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हर 12 साल बाद भोलेनाथ पर बिजली गिराते हैं इंद्र...फिर मक्खन से जुड़ता है शिवलिंग - कुल्लू की खराहल घाटी

नदियों, जंगल-झरनों और बर्फ से ढकी पहाड़ियों वाला प्रदेश हिमाचल देश दुनिया में जितना अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है, उतना ही मंदिर और शिवालयों के लिए भी मशहूर है. पूरे भारत में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग हैं. हिमाचल की पर्यटन नगरी कुल्लू में एक शिवलिंग मौजूद है. जिसे बिजली महादेव (BIJLI MAHADEV TEMPLE KULLU) के नाम से जाना जाता है. यहां हर 12 साल बाद भगवान इंद्र भोलेनाथ पर बिजली गिराते हैं.

BIJLI MAHADEV TEMPLE KULLU
बिजली महादेव का मंदिर
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Published : Feb 28, 2022, 7:13 PM IST

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश की पर्यटन नगरी कुल्लू के पहाड़ों पर आज भी एक ऐसी पहाड़ी है, जहां भगवान शिव की आज्ञा का देवराज इंद्र पालन कर रहे हैं. पहाड़ी पर बने मंदिर में आज भी आसमानी बिजली गिरती है, लेकिन मंदिर को कोई नुकसान नहीं होता. कुल्लू शहर से बिजली महादेव की पहाड़ी लगभग 7 किलोमीटर दूर है. कुल्लू की खराहल घाटी के शीर्ष पर बसा बिजली महादेव का मंदिर (BIJLI MAHADEV TEMPLE KULLU) आज भी देश-विदेश से आने वाले लाखों श्रद्धलुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है.

मान्यता है कि पहाड़ी रूप का दैत्य दोबारा जनमानस को कष्ट न पहुंचा सके, इसके लिए पहाड़ी के ऊपर शिवलिंग स्थापित किया गया और देवराज इंद्र को आदेश दिया गया कि वह हर 12 साल बाद शिवलिंग पर बिजली गिराएं. माना जाता है कि आज भी उस आदेश का पालन हो रहा है और शिवलिंग पर बिजली का गिरना जारी है. दैत्य के वध के बाद बनी उस पहाड़ी को आज बिजली महादेव के नाम से जाना जाता है, जो आज देश-विदेश में शिवभक्तों के लिए आस्था का केंद्र बन गई है.

BIJLI MAHADEV TEMPLE KULLU
कुल्लू की हराहल घाटी

विशालकाय सांप का रूप है कुल्लू घाटी- कुल्लू शहर में ब्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊंचे पर्वत के ऊपर बिजली महादेव का प्राचीन मंदिर है. कुल्लू घाटी में ऐसी मान्यता है कि यह घाटी एक विशालकाय सांप का रूप है. सांप का वध भगवान शिव ने किया था. मन्दिर के भीतर स्थापित शिवलिंग पर हर 12 साल बाद भयंकर आसमानी बिजली गिरती है. बिजली गिरने से मंदिर का शिवलिंग खंडित हो जाता है. यहां के पुजारी खंडित शिवलिंग के टुकड़े एकत्रित कर मक्खन के साथ इसे जोड़ देते हैं, कुछ ही माह बाद शिवलिंग एक ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है.

कुलांत नामक दैत्य रोकना चाहता था ब्यास नदी का प्रवाह- कुल्लू घाटी के जानकारों के अनुसार बहुत पहले यहां कुलांत नामक दैत्य रहता था. दैत्य कुल्लू के पास की नागणधार से अजगर का रूप धारण कर मंडी की घोग्घरधार से होता हुआ लाहौल-स्पीति से मथाण गांव आ गया. कुंडली मार कर ब्यास नदी के प्रवाह को रोक कर इस जगह को पानी में डुबोना चाहता था. इसके पीछे उसका उद्देश्य यह था कि यहां रहने वाले सभी जीव-जंतु पानी में डूब कर मर जाएंगे. भगवान शिव कुलांत के इस विचार से चिंतित हो गए.

BIJLI MAHADEV TEMPLE KULLU
पहाड़ी पर मौजूद बिजली महादेव का मंदिर.

ऐसे पड़ा कुल्लू शहर का नाम- पौराणिक कथाओं के अनुसार बड़े जतन के बाद भगवान शिव ने उस राक्षस रूपी अजगर का वध किया था. कुलांत के मरते ही उसका शरीर एक विशाल पर्वत में बदल गया. उसका शरीर धरती के जितने हिस्से में फैला हुआ था वह पूरा का पूरा क्षेत्र पर्वत में बदल गया. कुल्लू घाटी का बिजली महादेव से रोहतांग दर्रा और मंडी के घोग्घरधार तक की घाटी कुलांत के शरीर से निर्मित मानी जाती है. कुलांत से ही कुलूत और इसके बाद कुल्लू नाम के पीछे यही किवदंती कही जाती है.

