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सिरमौर में भैया दूज पर निभाई जाती है ये विशेष परंपरा - special tradition in sirmour

भाई और बहन के प्रेम और विश्वास का प्रतीक भाई दूज पर्व विभिन्न जगहों पर अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. बात अगर हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले की करें तो यहां भी इस दिन का विशेष महत्व है. भाई दूज के दिन यहां हर घर में पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं, वहीं इस दिन दामाद अपनी सास को उपहार देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.

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Published : Nov 6, 2021, 3:03 PM IST

नाहन: सिरमौर जनपद की सदियों पुरानी लोक संस्कृति व परंपराओं (Folk Culture and Traditions) को संजोए रखने के लिए मशहूर गिरिपार क्षेत्र में यूं तो हिंदुओं के कई त्योहार अलग-अलग अंदाज में मनाए जाते हैं. मगर यहां सप्ताह भर चलने वाली दिवाली व एक माह बाद आने वाली बूढ़ी दिवाली हमेशा चर्चा में रही है.

दरअसल, क्षेत्र में दीपावली से एक दिन पूर्व चौदश से उक्त त्योहार शुरू होता है. इसके बाद अवांस, पोड़ोई, दूज व तीज आदि नाम से सप्ताह भर यह त्योहार चलता है. जिला के संगड़ाह, नोहराधार इत्यादि क्षेत्रों में अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं. साथ ही पहाड़ी व्यंजन असकली, पटांडे, सिड्डू बनाए जाते हैं. साथ ही, नाटी, रासे और अन्य कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है.

वीडियो.

यहां भाई दूज (Bhai Dooj) को भी विशेष माना जाता है और अनेक प्रकार के पारम्परिक व्यंजन (traditional dishes) बनाये जाते हैं. बहनें अपने भाईयों की लम्बी उम्र की कामना करती हैं. बहनें भाई का टिका करने के साथ पहाड़ी संस्कृति का भी वहन करती हैं. भैया दूज पर दामाद अपनी सास को उपहार देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. आज भी यहां यह परंपरा कायम है, जिसे भेटणा कहा जाता है.

स्थानीय महिलाओं ने बताया कि आज भी पहाड़ी क्षेत्रों में प्राचीन परंपरा (ancient tradition) को निभाया जा रहा है और सात दिनों के दिवाली उत्सव पर पहाड़ी व्यंजन बनाना, नृत्य और संगीत का मजा लिया जाता है. भाई दूज पर विशेष रूप से धी, धीणे सभी अपने घरों पर पहुंचते हैं और भेंट दी जाती है.

भाई दूज पर विशेष पकवान बनाये जाते हैं और दामाद अपने सास- ससुर को भेंटने आते हैं. उल्लेखनीय है कि सिरमौर के दूर दराज इलाके आज भी अपनी प्राचीन परम्पराओं को संजोए हुए हैं और खास तौर पर दिवाली उत्सव पर पहाड़ी नृत्य, पहाड़ी पकवान यहां की विशेषता हैं.

ये भी पढ़ें : बंजार में पर्यटक की दादागिरी, टैक्सी चालक को कट्टा दिखाकर धमकाया

नाहन: सिरमौर जनपद की सदियों पुरानी लोक संस्कृति व परंपराओं (Folk Culture and Traditions) को संजोए रखने के लिए मशहूर गिरिपार क्षेत्र में यूं तो हिंदुओं के कई त्योहार अलग-अलग अंदाज में मनाए जाते हैं. मगर यहां सप्ताह भर चलने वाली दिवाली व एक माह बाद आने वाली बूढ़ी दिवाली हमेशा चर्चा में रही है.

दरअसल, क्षेत्र में दीपावली से एक दिन पूर्व चौदश से उक्त त्योहार शुरू होता है. इसके बाद अवांस, पोड़ोई, दूज व तीज आदि नाम से सप्ताह भर यह त्योहार चलता है. जिला के संगड़ाह, नोहराधार इत्यादि क्षेत्रों में अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं. साथ ही पहाड़ी व्यंजन असकली, पटांडे, सिड्डू बनाए जाते हैं. साथ ही, नाटी, रासे और अन्य कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है.

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यहां भाई दूज (Bhai Dooj) को भी विशेष माना जाता है और अनेक प्रकार के पारम्परिक व्यंजन (traditional dishes) बनाये जाते हैं. बहनें अपने भाईयों की लम्बी उम्र की कामना करती हैं. बहनें भाई का टिका करने के साथ पहाड़ी संस्कृति का भी वहन करती हैं. भैया दूज पर दामाद अपनी सास को उपहार देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. आज भी यहां यह परंपरा कायम है, जिसे भेटणा कहा जाता है.

स्थानीय महिलाओं ने बताया कि आज भी पहाड़ी क्षेत्रों में प्राचीन परंपरा (ancient tradition) को निभाया जा रहा है और सात दिनों के दिवाली उत्सव पर पहाड़ी व्यंजन बनाना, नृत्य और संगीत का मजा लिया जाता है. भाई दूज पर विशेष रूप से धी, धीणे सभी अपने घरों पर पहुंचते हैं और भेंट दी जाती है.

भाई दूज पर विशेष पकवान बनाये जाते हैं और दामाद अपने सास- ससुर को भेंटने आते हैं. उल्लेखनीय है कि सिरमौर के दूर दराज इलाके आज भी अपनी प्राचीन परम्पराओं को संजोए हुए हैं और खास तौर पर दिवाली उत्सव पर पहाड़ी नृत्य, पहाड़ी पकवान यहां की विशेषता हैं.

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