भोरंज: उपमंडल भोरंज का अवाहदेवी कस्बा एक बहुत ही सुंदर स्थान है, यह हिमाचल प्रदेश के दो जिलों जिला हमीरपुर और जिला मंडी के सीमा क्षेत्र पर स्थित है. जिला हमीरपुर से 24 किलोमीटर दूरी पर पूर्व की ओर स्थित है. यह मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है. मंदिर में मां जालपा पिंडी रूप में विराजमान है. यहां गुग्गा पीर की पुरानी मूर्तियाँ भी स्थापित है.
पुजारी ने बताया कि मंदिर के स्थान पर दो परिवार काम करते थे. एक परिवार मंडी का था और एक परिवार हमीरपुर का था. एक बार खेतों में जुताई करते हल एक पत्थर से टकराया तो उस पत्थर से रक्त बहने लगा. सब लोग हैरान हो गए और यह बात आग की तरह सब जगह फैल गई. फिर मां की इस पिंडी को बाहर निकला और मां ने दर्शन दिए और अपने लिए एक स्थान मांगा. मंडी के लोग कहने लगे ये पिंडी हमें मिली है इसलिए इसे हम अपने गांव में ले जाएंगे और वहीं, इसकी स्थापना करेंगे.
हमीरपुर के लोग अपने यहां इसकी स्थापना करने के लिए अड़ गए इस बीच मंडी वालों ने पिंडी उठाई और चल पड़े. जब वे अवाहदेवी के पास आये तो उन्होंने वहां विश्राम करने के लिए पिंडी रखी जब वे जाने लगे तो पिंडी वहां से उठाई नहीं गई. लोगों ने काफी जोर लगा लिया. तभी दोनों तरफ के लोग वहां इकठा हो गए. बुजुर्गों ने फैसला लिया कि इस पिंडी को यहीं स्थापित किया जाए. दोनों परिवारों को इसकी पूजा अर्चना की जिम्मेदारी सौंपी गई. तब से लेकर आज तक ये दो परिवार ही इसके मुख्य पुजारी है.
मंदिर में उत्तराखंड के ब्राह्मण पुजारी राम घनश्याम दत्त माता की सेवा में लगे हैं. कसबे का नाम अवाहदेवी पड़ने के पीछे भी रोचक घटना है. कहते हैं यहां बहुत ही तेज हवाएं चलती थी. पूरे हमीरपुर में ये सबसे ऊंचा स्थान है किसी के मुख से अचानक ही निकला "वाह देवी " तब से यहां का नाम अवाहदेवी पड़ गया. समय बीतता गया और सन् 1965 के आसपास हरियाणा के जिला अम्बाला के गांव नन्न्योला से महात्मा बाबा श्री सरवन नाथ जी आए और यहां के मनोहारी दृश्य को देख कर यहीं तपस्या करने लग गए.
एक दिन मां ने उन्हे दर्शन देकर कहा की यहां मेरा भवन बनाओ और आप भी यहीं अपनी कुटिया बना लो. बाबा जी को बहुत ही ज्यादा ज्ञान था और उन्होंने आसपास के गांव के लोगों को भी अच्छी शिक्षा दी. स्थानीय लोगों के साथ मिल कर इस मंदिर का निर्माण करवाया. बाद में मंदिर कमेटी बनाई गई तब से आज तक इसकी देख रेख का जिम्मा पुजारियों और कमेटी के पास है.
मां के मंदिर के साथ बाबा श्री सरवन नाथ जी की समाधि और उनके चेले बाबा श्री जोत नाथ जी की समाधि और भगवान शिव का मंदिर है. सन् 1980 को यहां पर बाबा सरवन नाथ जी के समाधि लेने के बाद उनके चेले बाबा जोत नाथ जी और बाबा जोत नाथ जी के चेले बाबा हंस नाथ जी यहां रहने लगे. आज कल बाबा निर्मल नाथ जी बाबा हंस नाथ जी के चेले यहाँ के महंत है.
यहां मां के मंदिर में हर साल नवरात्रि, दीपावली और सभी हिन्दू त्योहारों पर भारी भीड़ रहती है. नवरात्रि पर यहां जागरण और भंडारों का भी आयोजन होता है. यहां तकरीबन 250-300 दुकानें हैं जिनका व्यापार मंदिर के कारण ही चलता है. पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल जी की भी ये कुलदेवी है और जब ये पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तो उन्होंने मंदिर का सौन्दर्यकर्ण करवाया था. कोरोना महामारी के कारण आज कल यह मंदिर बंद किया गया है.
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