कांगड़ा: ज्वालामुखी मंदिर में नवमी के दिन श्रावण अष्टमी नवरात्रों का विधिवत कन्या पूजन के साथ समापन किया गया. समापन समारोह में मंदिर अधिकारी विशन दास शर्मा, एसडीएम अंकुश, डीएसपी तिलकराज मौजूद रहे.
श्रावण अष्टमी नवरात्रों के समापन पर 26 हजार भक्तों ने मां की दिव्य ज्योतियों के दर्शन किए और उनको प्रसाद के रूप में हलवा बांटा गया. वहीं, मंदिर अधिकारी विशन दास व मंदिर सह अधिकारी अमित गुलेरी ने बताया कि अष्टमी के दिन भक्तों द्वारा 3,41,265 नकद, व 38 ग्राम चांदी मां के चरणों में अर्पित की .
नवरात्र पर क्यों करें कन्या पूजन
नवरात्र के दौरान कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है. नवरात्री के सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन इन कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर पूजा जाता है. कन्याओं के पैरों को धोया जाता है और उन्हें आदर-सत्कार के साथ भोजन कराया जाता है. ऐसा करने वाले भक्तों को माता सुख-समृद्धि का वरदान देती हैं. वैसे सप्तमी से ही कन्या पूजन का महत्व है, लेकिन, जो भक्त पूरे नौ दिन का व्रत करते हैं और नवमी व दशमी को कन्या पूजन करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण कर व्रत खत्म करते हैं. शास्त्रों में भी बताया गया है कि कन्या पूजन के लिए दुर्गाष्टमी के दिन को सबसे अहम और शुभ माना गया है.
हर उम्र की कन्या का है अलग रूप
नवरात्रि के दौरान सभी दिन एक कन्या का पूजन होता है, जबकि अष्टमी और नवमी पर नौ कन्याओं का पूजन किया जाता है.
2 साल की कन्या का पूजन करने से घर में दुख और दरिद्रता दूर हो जाती है.
3 साल की कन्या त्रिमूर्ति का रूप मानी गई हैं. त्रिमूर्ति के पूजन से घर में धन-धान्य की भरमार रहती है, वहीं परिवार में सुख और समृद्धि रहती है.
4 साल की कन्या को कल्याणी माना गया है. इनकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है.
5 साल की कन्या रोहिणी होती हैं. रोहिणी का पूजन करने से व्यक्ति रोगमुक्त रहता है.
6 साल की कन्या को कालिका रूप माना गया है. कालिका रूप से विजय, विद्या और राजयोग मिलता है.
7 साल की कन्या चंडिका होती है. चंडिका रूप को पूजने से घर में ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.
8 साल की कन्याएं शाम्भवी कहलाती हैं. इनके पूजने से सारे विवाद में विजयी मिलती है.
9 साल की की कन्याएं दुर्गा का रूप होती हैं. इनका पूजन करने से शत्रुओं का नाश हो जाता है और असाध्य कार्य भी पूरे हो जाते हैं.
10 साल की कन्या सुभद्रा कहलाती हैं. सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूरा करती हैं.
कन्या पूजन की ये है प्राचीन परंपरा
ऐसी मान्यता है कि एक बार माता वैष्णो देवी ने अपने परम भक्त पंडित श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी न सिर्फ लाज बचाई और पूरी सृष्टि को अपने अस्तित्व का प्रमाण भी दिया था. आज जम्मू-कश्मीर के कटरा कस्बे से 2 किमी की दूरी पर स्थित हंसाली गांव में माता के भक्त श्रीधर रहते थे. वे निसंतान थे व दुखी थे. एक दिन उन्होंने नवरात्र पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को अपने घर बुलाया, तभी माता वैष्णों कन्या के रूप में उन्हीं के बीच आकर बैठ गई. पूजन के बाद सभी कन्याएं लौट गई, लेकिन माता नहीं गई.
बालरुप में आई देवी पं. श्रीधर से बोलीं- सबको भंडारे का निमंत्रण दे आओ. श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आस-पास के गांवों में भंडारे का संदेश भिजवा दिया. भंडारे में तमाम लोग और कन्याएं भी आई. इसी के बाद श्रीधर के घर संतान की उत्पत्ति हुई. तब से आज तक कन्या पूजन और कन्या भोजन करा कर लोग माता से आशीर्वाद मांगते हैं.