सरकार ने माननीयों का वेतन बढ़ाया था तब कई सामाजिक संगठनों ने इसका विरोध किया था. वहीं, माकपा नेता व कसुम्पटी से चुनाव लड़ चुके डॉ. केएस तंवर ने वीरभद्र सरकार द्वारा 2016 में वेतन बढ़ाए जाने का विरोध किया था. कुलदीप तंवर ने कहा था कि जब त्रिपुरा में विधायकों को बहुत कम वेतन मिलता है तो हिमाचल में आर्थिक संकट होने के बाद वेतन क्यों बढ़ाया गया. डॉ. तंवर ने तब प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि राज्य के 28 हजार 723 जन प्रतिनिधियों के मानदेय में बढ़ोतरी से सरकार के खजाने पर 7.75 करोड़ सालाना का बोझ पड़ा, लेकिन 2016 में अकेले 68 माननीयों के वेतन बढ़ोतरी से 6 करोड़ 36 लाख 48 हजार का बोझ पड़ा. यदि पूर्व विधायकों का पेंशन भत्ता आदि भी जोड़ा जाए तो सालाना बढ़ोतरी के कारण ही 15 करोड़ का बोझ पड़ेगा.

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Last Updated : Jan 29, 2022, 5:56 PM IST
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