कुल्लू: जल है तो जीवन है यह कहावत गर्मियों की तपती धूप में झुलसते व्यक्ति के लिए कारगर सिद्ध होती है. क्योंकि प्यास बुझाने के लिए पानी से बेहतर दूसरा कोई विकल्प नहीं होता है. गर्मियों के शुरू होते ही बाजार में तमाम तरह के ब्रांड मार्केट में बिकने लगते हैं. ऐसे में मिनरल वाटर प्लांट वाले भी अपनी क्षमता बढ़ाने लगते हैं.
हिमाचल प्रदेश में भी इन दिनों पारा चढ़ने लगा है और बाजारों में भी पेय पदार्थों की दुकानें भी सजने लगी हैं. वहीं, पर्यटन नगरी कुल्लू में पानी का कारोबार तेजी से चल रहा है. कोरोना की वजह से मिनरल वाटर प्लांट संचालक पूरे एहतियात के साथ काम कर रहे हैं. साथ ही फूड एंड सेफ्टी विभाग की ओर से जारी सभी गाइडलाइन का भी पालन कर रहे हैं.
विभागीय अधिकारी करते हैं प्लांट का निरीक्षण
विभागीय अधिकारियों का कहना है कि जिले में जो भी प्लांट चल रहे हैं, सभी शहर के बाहर लगाए गए हैं. साथ ही, वाटर प्लांट का हर महीने निरीक्षण किया जाता है, ताकि प्लांट में विभाग की ओर तय मानकों के हिसाब से उत्पादन का पता लग सके. जिले में अभी तक ऐसा कोई भी मामला सामने नहीं आया है, जिसमें खाद्य सुरक्षा नियमों का उल्लंघन किया गया हो.
प्लांट में सेनेटाइज मशीनों से किया जाता है काम
वाटर प्लांट प्रबंधन के द्वारा प्राकृतिक स्रोत की भी बेहतर तरीके से व्यवस्था की गई है ताकि पानी दूषित न हो सके. वहीं, सरकार के नियमों के अनुसार भी यहां पानी की जांच के लिए मेडिकल लैब स्थापित की गई है. इसके अलावा पानी के पैकेजिंग प्लांट में स्वच्छता का भी विशेष ध्यान रखा गया है. यहां अधिकतर कार्य सेनेटाइज मशीनों से किया जाता है. ताकि पानी की गुणवत्ता प्रभावित न हो सके.
मिनरल वाटर के फायदे
मिनरल वाटर में साधारण नल के पानी के मुकाबले अतिरिक्त पोषक तत्व होते हैं. मिनरल वाटर में अधिक कार्बन डाइ-ऑक्साइड, प्राकृतिक मिनरल्स जैसे मैग्नीशियम, पोटेशियम और कैल्शियम की भी मात्रा शामिल होती है. रोजाना मिनरल वाटर का सेवन करने से आपकी त्वचा, बाल, हड्डी मजबूत तो होती है साथ ही दिमाग भी तेज होता है.
प्लांट में बरती जाने वाली सावधानियां
सरफराज हुसैन बताते हैं कि पानी की नियमित रूप से जांच की जाती है और सरकार के नियमों के अनुसार पानी के सेंपल बाहरी लेबोरेटरी में भी भेजे जाते हैं. इसके अलावा कर्मचारियों का भी समय-समय पर मेडिकल चेकअप कराया जाता है.
प्लांट के लिए जरूरी शर्तें
मिनरल वाटर प्लांट लगाने के लिए दो सौ फीट की बोरिंग होनी चाहिए. वहां पानी खारा न आता हो और वाटर लेवल ठीक हो. इसके लिए दो मशीनों आरओ मशीन और चिलर मशीन की आवश्यकता होती है.
ऐसे मिलता है वाटर प्लांट का लाइसेंस
मिनरल वाटर प्लांट के लिए लाइसेंस आवेदन दिल्ली में ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंटर्ड को करना होता है. इसकी फीस लाखों में होती है. इसके बाद ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंटर्ड के अधिकारी मौके पर जांच करते हैं और पानी का नमूना लेते हैं. नमूना पास होने के बाद अनुमति पत्र दिया जाता है. यह पत्र जिला स्तर पर खाद्य विभाग को दिखाया जाता है. इसके बाद प्लांट का लाइसेंस जारी होता है. लाइसेंस से पहले मशीनों की गुणवत्ता की जांच सहित कई प्रावधान भी पूरे कराए जाते हैं.
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