कुल्लू: देश भर में नवरात्रि का त्यौहार धूमधाम से मनाया (Shardiya Navratri 2022) जा रहा हैं. 9 दिनों तक माता के 9 स्वरूपों की भक्तों द्वारा पूजा अर्चना की जाएगी. नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है. शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं. इसी वजह से मां के इस स्वरूप को शैलपुत्री कहा जाता है. इनकी आराधना से भक्त मनोवांछित फल प्राप्त कर सकते हैं.
इस मंत्र का करें जाप: मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए ध्यान मंत्र जपना चाहिए. इसके प्रभाव से माता जल्द ही प्रसन्न होती हैं और भक्त की सभी कामनाएं पूर्ण करती हैं. नवरात्रि के पहले दिन सबसे पहले मां शैलपुत्री की तस्वीर स्थापित करें और उसके नीचे लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं. इसके बाद हाथ में लाल पुष्प लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें. ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम: . मंत्र के साथ ही हाथ के पुष्प मां के तस्वीर के ऊपर छोड़ दें.
108 बार करें मंत्र का जाप: इसके बाद माता को प्रसाद अर्पित करें और मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें. इस मंत्र का जप कम से कम 108 बार करें. मंत्र - ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम: . मंत्र संख्या पूर्ण होने के बाद मां दुर्गा के चरणों में अपनी मनोकामना व्यक्त करके मां से प्रार्थना करें और आरती एवं कीर्तन करें. मंत्र के साथ ही हाथ के पुष्प मां के तस्वीर के ऊपर छोड़ दें. इसके बाद भोग अर्पित करें और मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें. यह जप कम से कम 108 बार होना चाहिए.
शैलपुत्री वन्य जीव-जंतुओं की रक्षक: शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं. मां के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का पुष्प है. यह नंदी नामक बैल पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान हैं. इसलिए इनको वृषोरूढ़ा और उमा के नाम से भी जाना जाता है. यह वृषभ वाहन शिवा का ही स्वरूप है. घोर तपस्या करने वाली शैलपुत्री समस्त वन्य जीव-जंतुओं की रक्षक भी हैं. शैलपुत्री के अधीन वे समस्त भक्तगण आते हैं, जो योग, साधना-तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते हैं.
इस तरह करें मां शैलपुत्री की आराधना: चैत्र नवरात्र के पहले दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि से निवृत होकर साफ कपड़े पहनें. इसके बाद चौकी को गंगाजल से साफ करके मां दुर्गा की प्रतिमा या फोटो को स्थापित करें. इसके बाद कलश स्थापना करें और मां शैलपुत्री का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें. इसके बाद माता को रोली-चावल लगाएं और सफेद फूल मां (maa shailputri puja vidhi) को चढ़ाएं. फिर सफेद वस्त्र मां को अर्पित करें. मां के सामने धूप, दीप जलाएं और मां की देसी घी के दीपक से आरती उतारें. शैलपुत्री माता की कथा, दुर्गा चालिसा, दुर्गा स्तुति या दुर्गा सप्तशती का पाठ करें. जयकारों के साथ पूजा संपन्न करें और मां को भोग लगाएं. इसके बाद सायंकाल के समय मां की आरती करें और ध्यान करें.
मां शैलपुत्री को सफेद वस्तुएं हैं पसंद: पर्वतराज की पुत्री होने के कारण माता को शैल के समान यानी सफेद वस्तुएं ही प्रिय हैं. इसलिए मां की पूजा सफेद फूलों से की जाती है और सफेद वस्त्र मां को अर्पित किए जाते हैं. इसके साथ ही माता को सफेद मिष्ठान का भोग लगाया जाता है. माता शैलपुत्री की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है. मां के इस स्वरूप को स्थिरता और दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है. शैल का अर्थ होता है पत्थर और पत्थर को सदैव अडिग माना जाता है.
ध्यान मंत्र- वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम् . वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्. अर्थात- देवी वृषभ पर विराजित हैं. शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है. यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है. नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए.
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