नाहनः साल 1621 में बसे नाहन में कई ऐसी खूबियां हैं, जोकि इसे ऐतिहासिक शहर बनाती हैं. शहर में जहां बहुत सी ऐतिहासिक इमारतें हैं. वहीं, इस शहर की एक खास बात यह भी रही है कि कभी इसे 'सिटी ऑफ पांड्स' यानी 'तालाबों का शहर' भी कहा जाता था, लेकिन अब इनकी अनदेखी धीरे-धीरे इसका अस्तित्व मिटा रही है.
ये तालाब ऐतिहासिक होने के साथ-साथ बरसों पुराने तालाब है. जरा कल्पना कीजिए, उस जमाने में इन तालाबों की खूबसूरती क्या रही होगी, जब हमारे पास संचार माध्यम न के बराबर थे और मनोरंजन के साधन सीमित है. तब जल स्रोतों के रूप में इन तालाबों की उपलब्धता निःसंदेह शहर के लिए वरदान से कम नहीं थी.
उस समय शहर के पांच तालाब ऐतिहासिक रानीताल तालाब, पक्का तालाब, कच्चा तालाब, कालीस्थान तालाब और रामकुंडी तालाब शहर की खूबसूरती को चार चांद लगा देते थे. नाहन के ये पांच तालाब निःसंदेह रियासतकाल की शासन व्यवस्था और नगरीय सुविधाओं का अनूठा उदाहरण रहे, लेकिन वर्तमान में इनकी स्थिति दयनीय होती जा रही है.
वर्तमान में तालाबों की हालत दयनीय
यह अलग बात है कि वर्तमान में नाहन के तालाबों की हालत ज्यादा अच्छी नहीं है. तालाबों की साफ-सफाई का कोई विशेष ध्यान नहीं रखा गया है. इनकी गरिमा और इतिहास के अनुरूप इनके रख रखाव पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है. कच्चा तालाब तो पहले ही नाहन के मार्डन बस अड्डे में तबदील हो चुका है.
इसी प्रकार एक समय में ऐतिहासिक पक्का तालाब में भी एक बड़े शॉपिंग कंपलैक्स बनाने पर विचार चल रहा था. पक्का तालाब में लगाया गया फव्वारा भी शोपीस बना हुआ है. वहीं, रानीताल तालाब के सौंदर्यीकरण पर जरूर थोड़ा ध्यान दिया गया है, लेकिन इसकी हालत भी ज्यादा बेहतर नहीं है. तालाब में काई ही काई दिखाई देती है. लिहाजा बोटिंग करने में भी दिक्कत आती है.
रामकुंडी व कालीस्थान तालाबों पर खतरा अधिक
शहर के दो अलग-अलग हिस्सों में रामकुंडी व कालीस्थान तालाब स्थित है, लेकिन वर्तमान में इन दोनों ही तालाबों की हालत बेहद खस्ता है. वर्तमान में दोनों की तालाब अपने अस्तित्व की जंग लड़ रहे हैं. कालीस्थान तालाब 200 साल पुराना है, लेकिन हालत ऐसे हो गए हैं कि इसमें भी गंदगी का आलम बना हुआ है.
लोगों द्वारा पूजा-अर्चना की सामग्री इसमें लगातार फैंकी जा रही है. वर्तमान में दोनों की हालत देख लगता है कि कहीं ये भी इतिहास के पन्नों में न सिमट जाएं.
तालाबों के पानी से बनी प्राचीन बावड़ियों भी अनदेखी का शिकार
तलाबों के साथ-साथ नाहन शहर यहां की प्राचीन बावड़ियों के लिए भी जाना जाता था. शहर व इसके आसपास जहां एक दर्जन के करीब बावड़ियों मौजूद थीं, वहीं अनगित की संख्या में छोटी बावड़ियां भी मौजूद थी, लेकिन स्थानीय लोगों के साथ-साथ नगर परिषद की उदासीनता के चलते अधिकतर बावड़ियों भी इतिहास के पन्नों में गुम हो गई हैं.
जबकि कुछेक बावड़ियां जो वर्तमान में मौजूद हैं, उनका रखरखाव भी सरकारी स्तर पर शून्य है. हालांकि पर्यावरण समिति की देखरेख में स्कूली बच्चों द्वारा समय-समय पर इनकी साफ सफाई जरूर की जाती रही, लेकिन वर्तमान में शेष बची बावड़ियां भी अपने अस्तित्व की जंग लड़ रही है.
कभी कहा जाता था तालाबों का शहर
शाही परिवार के सदस्य एवं पूर्व विधायक कंवर अजय बहादुर सिंह बताते हैं कि नाहन शहर कभी तालाबों के शहर के नाम से भी जाना जाता था. शहर में स्थित पांच तालाब प्राकृतिक न होकर खोदकर बनाए गए थे. तालाबों के अंदर केवल बरसात का पानी होता था.
