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सराज घाटी में फागली उत्‍सव का आगाज, पारंपरिक परिधान व मुखौटे पहन निभाई सदियों पुरानी परंपरा - फागली उत्‍सव

बुधवार को देवताओं के स्वर्ग प्रवास से लौटने पर असुर भी नाच उठे और पारंपरिक परिधानों और मुखौटे पहन सदियों पुरानी परंपरा निभाई.

फागली उत्‍सव
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Published : Feb 13, 2019, 10:20 PM IST

मंडीः सराज घाटी में दो दिवसीय फागली उत्सव धूमधाम से शुरू हो गया है. बुधवार को देवताओं के स्वर्ग प्रवास से लौटने पर असुर भी नाच उठे और पारंपरिक परिधानों और मुखौटे पहन सदियों पुरानी परंपरा निभाई. इस बार खास बात यह है कि फागली का नाच दो से तीन फीट बर्फ पर हुआ.

ठंड के बावजूद देवता के कारकूनों ने भगवान विष्णु को समर्पित फागली हर्षोल्लास के साथ मनाई. फागली उत्सव समुद्र तल से नौ हजार फीट की ऊंचाई पर रांगचा में भी शुरू हो गया है. 7 साल बाद फागली इस बार 3 से 4 फीट बर्फ में हो रही है. कल भगवान विष्णु नारायण देवता रांगचा आएंगे और बीठ के रूप में क्षेत्रवासियों को आशीर्वाद देंगे.

फागली उत्‍सव
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बर्फ के बीच फागुन संक्रांति को यहां फागली उत्सव के रूप में मनाया जाता है जिसमें देवता के कारकून पारंपरिक मडियाला नृत्य करते हैं. इस उत्सव का ग्रामीणों को बेसब्री से इंतजार रहता है. देवता के कारकून भूपेश ठाकुर ने कहा कि ये उत्सव भगवान विष्णु को समर्पित है और मान्यता के अनुसार इसमें देवता के अलग-अलग गण अलग-अलग रूपों में वस्त्र पहनकर एकसाथ झूमते हैं और लोगों को आशर्वाद देते हैं.

फागली उत्‍सव
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मान्यता के मुताबिक स्वर्ग प्रवास से देवताओं के लौटते ही यह उत्सव शुरू हो जाता है. इस दौरान बरूआ घास से बने एक प्रकार के फूल के लिए देवलुओं के बीच छीनाझपटी भी होती है. बरूआ के घास से बने इस गुच्छे को देव भाषा में बीठ कहा जाता है जो व्यक्ति इस बीठ को पाने में सफल होता है तो उसी घर में धाम का आयोजन भी किया जाता है. सराज घाटी में यह फागली उत्सव तीन दिन तक मनाया जाता है.

फागली उत्‍सव
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पंचायत खणी में हर तीन साल बाद मनाया जाने वाला फागली उत्सव तीन दिनों तक चलता है. अराध्य देवता लक्ष्मी नरायण की अगुवाई में मनाए जाने वाले फागली उत्सव में अराध्य देवता लक्ष्मी नारायण का मुख्य मुखौटा हर घर जाकर लोगों को सुख समृद्धि का वरदान भी देता है.

फागली उत्‍सव
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देवनीति में मान्यता है इस मुखौटे से जहां सालभर में सुख समृद्धि का वरदान मिलता है तो वहीं बुरी शक्तियों को भी यह घर से दूर भी करता है. लक्ष्मी नरायण के वरिष्ठ देवलु डोले राम का कहना है कि यह उत्सव देवता विष्णु नारायण पर ही मनाया जाता है. आसुरी शक्तियों को भगाने के लिए अश्लील तंज भी कसे जाते हैं.

मंडीः सराज घाटी में दो दिवसीय फागली उत्सव धूमधाम से शुरू हो गया है. बुधवार को देवताओं के स्वर्ग प्रवास से लौटने पर असुर भी नाच उठे और पारंपरिक परिधानों और मुखौटे पहन सदियों पुरानी परंपरा निभाई. इस बार खास बात यह है कि फागली का नाच दो से तीन फीट बर्फ पर हुआ.

ठंड के बावजूद देवता के कारकूनों ने भगवान विष्णु को समर्पित फागली हर्षोल्लास के साथ मनाई. फागली उत्सव समुद्र तल से नौ हजार फीट की ऊंचाई पर रांगचा में भी शुरू हो गया है. 7 साल बाद फागली इस बार 3 से 4 फीट बर्फ में हो रही है. कल भगवान विष्णु नारायण देवता रांगचा आएंगे और बीठ के रूप में क्षेत्रवासियों को आशीर्वाद देंगे.

फागली उत्‍सव
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बर्फ के बीच फागुन संक्रांति को यहां फागली उत्सव के रूप में मनाया जाता है जिसमें देवता के कारकून पारंपरिक मडियाला नृत्य करते हैं. इस उत्सव का ग्रामीणों को बेसब्री से इंतजार रहता है. देवता के कारकून भूपेश ठाकुर ने कहा कि ये उत्सव भगवान विष्णु को समर्पित है और मान्यता के अनुसार इसमें देवता के अलग-अलग गण अलग-अलग रूपों में वस्त्र पहनकर एकसाथ झूमते हैं और लोगों को आशर्वाद देते हैं.