12 साल में एक बार गिरती है शिवलिंग पर बिजली- मान्यता के अनुसार कुलांत दैत्य को मारने के बाद शिव ने इंद्र से कहा कि वह 12 साल में एक बार इस जगह पर बिजली गिराया करें. हर 12वें साल में यहां आसमानी बिजली गिरती है. इस बिजली से शिवलिंग चकनाचूर हो जाता है. इसके बाद पुजारी शिवलिंग के टुकड़े इकट्ठा करके मक्खन से जोड़कर स्थापित कर लेता है. कुछ समय बाद पिंडी अपने पुराने स्वरूप में आ जाती है.

BIJLI MAHADEV TEMPLE KULLU
पवित्र शिवलिंग

इसलिए कहा जाता है बिजली महादेव- आकाशीय बिजली शिवलिंग पर गिरने के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव नहीं चाहते चाहते थे कि जब बिजली गिरे तो जन-धन को इससे नुकसान पहुंचे. भोलेनाथ लोगों को बचाने के लिए इस बिजली को अपने ऊपर गिरवाते हैं. इसी वजह से भगवान शिव को यहां बिजली महादेव कहा जाता है.

समुद्रतल से 2450 मीटर की ऊंचाई पर है स्थित- यह जगह समुद्रतल से 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. शीतकाल में यहां भारी बर्फबारी होती है. बिजली महादेव का अपना ही महात्म्य व इतिहास है, ऐसा लगता है कि बिजली महादेव के इर्द-गिर्द समूचा कुल्लू का इतिहास घूमता है और हर मौसम में दूर-दूर से लोग बिजली महादेव के दर्शन करने आते हैं.

BIJLI MAHADEV TEMPLE KULLU
बिजली महादेव का मंदिर.

ये भी पढ़ें: महाशिवरात्रि 2022: हिमाचल में इस जगह पर रावण ने बनाई थी स्वर्ग की दूसरी सीढ़ी

कैसे पहुंचे बिजली महादेव मंदिर- कुल्लू के धार्मिक पर्यटन स्थल बिजली महादेव के लिए दिल्ली से भुंतर तक हवाई सेवा भी उपलब्ध है. इसके अलावा सड़क मार्ग के माध्यम से भी कुल्लू तक पहुंचा जा सकता है. कुल्लू से बस या फिर निजी वाहन के माध्यम से खराहल घाटी के कराटे नामक गांव तक पहुंचा जा सकता है. उसके बाद पैदल रास्ते के माध्यम से 2 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ने के बाद बिजली महादेव मंदिर पहुंच सकते हैं.

ये भी पढ़ें: शिमला के माल रोड पर स्थित है 500 साल पुराना शिव मंदिर, शिवरात्रि पर शिव-विवाह का होगा आयोजन

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कुल्लू: हिमाचल प्रदेश की पर्यटन नगरी कुल्लू के पहाड़ों पर आज भी एक ऐसी पहाड़ी है, जहां भगवान शिव की आज्ञा का देवराज इंद्र पालन कर रहे हैं. पहाड़ी पर बने मंदिर में आज भी आसमानी बिजली गिरती है, लेकिन मंदिर को कोई नुकसान नहीं होता. कुल्लू शहर से बिजली महादेव की पहाड़ी लगभग 7 किलोमीटर दूर है. कुल्लू की खराहल घाटी के शीर्ष पर बसा बिजली महादेव का मंदिर (BIJLI MAHADEV TEMPLE KULLU) आज भी देश-विदेश से आने वाले लाखों श्रद्धलुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है.

मान्यता है कि पहाड़ी रूप का दैत्य दोबारा जनमानस को कष्ट न पहुंचा सके, इसके लिए पहाड़ी के ऊपर शिवलिंग स्थापित किया गया और देवराज इंद्र को आदेश दिया गया कि वह हर 12 साल बाद शिवलिंग पर बिजली गिराएं. माना जाता है कि आज भी उस आदेश का पालन हो रहा है और शिवलिंग पर बिजली का गिरना जारी है. दैत्य के वध के बाद बनी उस पहाड़ी को आज बिजली महादेव के नाम से जाना जाता है, जो आज देश-विदेश में शिवभक्तों के लिए आस्था का केंद्र बन गई है.

