नाहन: केंद्र की मोदी सरकार द्वारा गिरिपार के हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा देने के (tribal status to Hatti community) फैसले के बाद प्रदेश की जयराम सरकार की मुश्किलें भी बढ़ती जा रही है. इस फैसले के विरोध में जहां दलित समुदाय के विभिन्न संगठनों से जुड़े हजारों लोग पहले से ही सरकार के खिलाफ लामबंद हैं तो वहीं, अब गुर्जर समुदाय के हजारों लोगों ने भी विधानसभा चुनाव से पहले जयराम सरकार की मुश्किलों को बढ़ा दिया है. अब गिरिपार इलाके के हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा देने, आरक्षण कोटा न बढ़ाने और अधिकारों से छेड़छाड़ के विरोध में गुर्जर कल्याण परिषद जिला सिरमौर के बैनर तले समुदाय के लोग जिला मुख्यालय नाहन में भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं.
डीसी ऑफिस परिसर में सरकार को चेताने और अपनी मांगों को लेकर एक दिवसीय हड़ताल पर बैठे गुर्जर समुदाय के लोगों ने दो टूक शब्दों में सरकार को चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने उनकी मांगों को नहीं माना तो वह किसी भी हद तक आंदोलन करने से पीछे नहीं हटेंगे. मीडिया से बात करते हुए गुर्जर समाज कल्याण परिषद के (Gurjar Samaj Kalyan Parishad) अध्यक्ष हंसराज भाटिया ने कहा कि केंद्र सरकार ने हाटी को जनजातीय दर्जा देकर गुर्जर समाज के अधिकारों का हनन किया है.
हंसराज भाटिया ने कहा कि प्रदेश सरकार भली भांति जानती है कि गुर्जर एक जाति समुदाय है, जिसे एसटी का दर्जा प्राप्त है और 7.5 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा है. इस आरक्षण में गिरिपार की अन्य जातियों को (tribal status to Hatti community) भी शामिल कर दिया गया है. जबकि हाटी कोई विशेष जाति नहीं है. उन्होंने कहा कि सरकार ने गुर्जरों के अधिकारों व एसटी आरक्षण कोटे से छेड़छाड़ की है. उन्होंने सरकार से मांग की कि इस मुद्दे पर पुनर्विचार किया जाए.
हंसराज भाटिया ने कहा कि गुर्जर समाज अपने अधिकारों (Gujjar community in Sirmaur) के लिए जिला व प्रदेश स्तर पर संघर्ष करेगा. समुदाय ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि हाटी को एसटी में शामिल करने की अपेक्षा अन्य राज्यों की तर्ज पर उन्हें विशेष पिछड़ा वर्ग (एसबीसी) का दर्जा व आरक्षण दिया जाए. अनुसूचित जनजाति (एसटी) में हिमाचल की जो जनजातियां पहले से ही सम्मिलित हैं (जिन्हें 7.5 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा है) उन्हें यथावत रखा जाए. यदि सरकार चाहती है कि हाटी को अनुसूचित जनजाति में शामिल किया जाना चाहिए, तो एसटी कोटे को जनसंख्या बढ़ने से 7.5 प्रतिशत से दोगुना किया जाए.
उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर सरकार ने उनकी मांगों व अधिकारों को सुरक्षित नहीं रखा तो किसी भी हद तक आंदोलन करने के लिए समुदाय पूरी तरह से तैयार है. कुल मिलाकर चुनावी साल में हाटी को जनजातिय दर्जा देने के फैसले का लगातार विरोध किया जा रहा है. ऐसे में अब देखना यह होगा कि सरकार विरोध की इस चिंगारी से कैसे पार पाती है.
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