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नवरात्री के समापन में हजारों भक्तों ने मां के दरबार में टेका माथा, अष्टमी के दिन चढ़ा साढ़े 3 लाख चढ़ावा

श्रावण अष्टमी नवरात्रों के समापन पर 26 हजार भक्तों ने मां की दिव्य ज्योतियों के दर्शन किए और उनको प्रसाद के रूप में हलवा बांटा गया. वहीं, मंदिर अधिकारी विशन दास व मंदिर सह अधिकारी अमित गुलेरी ने बताया कि अष्टमी के दिन भक्तों द्वारा 3,41,265 नकद व 38 ग्राम चांदी मां के चरणों में अर्पित की.

shravan ashtami navratri ending in kangra
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Published : Aug 9, 2019, 4:57 PM IST

कांगड़ा: ज्वालामुखी मंदिर में नवमी के दिन श्रावण अष्टमी नवरात्रों का विधिवत कन्या पूजन के साथ समापन किया गया. समापन समारोह में मंदिर अधिकारी विशन दास शर्मा, एसडीएम अंकुश, डीएसपी तिलकराज मौजूद रहे.

श्रावण अष्टमी नवरात्रों के समापन पर 26 हजार भक्तों ने मां की दिव्य ज्योतियों के दर्शन किए और उनको प्रसाद के रूप में हलवा बांटा गया. वहीं, मंदिर अधिकारी विशन दास व मंदिर सह अधिकारी अमित गुलेरी ने बताया कि अष्टमी के दिन भक्तों द्वारा 3,41,265 नकद, व 38 ग्राम चांदी मां के चरणों में अर्पित की .

shravan ashtami navratri ending in kangra
ज्वालाजी मंदिर

नवरात्र पर क्यों करें कन्या पूजन
नवरात्र के दौरान कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है. नवरात्री के सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन इन कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर पूजा जाता है. कन्याओं के पैरों को धोया जाता है और उन्हें आदर-सत्कार के साथ भोजन कराया जाता है. ऐसा करने वाले भक्तों को माता सुख-समृद्धि का वरदान देती हैं. वैसे सप्‍तमी से ही कन्‍या पूजन का महत्व है, लेकिन, जो भक्त पूरे नौ दिन का व्रत करते हैं और नवमी व दशमी को कन्‍या पूजन करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण कर व्रत खत्म करते हैं. शास्‍त्रों में भी बताया गया है कि कन्‍या पूजन के लिए दुर्गाष्टमी के दिन को सबसे अहम और शुभ माना गया है.

हर उम्र की कन्या का है अलग रूप
नवरात्रि के दौरान सभी दिन एक कन्या का पूजन होता है, जबकि अष्टमी और नवमी पर नौ कन्याओं का पूजन किया जाता है.
2 साल की कन्या का पूजन करने से घर में दुख और दरिद्रता दूर हो जाती है.
3 साल की कन्या त्रिमूर्ति का रूप मानी गई हैं. त्रिमूर्ति के पूजन से घर में धन-धान्‍य की भरमार रहती है, वहीं परिवार में सुख और समृद्धि रहती है.
4 साल की कन्या को कल्याणी माना गया है. इनकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है.
5 साल की कन्या रोहिणी होती हैं. रोहिणी का पूजन करने से व्यक्ति रोगमुक्त रहता है.
6 साल की कन्या को कालिका रूप माना गया है. कालिका रूप से विजय, विद्या और राजयोग मिलता है.
7 साल की कन्या चंडिका होती है. चंडिका रूप को पूजने से घर में ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.
8 साल की कन्याएं शाम्‍भवी कहलाती हैं. इनके पूजने से सारे विवाद में विजयी मिलती है.
9 साल की की कन्याएं दुर्गा का रूप होती हैं. इनका पूजन करने से शत्रुओं का नाश हो जाता है और असाध्य कार्य भी पूरे हो जाते हैं.
10 साल की कन्या सुभद्रा कहलाती हैं. सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूरा करती हैं.

