हमीरपुर: इन दिनों समाज सेवा को कई नजरों से देखा जाता है. लोगों के बीच जाकर समाज सेवक खूब ढिंढोरा पीटते हैं, लेकिन निस्वार्थ सेवा के उदाहरण आपको कम ही देखने को मिलेंगे. ऐसा ही एक अनुकरणीय उदाहरण है (Social worker Shantanu Kumar) बंगाल के कोलकाता के मूल निवासी शांतनु कुमार. हिमाचल में छोटी सी दुकान चलाकर शांतनु कुमार लावारिस शवों के लिए कंधा बने हुए हैं. हमीरपुर के समाजसेवी शांतनु कुमार करीब 3 दशक से लावारिस लाशों को अपने कंधों पर उठाकर न केवल उनका अंतिम संस्कार करवाते हैं. बल्कि अपने खर्चे पर हरिद्वार जाकर अस्थियों को रीति-रिवाज के साथ गंगा में विसर्जित करते हैं. शांतनु ने बताया कि अब तक वो करीब 2790 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करवा चुके हैं.
बंगाल से हमीरपुर तक का सफर: आपको बता दें कि शांतनु मूल रूप से बंगाल के रहने वाले हैं. शांतनु बताते हैं कि सन् 1990 से उन्होंने समाज सेवा शुरू की थी. वो 1980 में अपने पिता के साथ में हमीरपुर आए थे. उनके पिता यहां पर सरकारी नौकरी करते थे और तब उनका पूरा परिवार हमीरपुर में ही बस गया. यहां रहने के बाद उन्होंने समाज सेवा का मन बनाया और इसी में जुट गए.
ऐसे आया लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने का ख्याल: उन्होंने बताया कि उनके अंदर समाज सेवा की भावना हमीरपुर में हुए एक हादसे के बाद शुरू हुई थी. दरअसल पुलिस जवान हमीरपुर में एक लावारिस शव को जला रहे थे और इसी दौरान शांतनु कुमार भी वहां पहुंचे और उन्होंने पुलिस जवानों से बातचीत की. शांतनु बताते हैं कि यही वो पल था जब उनके मन में लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने की इच्छा (funeral of unclaimed dead bodies) उत्पन्न हुई. दरअसल उसी दौरान उन्हें पता चला कि पुलिस द्वारा लावारिस शवों को जला तो दिया जाता है लेकिन इनका हिंदू परंपरा के अनुसार अस्थि विसर्जन करने की कोई व्यवस्था नहीं है. यहीं से शांतनु कुमार के अंदर इस कार्य को करने की प्रेरणा जागृत हुई.
2790 पितरों का करेंगे सामूहिक महा श्राद्ध: शांतनु कुमार लावारिस शवों का अंतिम संस्कार के बाद अपने ही खर्च पर हरिद्वार जाकर हरकी पौड़ी ब्रह्मा कुंड में हिंदू शास्त्र के अनुसार पिंड दान करवाते हैं. वहीं, समाजसेवी शांतनु कुमार हरिद्वार में 25 सितंबर को 2790 पितरों का सामूहिक महा श्राद्ध (Shantanu Kumar will do Maha Shradh) करेंगे. उनकी कमाई का जरिया एक छोटी सी कपड़े की दुकान है, जिसकी आमदनी से वह समाज सेवा के कार्य करते हैं.
समाजसेवा के लिए नहीं की शादी: शांतनु कुमार ने समाज सेवा के लिए अविवाहित रहने का निर्णय लिया. जब उन्हें पता चलता है कि कहीं पर लावारिस शव पड़ा है तो वह अपने मकसद के लिए निकल पड़ते हैं और शव का अंतिम संस्कार करवाने के बाद हरिद्वार में अस्थियां विसर्जन करके वापस लौटते हैं. शांतनु से जब पूछा गया कि उन्होंने शादी क्यों नहीं कि तो उन्होंने जवाब दिया कि परिवार और समाजसेवा एक साथ नहीं चल सकते. यही वजह है कि उन्होंन आजीवन शादी न करने का फैसला लिया ताकि वह समाज सेवा के इस कार्य को बिना रूके और बिना किसी समस्या के निभा सकें.
हिमाचल सरकार ने प्रेरणा स्रोत सम्मान से नवाजा: समाज सेवा के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने के लिए कई सामाजिक संगठनों ने शांतनु कुमार को सम्मानित भी किया है. प्रदेश सरकार की तरफ से भी विभिन्न मंचों पर उनको सम्मान दिया गया है. हिमाचल सरकार ने उन्हें प्रेरणा स्त्रोत सम्मान से नवाजा है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रेवरी अवार्ड से भी सम्मानित किया गया है. शांतनु ने इनाम में मिली हजारों रुपये की राशि को भी अपने पास नहीं रखा और उसे भी चैरिटी में दान कर दिया. शांतनु कुमार का कहना है कि समाज सेवा करके अलग सी अनुभूति होती है और इस काम के लिए वह मदर टेरेसा को प्रेरणा स्त्रोत मानते हैं.
कोविड में भी किए कई लावारिस शवों के अंतिम संस्कार: कोविड काल का दौर एक ऐसा दौर रहा है जब कई अपने भी अपनों की मदद करने से पीछे हट गए. यहां तक कई लोगों ने तो कोविड के भय के चलते अपनों का दाह संस्कार तक नहीं किया. वहीं, कुछ ऐसे भी थे जो मजबूरन यानी कोविड प्रोटोकॉल के तहत किसी अपने के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में शामिल नहीं हो सके. लेकिन इस दौर में भी शांतनु कुमार (funeral of unclaimed dead bodies) ने समाज सेवा की राह नहीं छोड़ी और कोविड के चलते जिन लोगों की जान गई और उनके शव लावारिस पड़े रहे उनका दाह संस्कार करने के लिए भी शांतनु आगे आए और अपनी जान की परवाह न किए बगैर समाज सेवा के इस पुनीत कार्य को अंजाम दिया. बता दें कि कोविड काल में शांतनु ने करीब 15 से 20 लावारिसों का अंतिम संस्कार किया.
सरकार और प्रशासन की मदद नहीं मिलने का मलाल: सरकार और प्रशासन की तरफ से मदद न मिलने का समाजसेवी शांतनु कुमार को मलाल है. उनका कहना है कि वह हरिद्वार अस्थि विसर्जन के लिए जाते थे तो, इसके लिए उन्होंने महीने में एक बार एचआरटीसी के फ्री बस पास की मांग की थी, लेकिन अभी तक उनकी मांग पूरी नहीं हुई है, जिसका उन्हें मलाल है.
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