मंडी: मानसून सीजन के दौरान हर साल मंडी जिला में प्राकृतिक आपदा कहर बनकर टूटती है. जिला कोटरोपी में हुई लैंड स्लाइड की भयानक घटना का मंजर भी देख चुका है. भयानक बारिश के कहर से हर साल जिले को करोड़ों रुपये का नुकसान भी होता है. हर साल ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए सीजन से पहले ही योजनाएं भी बनती हैं. ताकि किसी भी घटना के दौरान बचाव व राहत कार्य तुरंत प्रभाव से किया जा सके. इस बार भी मंडी जिला मानसून सीजन से निपटने के लिए चौकन्ना हो गया है.
प्रशासन का दावा है कि हर प्रकार की आपदा से निपटने के लिए पहले से ही सभी विभाग तैयार हैं. हालांकि मानसून सीजन में आपदा के दौरान ही पता चल पाएगा कि प्रशासन की योजनाएं बचाव व राहत कार्य में कितनी कारगर साबित होती हैं.
2018 में हुआ था 210 करोड़ का नुकसान
अगर बात की जाए साल 2018 की तो मंडी जिला में कुदरत ने खूब कहर बरपाया था. भारी बारिश के आगे प्रशासन भी बेबस हो गया और स्कूलों में छुट्टियां तक घोषित करनी पड़ी ताकि भारी बारिश से कोई अनहोनी न हो. लेकिन पांच लोगों की जाने चली गईं. साल 2018 के आंकड़ों पर गौर करें तो 364 मकानों को बारिश से क्षति पहुंची थी. जबकि विभिन्न विभागों को 210 करोड़ नुकसान हुआ था.
ट्रैफिक डायवर्ट करना एकमात्र उपाय
ब्यास नदी में आई बाढ़ से एनएच तक बाधित हो गया था और यातायात मंडी कटौला होकर कुल्लू भेजना पड़ा था. हालांकि इस साल इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए प्रशासन के पास कोई ठोस उपाय नहीं है. ब्यास में बाढ़ आने की सूरत पर थलौट के समीप एनएच पर नदी का पानी आने पर ट्रैफिक डायवर्ट करना ही एकमात्र उपाय है. प्रशासन का दावा है कि संवेदशील जगहों में एनएच किनारे फैंसिंग की गई है ताकि पर्यटक नदी किनारे न उतरें. इसके साथ ही सूचना बोर्ड भी प्रदर्शित किए गए हैं. ताकि थलौट हादसे की तरह कोई दूसरा हादसा न सके.
चेतावनी बोर्डों को अनदेखा करते हैं पर्यटक
बता दें कि बादल फटने व डैम से पानी छोड़ने पर ब्यास नदी में एकाएक ही जलस्तर बढ़ जाता है. इस सूरत में नदी किनारे मस्ती करने उतरे पर्यटकों को यह जानलेवा साबित हो सकता है. इसे ध्यान में रखते हुए ही सूचना बोर्ड प्रदर्शित किए गए हैं. हालांकि अधिकतर मामलों में पर्यटक इन चेतावनी बोर्डों को अनेदखा करते हुए पाए गए हैं. ऐसी सूरत में प्रशासन की कोशिशें भी कामयाब नहीं हो पाती हैं. पर्यटक व स्थानीय लोग खुद अपनी जान को जोखिम में डालने से पीछे नहीं हटते हैं. कई स्थानों में नालों में बाढ़ आने से भी बच्चों को स्कूल जाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. नालों को क्रॉस करवाने के लिए खुद अभिभावकों को मोर्चा संभालना पड़ता है. ऐसी स्थिति से निपटने के लिए प्रशासन के पास अभी तक कोई प्लान नहीं है.
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संवेदनशील इलाकों में 24 घंटे तैनात रहेगी मशीनरी
मानसून सीजन के दौरान पहाड़ी इलाकों में सबसे अधिक नुकसान सड़कों को पहुंचता हैं. पहाड़ की लाइफ लाइन मानी जाने वाली सड़कें अवरूद्ध होने से सब कुछ अलग-थलग पड़ जाता है. प्रशासन की मानें तो बरसात में सबसे अधिक समस्या भूस्खलन से एनएच व सड़क मार्ग बंद होना रहता है. सड़कें अवरूद्ध होने की सूरत पर इन्हें तत्काल बहाल करने का एक्शन प्लान प्रशासन ने बनाया है. इसके लिए संवेदनशील क्षेत्र में 24 घंटें मशीनरी तैनात रहेगी. ताकि सड़क पर मलबा गिरने की सूरत पर तुरंत बहाली कार्य शुरू किया जा सके. औट, सुंदरनगर और पधर में तीन विशेष बचाव दस्ते तैनात रहेंगे. ये दस्ते आपदा की स्थिति में इन क्षेत्रों में तुरंत बचाव-राहत कार्यों में लगेंगे. इसके अलावा अन्य दिनों में आपदा प्रबंधन को लेकर लोगों को जागरूक व शिक्षित करने का काम करेंगे.
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उपायुक्त कार्यालय में बनाया गया नियंत्रण कक्ष
उपायुक्त ऋग्वेद ठाकुर ने कहा कि मानसून की आमद के मद्देनजर सभी संबंधित विभागों को आपदा प्रबंधन को लेकर अपनी पूरी तैयारी रखने और पहले से बचाव संबंधी सभी सुरक्षा उपाय करने के निर्देश दिए हैं. मानसून की गतिविधियों की नियमित जानकारी सहित अन्य किसी आपदा में जान-माल की सुरक्षा के उचित प्रबंधन के लिए उपायुक्त कार्यालय में स्थायी नियंत्रण कक्ष बनाया गया है. चौबीसों घंटे क्रियाशील रहने वाले इस नियंत्रण कक्ष का टोल फ्री फोन नम्बर 1077 है. उन्होंने लोगों से अपील की है कि किसी भी आपात स्थिति में तुरंत 1077 पर फोन कर सूचित करें. साथ ही ये भी कहा है कि इसे अलावा जिला मुख्यालय पर स्थापित जिला आपात नियंत्रण कक्ष के दूरभाष नंबर 01905-226201, 226202, 226203 और 226204 पर फोन कर भी आपदा को लेकर फोन कर सकते हैं.