वीडियो

कन्या पूजन की ये है प्राचीन परंपरा
ऐसी मान्यता है कि एक बार माता वैष्णो देवी ने अपने परम भक्त पंडित श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी न सिर्फ लाज बचाई और पूरी सृष्टि को अपने अस्तित्व का प्रमाण भी दिया था. आज जम्मू-कश्मीर के कटरा कस्बे से 2 किमी की दूरी पर स्थित हंसाली गांव में माता के भक्त श्रीधर रहते थे. वे निसंतान थे व दुखी थे. एक दिन उन्होंने नवरात्र पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को अपने घर बुलाया, तभी माता वैष्णों कन्या के रूप में उन्हीं के बीच आकर बैठ गई. पूजन के बाद सभी कन्याएं लौट गई, लेकिन माता नहीं गई.

बालरुप में आई देवी पं. श्रीधर से बोलीं- सबको भंडारे का निमंत्रण दे आओ. श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आस-पास के गांवों में भंडारे का संदेश भिजवा दिया. भंडारे में तमाम लोग और कन्याएं भी आई. इसी के बाद श्रीधर के घर संतान की उत्पत्ति हुई. तब से आज तक कन्या पूजन और कन्या भोजन करा कर लोग माता से आशीर्वाद मांगते हैं.

कांगड़ा: ज्वालामुखी मंदिर में नवमी के दिन श्रावण अष्टमी नवरात्रों का विधिवत कन्या पूजन के साथ समापन किया गया. समापन समारोह में मंदिर अधिकारी विशन दास शर्मा, एसडीएम अंकुश, डीएसपी तिलकराज मौजूद रहे.

श्रावण अष्टमी नवरात्रों के समापन पर 26 हजार भक्तों ने मां की दिव्य ज्योतियों के दर्शन किए और उनको प्रसाद के रूप में हलवा बांटा गया. वहीं, मंदिर अधिकारी विशन दास व मंदिर सह अधिकारी अमित गुलेरी ने बताया कि अष्टमी के दिन भक्तों द्वारा 3,41,265 नकद, व 38 ग्राम चांदी मां के चरणों में अर्पित की .

shravan ashtami navratri ending in kangra
ज्वालाजी मंदिर

नवरात्र पर क्यों करें कन्या पूजन
नवरात्र के दौरान कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है. नवरात्री के सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन इन कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर पूजा जाता है. कन्याओं के पैरों को धोया जाता है और उन्हें आदर-सत्कार के साथ भोजन कराया जाता है. ऐसा करने वाले भक्तों को माता सुख-समृद्धि का वरदान देती हैं. वैसे सप्‍तमी से ही कन्‍या पूजन का महत्व है, लेकिन, जो भक्त पूरे नौ दिन का व्रत करते हैं और नवमी व दशमी को कन्‍या पूजन करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण कर व्रत खत्म करते हैं. शास्‍त्रों में भी बताया गया है कि कन्‍या पूजन के लिए दुर्गाष्टमी के दिन को सबसे अहम और शुभ माना गया है.

हर उम्र की कन्या का है अलग रूप
नवरात्रि के दौरान सभी दिन एक कन्या का पूजन होता है, जबकि अष्टमी और नवमी पर नौ कन्याओं का पूजन किया जाता है.
2 साल की कन्या का पूजन करने से घर में दुख और दरिद्रता दूर हो जाती है.
3 साल की कन्या त्रिमूर्ति का रूप मानी गई हैं. त्रिमूर्ति के पूजन से घर में धन-धान्‍य की भरमार रहती है, वहीं परिवार में सुख और समृद्धि रहती है.
4 साल की कन्या को कल्याणी माना गया है. इनकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है.
5 साल की कन्या रोहिणी होती हैं. रोहिणी का पूजन करने से व्यक्ति रोगमुक्त रहता है.
6 साल की कन्या को कालिका रूप माना गया है. कालिका रूप से विजय, विद्या और राजयोग मिलता है.
7 साल की कन्या चंडिका होती है. चंडिका रूप को पूजने से घर में ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.
8 साल की कन्याएं शाम्‍भवी कहलाती हैं. इनके पूजने से सारे विवाद में विजयी मिलती है.
9 साल की की कन्याएं दुर्गा का रूप होती हैं. इनका पूजन करने से शत्रुओं का नाश हो जाता है और असाध्य कार्य भी पूरे हो जाते हैं.
10 साल की कन्या सुभद्रा कहलाती हैं. सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूरा करती हैं.

