कुल्लू: कोरोना महामारी के बीच इस बार जिले में व्यापारियों ने सेब के बगीचे ठेके पर खरीदने का जोखिम नहीं उठाया है. ऐसे में बागवानों द्वारा खुद सेब का तुड़ान करके उत्पाद को मंडी तक पहुंचाने का काम किया जा रहा है.
बता दें कि मजदूरों की कमी और कोरोना को देखते हुए व्यापारियों ने बगीचे ठेके पर खरीदने का जोखिम नहीं उठाया है. हालांकि बागवान व्यापारियों के इंतजार में बैठे हुए हैं. कोरोना संकट काल में पैदा हुई अनिश्चितता के बीच कई बागवान अपने बगीचों को ठेके पर देने के पक्ष में हैं, लेकिन व्यापारी बगीचे लेने से मना कर रहे हैं.
इसके पीछे वजह घाटी में सेब के तुड़ान, ढुलान के लिए मजदूरों का न होना बताया जा रहा है. सेब की पैकिंग, तुड़ान, ढुलान के लिए मजदूरों की आवश्यकता रहती है और उन्हें 500 रुपये दिहाड़ी के हिसाब से पैसे भी देने पड़ते हैं.
बागवान रमेश ठाकुर ने बताया कि इस बार एक भी व्यापारी ठेके पर बगीचे लेने नहीं आया है, जिससे उन्हें मजबूरी में सेब खुद ही बेचने पड़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि बगीचा ठेके पर देने से बागवानों को चौखी कमाई होती थी, लेकिन सेब सीजन में मजदूरों की किल्लत से जूझ रहे जिला के बागवान भी अधिक खर्चे में नहीं पड़ रहे हैं.
बागवान प्यारे लाल ने बताया कि सेब तोड़ने के बाद उसे खुली पैकिंग में मंडी ले जा रहे हैं और आजादपुर मंडी के लिए इस बार 50 फीसदी कम खेप गई है. उन्होंने कहा कि सब्जी मंडियों को छोड़कर जगह-जगह सेब भरने के लिए लगने वाले टेंट गायब हैं.
कुल्लू सदर फल एवं सब्जी उत्पादक संगठन के महासचिव सुनील राणा ने कहा कि इस बार कोरोना और मजदूरों की कमी के चलते व्यापारियों ने सेब बगीचे ठेके पर लेने का जोखिम नहीं उठाया है. उन्होंने कहा कि बागवानों को सेब के सब्जी मंडियों में उचित दाम मिले, इसके लिए संगठन प्रयासरत है.
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