फागली उत्‍सव
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मान्यता के मुताबिक स्वर्ग प्रवास से देवताओं के लौटते ही यह उत्सव शुरू हो जाता है. इस दौरान बरूआ घास से बने एक प्रकार के फूल के लिए देवलुओं के बीच छीनाझपटी भी होती है. बरूआ के घास से बने इस गुच्छे को देव भाषा में बीठ कहा जाता है जो व्यक्ति इस बीठ को पाने में सफल होता है तो उसी घर में धाम का आयोजन भी किया जाता है. सराज घाटी में यह फागली उत्सव तीन दिन तक मनाया जाता है.

फागली उत्‍सव
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पंचायत खणी में हर तीन साल बाद मनाया जाने वाला फागली उत्सव तीन दिनों तक चलता है. अराध्य देवता लक्ष्मी नरायण की अगुवाई में मनाए जाने वाले फागली उत्सव में अराध्य देवता लक्ष्मी नारायण का मुख्य मुखौटा हर घर जाकर लोगों को सुख समृद्धि का वरदान भी देता है.

फागली उत्‍सव
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देवनीति में मान्यता है इस मुखौटे से जहां सालभर में सुख समृद्धि का वरदान मिलता है तो वहीं बुरी शक्तियों को भी यह घर से दूर भी करता है. लक्ष्मी नरायण के वरिष्ठ देवलु डोले राम का कहना है कि यह उत्सव देवता विष्णु नारायण पर ही मनाया जाता है. आसुरी शक्तियों को भगाने के लिए अश्लील तंज भी कसे जाते हैं.

पारंपारिक परिधानों व मुखौटे पहन निभाई सदियों पुरानी परंपरा
मंडी जिला के सराज घाटी में फागली उत्‍सव का आगाज

मंडी। सराज घाटी में दो दिवसीय फागली उत्सव धूमधाम से शुरू हो गया। बुधवार को देवताओं के स्वर्ग प्रवास से लौटने पर असुर भी नाच उठे और पारंपरिक परिधानों और मुखौटे पहन सदियों पुरानी परंपरा निभाई। इस बार खास बात यह है कि फागली का नाच दो से 3 फुट बर्फ पर हुआ और ठंड के बावजूद देवता के कारकूनों ने भगवान विष्णु को समर्पित फागली हर्षोल्लास के साथ मनाई।
फागली उत्सव समुद्र तल से 9 हजार फुट की ऊंचाई पर रांगचा में भी शुरू हो गया है। 7 साल बाद फागली इस बार 3 से 4 फीट बर्फ में हो रही है। कल भगवान विष्णु नारायण रांगचा आएंगे और बीठ के रूप में क्षेत्रवासियों को आशीर्वाद देंगे। बर्फ के बीच फागुन संक्रांति को यहां फागली उत्सव के रूप में मनाया जाता है जिसमें देवता के कारकून पार परिक मडिय़ाहला नृत्य करते हैं। इस उत्सव का ग्रामीणों को बेसब्री से इंतजार रहता है। देवता के कारकूनन भूपेंश ठाकुर ने कहा कि ये उत्सव भगवान विष्णु को समर्पित है और इसमें देवता के अलग-अलग गण अलग-अलग रूपों में वस्त्र पहनकर एकसाथ झूमते हैं और लोगों को आशर्वाद देते हैं। स्वर्ग प्रवास से देवताओं के लौटते ही यह उत्सव शुरू हो जाता है। इस दौरान बरूआ घास से बने एक प्रकार के फूल के लिए देवलुओं के बीच छीनाझपटी भी होती है। बरूआ के घास से बने इस गुच्छे को देव भाषा में बीठ कहा जाता है जो व्यक्ति इस बीठ को पाने में सफल होता है तो उसी घर में धाम का आयोजन भी किया जाता है। सराज घाटी में यह फागली उत्सव 3 दिन तक मनाया जाता है। पंचायत खणी में हर 3 साल बाद मनाया जाने वाला फागली उत्सव 3 दिनों तक चलता है। अराध्य देवता लक्ष्मी नरायण की अगुवाई में मनाए जाने वाले फागली उत्सव में अराध्य देवता लक्ष्मी नारायण का मु य मुखौटा हर घर जाकर लोगों को सुख समृद्धि का वरदान भी देता है। देवनीति में मान्यता है इस मुखौटे से जहां सालभर में सुख समृद्धि का वरदान मिलता है तो वहीं बुरी शक्तियों को भी यह घर से दूर भी करता है। लक्ष्मी नरायण के वरिष्ठ देवलु डोले राम का कहना है कि यह उत्सव देवता विष्णु नारायण पर ही मनाया जाता है। आसुरी शक्तियों को भगाने के लिए अश्लील तंज भी कसे जाते हैं। 

बाइट भूपेश ठाकुर, कारकून

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