BIJLI MAHADEV TEMPLE KULLU
कुल्लू की हराहल घाटी

विशालकाय सांप का रूप है कुल्लू घाटी- कुल्लू शहर में ब्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊंचे पर्वत के ऊपर बिजली महादेव का प्राचीन मंदिर है. कुल्लू घाटी में ऐसी मान्यता है कि यह घाटी एक विशालकाय सांप का रूप है. सांप का वध भगवान शिव ने किया था. मन्दिर के भीतर स्थापित शिवलिंग पर हर 12 साल बाद भयंकर आसमानी बिजली गिरती है. बिजली गिरने से मंदिर का शिवलिंग खंडित हो जाता है. यहां के पुजारी खंडित शिवलिंग के टुकड़े एकत्रित कर मक्खन के साथ इसे जोड़ देते हैं, कुछ ही माह बाद शिवलिंग एक ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है.

कुलांत नामक दैत्य रोकना चाहता था ब्यास नदी का प्रवाह- कुल्लू घाटी के जानकारों के अनुसार बहुत पहले यहां कुलांत नामक दैत्य रहता था. दैत्य कुल्लू के पास की नागणधार से अजगर का रूप धारण कर मंडी की घोग्घरधार से होता हुआ लाहौल-स्पीति से मथाण गांव आ गया. कुंडली मार कर ब्यास नदी के प्रवाह को रोक कर इस जगह को पानी में डुबोना चाहता था. इसके पीछे उसका उद्देश्य यह था कि यहां रहने वाले सभी जीव-जंतु पानी में डूब कर मर जाएंगे. भगवान शिव कुलांत के इस विचार से चिंतित हो गए.

BIJLI MAHADEV TEMPLE KULLU
पहाड़ी पर मौजूद बिजली महादेव का मंदिर.

ऐसे पड़ा कुल्लू शहर का नाम- पौराणिक कथाओं के अनुसार बड़े जतन के बाद भगवान शिव ने उस राक्षस रूपी अजगर का वध किया था. कुलांत के मरते ही उसका शरीर एक विशाल पर्वत में बदल गया. उसका शरीर धरती के जितने हिस्से में फैला हुआ था वह पूरा का पूरा क्षेत्र पर्वत में बदल गया. कुल्लू घाटी का बिजली महादेव से रोहतांग दर्रा और मंडी के घोग्घरधार तक की घाटी कुलांत के शरीर से निर्मित मानी जाती है. कुलांत से ही कुलूत और इसके बाद कुल्लू नाम के पीछे यही किवदंती कही जाती है.

12 साल में एक बार गिरती है शिवलिंग पर बिजली- मान्यता के अनुसार कुलांत दैत्य को मारने के बाद शिव ने इंद्र से कहा कि वह 12 साल में एक बार इस जगह पर बिजली गिराया करें. हर 12वें साल में यहां आसमानी बिजली गिरती है. इस बिजली से शिवलिंग चकनाचूर हो जाता है. इसके बाद पुजारी शिवलिंग के टुकड़े इकट्ठा करके मक्खन से जोड़कर स्थापित कर लेता है. कुछ समय बाद पिंडी अपने पुराने स्वरूप में आ जाती है.

BIJLI MAHADEV TEMPLE KULLU
पवित्र शिवलिंग

इसलिए कहा जाता है बिजली महादेव- आकाशीय बिजली शिवलिंग पर गिरने के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव नहीं चाहते चाहते थे कि जब बिजली गिरे तो जन-धन को इससे नुकसान पहुंचे. भोलेनाथ लोगों को बचाने के लिए इस बिजली को अपने ऊपर गिरवाते हैं. इसी वजह से भगवान शिव को यहां बिजली महादेव कहा जाता है.

समुद्रतल से 2450 मीटर की ऊंचाई पर है स्थित- यह जगह समुद्रतल से 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. शीतकाल में यहां भारी बर्फबारी होती है. बिजली महादेव का अपना ही महात्म्य व इतिहास है, ऐसा लगता है कि बिजली महादेव के इर्द-गिर्द समूचा कुल्लू का इतिहास घूमता है और हर मौसम में दूर-दूर से लोग बिजली महादेव के दर्शन करने आते हैं.

BIJLI MAHADEV TEMPLE KULLU
बिजली महादेव का मंदिर.

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कैसे पहुंचे बिजली महादेव मंदिर- कुल्लू के धार्मिक पर्यटन स्थल बिजली महादेव के लिए दिल्ली से भुंतर तक हवाई सेवा भी उपलब्ध है. इसके अलावा सड़क मार्ग के माध्यम से भी कुल्लू तक पहुंचा जा सकता है. कुल्लू से बस या फिर निजी वाहन के माध्यम से खराहल घाटी के कराटे नामक गांव तक पहुंचा जा सकता है. उसके बाद पैदल रास्ते के माध्यम से 2 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ने के बाद बिजली महादेव मंदिर पहुंच सकते हैं.

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