इन्हीं तालाबों के पानी से शहर के विभिन्न हिस्सों में एक दर्जन के करीब बड़ी-बड़ी बावड़ियां बनी थी. जबकि अनगित की संख्या में छोटी-छोटी बावड़ियां मौजूद थी. कुदरती तौर पर तालाबों का पानी जहां से भी फिल्टर होकर निकलता था, वहां पर बावड़ियां बनाई गई थी. काफी अरसे तक तो यह सब बहुत ठीक रहा.
लोग इनके उपर निर्भर भी थे, लेकिन जब पानी की स्कीम आ गई तो लोगों के साथ-साथ प्रशासन ने भी इनकी तरफ ध्यान देना बंद कर दिया. रियासतकाल तक हर साल इनकी मरम्मत होती थी. अजय बहादुर सिंह ने कहा कि वर्तमान में तालाबों की जितना रखरखाव होना चाहिए था, वह नहीं हुआ है. उन्होंने सरकार से मांग करते हुए कहा कि तालाबों के साथ-साथ बावड़ियों का संरक्षण बेहद जरूरी है, क्योंकि कभी न कभी ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है, जब पानी की आवश्यकता पड़ जाए.
पर्यावरण समिति ने जताई चिंता
उधर, इन तालाबों सहित बावड़ियों की दयनीय स्थिति पर पर्यावरण समिति के अध्यक्ष डॉ. सुरेश जोशी ने कहा कि नगर परिषद के सुस्त रवैये के चलते इन तालाबों की यह स्थिति हो गई है. नाहन में तालाबों के सरंक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, ताकि भूमि में जलस्तर का संतुलन बना रहे और पर्यावरण भी सुरक्षित रह सके. साथ ही बावड़ियां भी अनदेखी का शिकार है. काफी बावड़ियां खत्म हो चुकी है, लेकिन वर्तमान में जो मौजूद है, उनका संरक्षण बेहद जरूरी है.
वहीं, नाहन के वरिष्ठ पत्रकार एवं स्थानीय निवासी शैलेश सैनी ने कहा कि वर्तमान में तालाबों के साथ-साथ बावड़ियों की हालत बेहद खराब है. इन प्राकृतिक जलस्त्रोतों में गंदगी का आलम है. प्राचीन बावड़ियों का पानी अब पीने योग्य नहीं रहा है. सरकार को इन प्राकृतिक जल स्त्रोतों के संरक्षण की दिशा में उचित कदम उठाने की आवश्यकता है.
नगर परिषद का दावा, समय-समय पर तालाबों की सफाई
नगर परिषद नाहन के कार्यकारी अधिकारी अजमेर सिंह ठाकुर ने कहा कि समय-समय पर तालाबों की सफाई की जाती है. कालीस्थान तालाब के किनारे भी ब्यूटीफिकेशन का कार्य किया गया है. तालाबों में लोग पूजा अर्चना की सामग्री को न डाले. साथ ही अन्य गंदगी को भी न फैलाएं. शहर के तालाबों के किनारे इस संबंध में बाकायदा सूचना बोर्ड भी लगाए गए है. कार्यकारी अधिकारी ने बताया कि तालाबों का एडीबी प्रोजेक्ट के तहत सौंदर्यीकरण किया जाना है, लेकिन कोरोना की वजह से यह लंबित हो गया है.
जैसे ही मंजूरी मिलती है, इसका दिशा में कार्य किया जाएगा. जहां तक बावड़ियों की बात है, तो उनकी भी समय-समय पर सफाई करवाई जाती है. उन्होंने लोगों से तालाबों सहित बावड़ियों को साफ रखने की अपील की है.
कुल मिलाकर दावे कुछ भी हो, लेकिन तस्वीरें झूठ नहीं बोलती हैं. तालाब और बावड़ियों की ये हालत बताती है कि इनकी तस्वीर बदलने के भले लाख वादे जुबां पर और लाख दावे फाइलों में दफन हों, लेकिन हकीकत में इनकी तकदीर मानों सिर्फ ये गंदगी बन गई है और इस बदहाली का जिम्मेदार सिर्फ प्रशासन या सरकारें नहीं है वो लोग भी हैं जो इन ऐतिहासिक धरोहरों को कूड़े के ढेर में तब्दील करने पर आमादा हैं.
ऐसे में शहरों की शान रहे इन पानी के स्रोतों को संजोकर रखने में सबको अपनी भागीदारी निभानी होगी, ताकि इनका दीदार हमारी आने वाली पीढि़यां भी कर सकें.पानी की किल्लत तो ये सालों से दूर कर ही रहे थे.
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