चंबा: कोरोना काल के 2 साल बाद मणिमहेश यात्रा 19 अगस्त को शुरू (Manimahesh Yatra from August 19) होगी.इसको लेकर प्रशासन तैयारियों का दावा कर रहा है. यात्रा 2 सितंबर तक चलेगी. मणिमहेश यात्रा के दौरान बड़ी संख्या में देश के कई राज्यों से लोग पहुंचकर कैलाश पर्वत पर स्थित मणिमहेश झील में डुबकी लगाते हैं.
सीसीटीवी कैमरे रखेंगे नजर: इस बार श्रद्धालुओं के लिए पंजीकरण की व्यवस्था का भी विशेष प्रावधान रहेगा, ताकि यांत्रियों की जानकारी रह सके. वहीं, भरमौर और चंबा में सीसीटीवी कैमरों से नजर रखी जाएगी. जिला प्रशासन इसको लेकर तैयारियां जोरों पर कर रहा है.
नाले किनारे नहीं लगा सकेंगे टेंट: अमरनाथ यात्रा से सीख लेते हुए जिला प्रशासन ने श्रद्धालु नाले किनारे टेंट नहीं लगा पाएंगे. बता दें कि बादल फटने के कारण अमरनाथ यात्रा को कुछ दिन रोकना पड़ा था. इसमें दौरान नाले में लगे टेंट में रह रहे कुछ लोग बह गए थे.
कोविड नियमों का करना होगा पालन: डीसी चंबा दुनी चंद राणा ने बताया कि मणिमहेश यात्रा इस बार 19 अगस्त से 2 सितंबर तक होगी. भरमौर और जिला प्रशासन तैयारियों में जुटा हुआ है. यात्रियों का पंजीकरण किया जाएगा, ताकि यह जानकारी मिल सके की कौनसा यात्री कहां से आया और कितने लोग यात्रा से वापस लौट चुके हैं. उन्होंने कहा कि यात्रियों को कोरोना नियमों का पालन करना होगा.
जम्मू -कश्मीर के यात्रियों से अपील: डीसी चंबा दुनी चंद राणा ने बताया यात्रा के लिए जम्मू कश्मीर से बड़ी संख्या में यात्रा के लिए लोग आते हैं. वहां के प्रशासन को बताया गया है कि वहां से जो भी लोग यात्रा के लिए निकले वो सही रास्तों का इस्तेमाल करें ,ताकि कोई परेशानियों का सामना नहीं करना पड़े.साथ ही यात्रियों से अपील की गई है कि ऐसी जगहों पर नहीं ठहरे जहां बरसात होने से खतरा हो सकता हो. वहीं, प्लास्टिक का इस्तेमाल भी नहीं किया जाए.
उत्तर भारत की प्रसिद्ध मणिमहेश यात्रा: बता दें कि उत्तर भारत की प्रसिद्ध मणिमहेश यात्रा रहती है. कोरोना काल के बाद इस बार शुरू होगी. इस दौरान धार्मिक परंपराओं और रीति रिवाजों का निर्वाहन किया जाएगा. दशनाम अखाड़ा चंबा की अपनी एक परंपरा व इतिहास है. राजस्वी काल से ही चंबा जिले में दशनाम अखाड़ा को बसाया गया था. जब राजा शाहिल वर्मन द्वारा चंबा नगर को बसाया गया उस समय भगवान विष्णु की मूर्ति बनाने के लिए संगमरमर की जरूरत पड़ी थी. संगमरमर लेने के लिए राजा ने अपने बेटों को विंद्याचल भेजा, लेकिन रास्ते में ही उन्हें लूट कर मार दिया गया. जिसके बाद राजा ने अपने छोटे बेटे यूवाकर वर्मन को भेजा, लेकिन उसके साथ भी वही घटनाक्रम हुआ जो उसे भाइयों के साथ हुआ था.
एक हजार साल पुराना इतिहास: वहां पर दशनाम अखाड़े के साधुओं ने राजा के बेटे की सुरक्षा कर संगमरमर को चंबा पहुंचाया और यहां पर भगवान विष्णु की प्रतिमा बनाई गई जिसे लक्ष्मी नारायण मंदिर में रखा गया बाद में उसे दशनाम अखाड़ा में स्थापित किया गया. उसके बाद से दशनाम अखाड़ा स्थापित किया गया है और छड़ी की परंपरा भी तभी से चली आ रही है.चम्बा के 1000 वर्ष पुराने इतिहास में भी इस छड़ीयात्रा का जिक्र किया गया है.
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