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डिजिटल इंडिया के हाल! इस गांव में नेटवर्क न होने से ग्रमीण परेशान, लैंडलाइन से बात करने के लिए घंटों करना पड़ता है इंतजार

एक ओर जहां 5 जी सिग्नल की बड़ी-बड़ी बातें की जाती है, वहीं दूसरी ओर चंबा का स्कोटी गांव डिजिटल इंडिया की पोल खोलता नजर आ रहा है. चंबा के स्कोटी गांव में अभी भी लोग मोबाइल फोन में सिग्नल के लिए तरस रहे हैं. दरअसल हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले की डलहौजी विधानसभा क्षेत्र की भजौत्रा पंचायत के स्कोटी गांव (Scoti village of Chamba) और आसपास के कई गांव में अभी तक मोबाइल सिग्नल नहीं पहुंच पाया है. जिसके चलते लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

Scoti village of Chamba
चंबा का स्कोटी गांव.
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Published : Mar 9, 2022, 3:54 PM IST

चंबा: हिमाचल प्रदेश में इन दिनों 5जी सिग्नल की बातें जोर शोर से चली हुई हैं और इसे डिजिटल इंडिया के लिए एक वरदान माना जा रहा है. वहीं दूसरी तरफ इसी डिजिटल इंडिया का मजाक चंबा के स्कोटी गांव में उड़ा रहा है. जहां पर अभी भी लोग मोबाइल फोन में सिग्नल के लिए तरस रहे हैं. दरअसल हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले की डलहौजी विधानसभा क्षेत्र (Dalhousie Assembly Constituency) की भजौत्रा पंचायत के स्कोटी गांव (Scoti village of Chamba) और आसपास के कई गांव में अभी तक मोबाइल सिग्नल नहीं पहुंच पाया है.

एक तरफ सरकार डिजिटल इंडिया (Digital India) के बड़े-बड़े दावे पेश कर रही है, वहीं दूसरी तरफ चंबा के सगोटी गांव में डब्ल्यूएलएल फोन से कॉल करने के इंतजार में लंबी लाइन में घंटो खड़े इंतजार करते लोगों को देखकर यह दावे बिल्कुल खोखले साबित हो रहे हैं. दरअसल इस गांव में एक ही डब्ल्यूएलएल फोन है और उसमे भी कभी कबार सिग्नल देखने को मिलता है. यही बातें चंबा जिले को पिछड़े क्षेत्र (Backward areas in Himachal) बताने के लिए काफी है.

चंबा का स्कोटी गांव.

लोग सुबह से ही इसी इंतजार में लाइन में खड़े हो जाते हैं कि कब उनका नंबर आए और वह अपने परिजनों के साथ या किसी शिक्षण संस्थान से अपने रिजल्ट या अपनी परीक्षाओं के बारे में पता कर पाएं. इस गांव के हालात आजादी से पहले के दिनों की याद दिलातें है. गांव में आज भी सड़क सुविधा नहीं पहुंच पाई है. गांव में जहां तक बस पहुंचती है, वहां के रास्तों की हालत भी कुछ ठीक नहीं है. सड़क मार्ग से गांव तक पहुंचने के लिए पैदल करीब चार घंटे से भी अधिक का समय लग जाता है.

आप खुद ही अंदाजा लगाइए कि जब कोरोना के समय में पूरे देश के छात्र ऑनलाइन कक्षाएं लगा रहे थे, तो यहां के छात्रों ने कैसे शिक्षा ग्रहण की होगी. यहां रह रहे ग्रामीणों ने बताया कि उनके गांव में मूलभूत सुविधाओं की बहुत कमी है. उनका गांव सड़क मार्ग से नहीं जुड़ पाने की वजह से उन्हें करीब 4 घंटे तक पैदल सफर कर बर्फबारी में अपने गांव पहुंचना पड़ता है. ग्रामीणों ने बताया कि इस गांव में मोबाइल का सिग्नल भी नहीं है, जिसकी वजह से उन्हें काफी दिक्कतें पेश आती है.

उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि एक बार वह उनके गांव में पहुंचकर यहां के हालात का जायजा लें. उसके बाद उन्हें मालूम पता चलेगा की ग्रामीण यहां किस तरह से अपनी जिंदगी बिता रहे हैं. उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि उनके गांव के लिए कम से कम सड़क की सुविधा मुहैया करवाई जाए. साथ ही यहां पर मोबाइल टावर लगाया जाए, ताकि वह लोग बाहरी दुनिया से अपने आप को जुड़ा हुआ महसूस कर सकें.

ये भी पढ़ें: किन्नौर विधायक पर विधानसभा में टिप्पणी से भड़की कांग्रेस सेवादल, कहा- माफी मांगे CM और मंत्री

चंबा: हिमाचल प्रदेश में इन दिनों 5जी सिग्नल की बातें जोर शोर से चली हुई हैं और इसे डिजिटल इंडिया के लिए एक वरदान माना जा रहा है. वहीं दूसरी तरफ इसी डिजिटल इंडिया का मजाक चंबा के स्कोटी गांव में उड़ा रहा है. जहां पर अभी भी लोग मोबाइल फोन में सिग्नल के लिए तरस रहे हैं. दरअसल हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले की डलहौजी विधानसभा क्षेत्र (Dalhousie Assembly Constituency) की भजौत्रा पंचायत के स्कोटी गांव (Scoti village of Chamba) और आसपास के कई गांव में अभी तक मोबाइल सिग्नल नहीं पहुंच पाया है.

एक तरफ सरकार डिजिटल इंडिया (Digital India) के बड़े-बड़े दावे पेश कर रही है, वहीं दूसरी तरफ चंबा के सगोटी गांव में डब्ल्यूएलएल फोन से कॉल करने के इंतजार में लंबी लाइन में घंटो खड़े इंतजार करते लोगों को देखकर यह दावे बिल्कुल खोखले साबित हो रहे हैं. दरअसल इस गांव में एक ही डब्ल्यूएलएल फोन है और उसमे भी कभी कबार सिग्नल देखने को मिलता है. यही बातें चंबा जिले को पिछड़े क्षेत्र (Backward areas in Himachal) बताने के लिए काफी है.

चंबा का स्कोटी गांव.

लोग सुबह से ही इसी इंतजार में लाइन में खड़े हो जाते हैं कि कब उनका नंबर आए और वह अपने परिजनों के साथ या किसी शिक्षण संस्थान से अपने रिजल्ट या अपनी परीक्षाओं के बारे में पता कर पाएं. इस गांव के हालात आजादी से पहले के दिनों की याद दिलातें है. गांव में आज भी सड़क सुविधा नहीं पहुंच पाई है. गांव में जहां तक बस पहुंचती है, वहां के रास्तों की हालत भी कुछ ठीक नहीं है. सड़क मार्ग से गांव तक पहुंचने के लिए पैदल करीब चार घंटे से भी अधिक का समय लग जाता है.

आप खुद ही अंदाजा लगाइए कि जब कोरोना के समय में पूरे देश के छात्र ऑनलाइन कक्षाएं लगा रहे थे, तो यहां के छात्रों ने कैसे शिक्षा ग्रहण की होगी. यहां रह रहे ग्रामीणों ने बताया कि उनके गांव में मूलभूत सुविधाओं की बहुत कमी है. उनका गांव सड़क मार्ग से नहीं जुड़ पाने की वजह से उन्हें करीब 4 घंटे तक पैदल सफर कर बर्फबारी में अपने गांव पहुंचना पड़ता है. ग्रामीणों ने बताया कि इस गांव में मोबाइल का सिग्नल भी नहीं है, जिसकी वजह से उन्हें काफी दिक्कतें पेश आती है.

उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि एक बार वह उनके गांव में पहुंचकर यहां के हालात का जायजा लें. उसके बाद उन्हें मालूम पता चलेगा की ग्रामीण यहां किस तरह से अपनी जिंदगी बिता रहे हैं. उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि उनके गांव के लिए कम से कम सड़क की सुविधा मुहैया करवाई जाए. साथ ही यहां पर मोबाइल टावर लगाया जाए, ताकि वह लोग बाहरी दुनिया से अपने आप को जुड़ा हुआ महसूस कर सकें.

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