वीडियो

कन्या पूजन की ये है प्राचीन परंपरा
ऐसी मान्यता है कि एक बार माता वैष्णो देवी ने अपने परम भक्त पंडित श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी न सिर्फ लाज बचाई और पूरी सृष्टि को अपने अस्तित्व का प्रमाण भी दिया था. आज जम्मू-कश्मीर के कटरा कस्बे से 2 किमी की दूरी पर स्थित हंसाली गांव में माता के भक्त श्रीधर रहते थे. वे निसंतान थे व दुखी थे. एक दिन उन्होंने नवरात्र पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को अपने घर बुलाया, तभी माता वैष्णों कन्या के रूप में उन्हीं के बीच आकर बैठ गई. पूजन के बाद सभी कन्याएं लौट गई, लेकिन माता नहीं गई.

बालरुप में आई देवी पं. श्रीधर से बोलीं- सबको भंडारे का निमंत्रण दे आओ. श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आस-पास के गांवों में भंडारे का संदेश भिजवा दिया. भंडारे में तमाम लोग और कन्याएं भी आई. इसी के बाद श्रीधर के घर संतान की उत्पत्ति हुई. तब से आज तक कन्या पूजन और कन्या भोजन करा कर लोग माता से आशीर्वाद मांगते हैं.

Intro:नवमी को कन्या पूजन के साथ नवरात्र समाप्त


पुजारी एवम न्यास सदस्य मधुसूदन शर्मा व प्रशांत शर्मा ने बिधिबत पूजन व कन्या पूजन करवाकर नवरात्रो का समापन करवाया
लगभग 26 हजार भक्तो ने मां की दिव्य ज्योतियों के दर्शन किये
अष्टमी के दिन भक्तों द्वारा 3,41,265 नकद, व 38 ग्राम चांदी की गई भेंट Body:
ज्वालामुखी, 9 अगस्त (नितेश): ज्वालामुखी मंदिर में नवमी के दिन श्रावण अष्टमी नवरात्रो का विधिवत कन्या पूजन के साथ समापन किया गया। मन्दिर अधिकारी विशन दास शर्मा, एस डी एम अंकुश, डी एस पी तिलकराज व न्यास सदस्यो ने शिकरक्त की।
पुजारी एवम न्यास सदस्य मधुसूदन शर्मा व प्रशांत शर्मा ने बिधिबत पूजन व कन्या पूजन करवाकर नवरात्रो का समापन करवाया।
इस उपलक्ष्य पर प्रशाद के रूप में हलवा भी बांटा गया। मन्दिर अधिकारी विशन दास शर्मा ने नवरात्र शांतिपूर्वक होने पर सभी विभागों का धन्यबाद किया। आज लगभग 26 हजार भक्तो ने मां की दिव्य ज्योतियों के दर्शन किये। आज भक्तो की संख्या में कमी दर्ज की गई।
मन्दिर अधिकारी विशन दास व मन्दिर सह अधिकारी अमित गुलेरी ने बताया कि अष्टमी के दिन भक्तों द्वारा 3,41,265 नकद, व 38 ग्राम चांदी भेंट की गई।
मन्दिर प्रशाशन की तरफ से हर व्यबस्था चाक चौबंद रही और किसी भी अप्रिय घटना की सूचना नही मिली।


नवरात्र पर क्यों करें कन्या पूजन
नवरात्र की सप्‍तमी से कन्‍या पूजन शुरू हो जाता है। सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन इन कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर पूजा जाता है। कन्याओं के पैरों को धोया जाता है और उन्हें आदर-सत्कार के साथ भोजन कराया जाता है। ऐसा करने वाले भक्तों को माता सुख-समृद्धि का वरदान देती है।
नवरात्र के दौरान कन्या पूजन का विशेष महत्व है। नौ कन्याओं को नौ देवियों के रूप में पूजन के बाद ही भक्त व्रत पूरा करते हैं। भक्त अपने सामर्थ्य के मुताबिक भोग लगाकर दक्षिणा देते हैं। इससे माता प्रसन्न होती हैं।
इस दिन जरूर करें कन्या पूजनसप्‍तमी से ही कन्‍या पूजन का महत्व है। लेकिन, जो भकग्त पूरे नौ दिन का व्रत करते हैं वे तिथियों के मुताबिक नवमी और दशमी को कन्‍या पूजन करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण कर व्रत खत्म करते हैं। शास्‍त्रों में भी बताया गया है कि कन्‍या पूजन के लिए दुर्गाष्टमी के दिन को सबसे अहम और शुभ माना गया है। दक्षिणा, उपहार दें और दोबारा से पैर छूकर आशीष लें।

