कुल्लू: भारत देश आज आजाद हुए 75 साल हो (Achievements 75) चुके हैं और इस वर्ष को आजादी के अमृत महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) के रूप में मनाया जा रहा है. आजादी (Indian Independence Day) के इस सफर में कई ऐसी परंपराएं हैं, जिन्हें हम आज भी मामते आ रहे हैं. इन्हीं परंपराओं ने चलते आज हमारी संस्कृति जीवित है. हिमाचल प्रदेश पलहे ही अपनी अगल संस्कृति के लिए जाना जाता है. यहां भी कई ऐसे रिवाज है, जो आज भी कायम हैं.
ऐसा ही एक रिवाज रक्षाबंधन से भी जुड़ा है. रक्षाबंधन यानी रक्षा की कामना के लिए बहन की ओर से बांधा जाने वाला एक बंधन. यह त्योहार भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है. इस दिन सभी बहनें अपने भाई की कलाई में राखी बांधती हैं. भाई बहन एक दूसरे को मिठाई खिलाते हैं और सुख-दुख में एक दूसरे के साथ रहने का विश्वास दिलाते हैं. वहीं, कुल्लू के प्रसिद्ध पर्यटन नगरी मनाली (rakhi in kullu) के कुछ गांव में रक्षाबंधन से लेकर दशहरा तक राखी को लेकर जीजा साली के बीच एक अनोखी प्रतियोगिता शुरू हो जाती है.
यहां साली और भाभी को राखी का बेसब्री से इंतजार रहता है. ताकि भाभी अपने देवर और साली अपने जीजा की कलाई पर बांधी गई राखी को तोड़ सकें. इसमें अगर साली ने अपने जीजा की राखी को दशहरे से पहले तोड़ दिया तो साली की जीत हो जाती है. अगर साली राखी को नहीं तोड़ पाई तो ऐसे में यह जीत जीजा की मानी जाती है और इस जीत को लेकर घर में जश्न भी मनाया जाता है. कई दशकों से चली आ रही जीजा साली (Rakhi celebrated in unique tradition) की राखी तोड़ने की अनूठी परंपरा यहां निरंतर जारी है.
स्थानीय लोगों के अनुसार मनाली क्षेत्र में करीब दो दशक पहले केवल पुरोहित ही लोगों को राखी बांधते थे, लेकिन अब बहनें अपने भाई को राखी बांधने के लिए उनके घर जाती हैं और वह इस त्योहार का पूरे साल इंतजार करती हैं. उझी घाटी के स्थानीय लोगों ने बताया कि बहन की ओर से जो भाई की कलाई पर राखी बांधी जाती है उस डोर को दशहरे (raksha bandhan 2022) तक संभाल कर रखना होता है. अगर इससे पहले उनकी भाभी या साली ने राखी तोड़ दी तो पुरुष की हार मानी जाती है.
ग्रामीणों का इस अनूठी परंपरा के पीछे एक तर्क (rakhi celebrated at kullu) यह भी है कि पुरुष को रक्षा के सारे सूत्र आने चाहिए. अगर पुरुष अपने राखी को दशहरे तक बचाने में कामयाब होता है. तो वह अपनी बहन व समाज की रक्षा करने में भी सक्षम है और ऐसे में हंसी मजाक के बीच इस अनूठी परंपरा का आज भी उझी घाटी के ग्रामीण इलाकों में निर्वहन किया जाता है. लोगों का कहना है कि यह परंपरा कब से निभाई जा रही है इसका किसी को भी कोई पता नहीं है, लेकिन हर साल रक्षाबंधन के दौरान इस अनूठे रिवाज को निभाया जाता है और हंसी भरे माहौल में इस रिवाज से लोगों के बीच में आपसी प्रेम व सौहार्द बढ़ता है.
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