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मंडी रियासत के कुलदेवता पराशर ऋषि का रथ शिवरात्रि महोत्सव में नहीं करता शिरकत, जानिए इसका इतिहास

देव पराशर ऋषि को मंडी रियासत के देवताओं में श्रेष्ठ और राज परिवार का कुलदेवता माना जाता है. इस वजह से उनका रथ छोटी काशी में होने वाले महाशिवरात्रि महोत्सव में नहीं करता शिरकत.

मंडी रियासत के कुलदेवता पराशर ऋषि
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Published : Mar 5, 2019, 2:14 PM IST

मंडी: छोटी काशी के नाम से मशहूर मंडी के रियासत कालीन देव समागम अंतरराष्ट्रीय महाशिवरात्रि महोत्सव का इतिहास अपने आप में अनूठा है. देव पराशर ऋषि को मंडी रियासत के देवताओं में श्रेष्ठ और राज परिवार का कुलदेवता माना गया है. लेकिन उनका रथ (खारा) सदियों बाद आज भी शिवरात्रि महोत्सव में शिरकत नहीं करता है. देव पराशर ऋषि की छड़ी और सूरज पंख ही शिवरात्रि में शिरकत करते हैं.

मंडी रियासत के कुलदेवता पराशर ऋषि

देव और मानस के इस मिलन का अनूठा नजारा सदियों से चला आ रहा है. यहां हर देवता की अपनी अलग पहचान और कहानी है. दरअसल देव पराशर ऋषि का रथ (खारा) अपने मूल स्थान से सिर्फ दो अवसरों पर ही बाहर निकलता है. देव पराशर ऋषि का रथ नहीं बल्कि खारा है.

kuldevta prashar rishi
मंडी रियासत के कुलदेवता पराशर ऋषि

देवता के रथ (खारा) को मुख्य पुजारी और उनके वंशज ही उठा सकते हैं. इसे उठाने के बड़े कड़े नियम हैं. यह किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होता है. पुजारी को भूखे पेट और नंगे पांव देवता के रथ (खारा) को उठाना पड़ता है. यह सिर्फ देव पराशर ऋषि के काशी मेले और सरनाहुली मेले के दौरान देव परंपरा के अनुसार होता है.

इन दोनों उत्सवों के दौरान ही देव पराशर ऋषि का रथ (खारा) मूल स्थान से बाहर निकाला जाता है. हालांकि पूर्व में रियासतों के दौर में राजाओं ने देव पराशर ऋषि के रथ (खारा) को महाशिवरात्रि उत्सव में लाने के प्रयास किए लेकिन देव परंपरा के चलते यह प्रयास सिरे नहीं चढ़ सके.

वहीं देव पराशर ऋषि के मुख्य पुजारी अमर सिंह ने बताया कि देव पराशर ऋषि का रथ नहीं बल्कि खारा है. पुजारी का कहना है कि देवता के खारा को मंदिर से बाहर लाने के प्रक्रिया बेहद ही जटिल है. यह सिर्फ दो उत्सव के दौरान ही संभव होता है. देव परंपरा के अनुसार मंडी शिवरात्रि में देवता का खारा शिरकत नहीं करता है.

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मंडी: छोटी काशी के नाम से मशहूर मंडी के रियासत कालीन देव समागम अंतरराष्ट्रीय महाशिवरात्रि महोत्सव का इतिहास अपने आप में अनूठा है. देव पराशर ऋषि को मंडी रियासत के देवताओं में श्रेष्ठ और राज परिवार का कुलदेवता माना गया है. लेकिन उनका रथ (खारा) सदियों बाद आज भी शिवरात्रि महोत्सव में शिरकत नहीं करता है. देव पराशर ऋषि की छड़ी और सूरज पंख ही शिवरात्रि में शिरकत करते हैं.

