कुल्लू: देव समागम अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के छठे दिन बुधवार को ढालपुर मैदान में देवी-देवताओं की ध्वनि लहरियों से जहां गुंजायमान हो उठा. वहीं, देव धुनों से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि देवलोक से सारे देवता धरती पर उतर आए हों. मुहल्ले के दिन सभी देवी-देवता अपने अस्थाई शिविर से बाहर निकले और ढोल-नगाड़ों की थाप पर भगवान रघुनाथ के कैंप और नरसिंह भगवान की चनणी तक पहुंचे.
विश्व के सबसे बड़े देव महाकुंभ अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव में पहुंचे सभी देवी-देवता रघुनाथ जी के अस्थाई कैंप में जाकर हाजरी भरी. यही नहीं सभी देवी-देवताओं का रघुनाथ जी के रजिस्टर में बाकायदा एंट्री होने के बाद देवी-देवताओं का देव महामिलन भी हुआ. इस देव महामिलन को मुहल्ला कहते हैं. इसके पश्चात देवी-देवताओं के दशहरा पर्व में रघुनाथ के दरबार में शक्ति का आह्वान हुआ.
दशहरा पर्व में इस शक्ति आह्वान को विधिवत रूप से किया गया. देवी हिडिंबा माता फूलों का गुच्छा जिसे शेश कहा जाता है उसके मिलने पर ही मुहल्ला पर्व शुरू हुआ. मुहल्ला उत्सव में ही देवी-देवता रघुनाथ जी के रथ पर हाजिरी भरी, लेकिन सबसे पहले हिडिंबा देवी का नाम दर्ज हुआ. देवी-देवता राजा की चानणी के पास भी हाजरी देते हैं. देवी-देवताओं से लिया गया शेश राज गद्दी पर बिठाए गए.
राजा अपनी राजगद्दी को छोड़कर साधारण कुर्सी पर बैठे. तत्पश्चात ही शक्ति का आह्वान हुआ. परंपरा के अनुसार शक्ति रूपी ब्राह्मण रघुनाथ जी के समक्ष शेर की सवारी में नंगी तलवार से नाचते हुए अढ़ाई फेरे लगाता है. इस दिन लंका पर विजय के लिए शक्ति से रक्षा की अपील की जाती है. कुल्लू दशहरा पर्व अनूठी परंपरा का संगम है. राजा की चनणी के पास दिन भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा तो वहीं शाम के समय बारी-बारी से आए देवी-देवता अलग ही नजारा पेश कर रहे थे.
शेष विश्व में दशहरा पर्व समाप्त होता है तब कुल्लू में इसकी शुरूआत होती है. इसके पीछे धारणा यह है कि रावण पूर्णिमा के दिन मारा गया था, इसलिए कुल्लू का दशहरा पर्व पूर्णिमा से सात दिन पहले शुरू होता है. सातवें दिन लंका दहन में रावण को परंपरा अनुसार भेदा जाता है. छठे दिन कुल्लू के समस्त देवी-देवता रावण का सफाया करने के लिए मुहल्ला में एकत्र हुए और शक्ति का आह्वान करके सातवें दिन यानी 21 अक्टूबर को लंका पर चढ़ाई करेगें.
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