हर उम्र की कन्या का है अलग रूप
नवरात्र के दौरान सभी दिन एक कन्या का पूजन होता है, जबकि अष्टमी और नवमी पर नौ कन्याओं का पूजन किया जाता है।
2 वर्ष की कन्या का पूजन करने से घर में दुख और दरिद्रता दूर हो जाती है।
3 वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति का रूप मानी गई हैं। त्रिमूर्ति के पूजन से घर में धन-धान्‍य की भरमार रहती है, वहीं परिवार में सुख और समृद्धि जरूर रहती है।
4 साल की कन्या को कल्याणी माना गया है। इनकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है, वहीं 5 वर्ष की कन्या रोहिणी होती हैं। रोहिणी का पूजन करने से व्यक्ति रोगमुक्त रहता है।
6 साल की कन्या को कालिका रूप माना गया है। कालिका रूप से विजय, विद्या और राजयोग मिलता है।
7 साल की कन्या चंडिका होती है। चंडिका रूप को पूजने से घर में ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
8 वर्ष की कन्याएं शाम्‍भवी कहलाती हैं। इनको पूजने से सारे विवाद में विजयी मिलती है।
9 साल की की कन्याएं दुर्गा का रूप होती हैं। इनका पूजन करने से शत्रुओं का नाश हो जाता है और असाध्य कार्य भी पूरे हो जाते हैं।
10 साल की कन्या सुभद्रा कहलाती हैं। सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूरा करती हैं।


कन्या का सम्मान सिर्फ 9 दिन नहीं जीवनभर करें
नवरात्र के दौरान भारत में कन्याओं को देवी का रूप मानकर पूजा जाता है। लेकिन, कुछ लोग नवरात्र के बाद यह सबकुछ भूल जाते हैं। बहूत-सी जगह कन्याएं शोषण का शिकार होती हैं और उनका अपमान हो रहा है। ऐसे में भारत में बहूत सारे गांवों में कन्या के जन्म पर लोग दुखी हो जाते हैं। जरा सोचिए...। क्या आप ऐसा करके देवी मां के इन रूपों का अपमान नहीं कर रहे। कन्या और महिलाओं के प्रति हमें सोच बदलनी होगी। देवी तुल्य इन कन्‍याओं और महिलाओं का सम्मान करें। इनका आदर कर आप ईश्वर की पूजा के बराबर पुण्‍य प्राप्त करते हैं। शास्‍त्रों में भी बताया गया है कि जिस घर में औरत का सम्‍मान होता है, वहां खुद ईश्वर वास करते हैं।


कन्या पूजन की यह है प्राचीन परंपरा
ऐसी मान्यता है कि एक बार माता वैष्णो देवी ने अपने परम भक्त पंडित श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी न सिर्फ लाज बचाई और पूरी सृष्टि को अपने अस्तित्व का प्रमाण भी दे दिया। आज जम्मू-कश्मीर के कटरा कस्बे से 2 किमी की दूरी पर स्थित हंसाली गांव में माता के भक्त श्रीधर रहते थे। वे नि:संतान थे एवं दुखी थे। एक दिन उन्होंने नवरात्र पूजन के लिए कुँवारी कन्याओं को अपने घर बुलवाया। माता वैष्णो कन्या के रूप में उन्हीं के बीच आकर बैठ गई। पूजन के बाद सभी कन्याएं लौट गईं, लेकिन माता नहीं गईं। बालरूप में आई देवी पं. श्रीधर से बोलीं- सबको भंडारे का निमंत्रण दे आओ। श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आस–पास के गांवों में भंडारे का संदेशा भिजवा दिया। भंडारे में तमाम लोग आए। कई कन्याएं भी आई। इसी के बाद श्रीधर के घर संतान की उत्पत्ति हुई। तब से आज तक कन्या पूजन और कन्या भोजन करा कर लोग माता से आशीर्वाद मांगते हैं।


Conclusion:बाइट एस डी एम ज्वालाजी अंकुश शर्मा
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