मंडी रियासत के कुलदेवता पराशर ऋषि

देव और मानस के इस मिलन का अनूठा नजारा सदियों से चला आ रहा है. यहां हर देवता की अपनी अलग पहचान और कहानी है. दरअसल देव पराशर ऋषि का रथ (खारा) अपने मूल स्थान से सिर्फ दो अवसरों पर ही बाहर निकलता है. देव पराशर ऋषि का रथ नहीं बल्कि खारा है.

kuldevta prashar rishi
मंडी रियासत के कुलदेवता पराशर ऋषि

देवता के रथ (खारा) को मुख्य पुजारी और उनके वंशज ही उठा सकते हैं. इसे उठाने के बड़े कड़े नियम हैं. यह किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होता है. पुजारी को भूखे पेट और नंगे पांव देवता के रथ (खारा) को उठाना पड़ता है. यह सिर्फ देव पराशर ऋषि के काशी मेले और सरनाहुली मेले के दौरान देव परंपरा के अनुसार होता है.

इन दोनों उत्सवों के दौरान ही देव पराशर ऋषि का रथ (खारा) मूल स्थान से बाहर निकाला जाता है. हालांकि पूर्व में रियासतों के दौर में राजाओं ने देव पराशर ऋषि के रथ (खारा) को महाशिवरात्रि उत्सव में लाने के प्रयास किए लेकिन देव परंपरा के चलते यह प्रयास सिरे नहीं चढ़ सके.

वहीं देव पराशर ऋषि के मुख्य पुजारी अमर सिंह ने बताया कि देव पराशर ऋषि का रथ नहीं बल्कि खारा है. पुजारी का कहना है कि देवता के खारा को मंदिर से बाहर लाने के प्रक्रिया बेहद ही जटिल है. यह सिर्फ दो उत्सव के दौरान ही संभव होता है. देव परंपरा के अनुसार मंडी शिवरात्रि में देवता का खारा शिरकत नहीं करता है.

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Intro:तो इसलिए मंडी रियासत के कुलदेवता देव पराशर ऋषि रथ (खारा) शिवरात्रि महोत्सव में नहीं करता है शिरकत, यह है कारण
मंडी.
छोटीकाशी मंडी के रियासत कालीन देव समागम अंतरराष्ट्रीय महाशिवरात्रि महोत्सव का इतिहास अपने आप में अनूठा है. देव और मानस के इस मिलन का अनूठा नजारा सदियों से चला आ रहा है. यहां हर देवता की अपनी अलग पहचान और कहानी है. देव पराशर ऋषि को मंडी रियासत के देवताओं में श्रेष्ठ और राज परिवार का कुलदेवता भी माना गया है. लेकिन उनका रथ (खारा) सदियों बाद भी आज भी शिवरात्रि महोत्सव में शिरकत नहीं करता है. देव पराशर ऋषि की छड़ी और सूरज पंख ही शिवरात्रि में शिरकत करते हैं।


Body:दरअसल देव पराशर ऋषिरथ (खारा) अपने मूल स्थान से सिर्फ दो अवसरों पर ही बाहर निकलता है. देव पराशर ऋषि का रथ नहीं बल्कि खारा है। देवता के रथ (खारा) मुख्य पुजारी और उनके वंशज ही उठा सकते हैं. इसे उठाने के बड़े कड़े नियम हैं. यह किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होता है. पुजारी को भूखे पेट और नंगे पांव देवता के रथ (खारा) उठाना पड़ता है. यह सिर्फ देव पराशर ऋषि के काशी मेले और सरनाहुली मेले के दौरान देव परंपरा के अनुसार होता है। इन दोनों उत्सवों के दौरान ही देव पराशर ऋषि का रथ (खारा) मूल स्थान से बाहर निकाला जाता है. हालांकि पूर्व में रियासतों के दौर में राजाओं ने देव पराशर ऋषि के रथ (खारा) को महाशिवरात्रि उत्सव में लाने के प्रयास किए लेकिन देव परंपरा के चलते यह प्रयास सिरे नहीं चढ़ सके.


Conclusion:देव पराशर ऋषि के मुख्य पुजारी अमर सिंह ने बताया कि देव पराशर ऋषि का रथ नहीं बल्कि खारा है। पुजारी का कहना है कि देवता के खारा को मंदिर से बाहर लाने के प्रक्रिया बेहद ही जटिल है। यह सिर्फ दो उत्सव के दौरान ही संभव होता है। देव परंपरा के अनुसार मंडी शिवरात्रि में देवता का खारा शिरकत नहीं करता है।
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